खेल मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर दिवंगत महान हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद को भारत रत्न देने का आग्रह किया है। इस महान हाकी खिलाड़ी को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिलाने की मंत्रालय की यह नवीनतम कोशिश है। खेल मंत्री विजय गोयल ने पीटीआई को पुष्टि की कि उन्होंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा है। गोयल ने कहा, हां हमने ध्यानचंद को भारत रत्न के संदर्भ में प्रधानमंत्री को लिखा है। उन्हें मरणोपरांत यह सम्मान देना देश को उनकी सेवाओं की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
यह पहली बार नहीं है जब खेल मंत्रालय ने ध्यानचंद के लिए भारत रत्न की मांग की है जिन्होंने भारत को तीन ओलंपिक :1928, 1932 और 1936: में स्वर्ण पदक दिलाने में मदद की। वर्ष 2013 में संप्रग सरकार ने महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर पर इस महान हाकी खिलाड़ी को सम्मान के लिए चुना था।
हालांकि उसी साल तेंदुलकर के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर से संन्यास लेने के कुछ ही घंटों बाद घोषणा की गई कि यह क्रिकेटर इस पुरस्कार को पाने वाला पहला खिलाड़ी होगा।
यह पूछने पर कि क्या ध्यान चंद को तेंदुलकर से पहले भारत रत्न मिलना चाहिए था, गोयल ने कहा, ‘‘मैं इस मामले में नहीं पड़ना चाहता और इस तरह के महान खिलाड़ियों के बारे में टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा, आप किसी पुरस्कार से ध्यानचंद की उपलब्धियों को नहीं आंक सकते। वह इससे कहीं बढ़कर हैं।
आपको बता दें कि पूर्व दिग्गज हॉकी खिलाड़ियों ने एक बार फिर दिवंगत महान खिलाड़ी ध्यानचंद को भारत रत्न देने की लंबे समय से चली आ रही मांग दोहराई और कुछ ने कहा था कि इस ‘हॉकी के जादूगर’ को दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर से पहले यह सम्मान दिया जाना चाहिए था। अजित पाल सिंह, जफर इकबाल, दिलीप टिर्की और ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार यहां जंतर मंतर पर इस उम्मीद के साथ जुटे कि सरकार उनकी मांग पूरी करेगी और उस महान खिलाड़ी को भारत रत्न देगी जिसकी अगुआई में भारत ने 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते। इकबाल ने कहा, ‘हम सब यहां इसलिए जुटे हे। कि दद्दा ध्यानचदं को सम्मान मिले। लेकिन हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं कि उन्हें यह मिले। राजनीतिक इच्छा मायने रखती है। जब सचिन तेंदुलकर को यह सम्मान (2014 में) मिला तब भी ऐसा ही था। उन्हें पुरस्कार मिले या ना मिले इससे उनके दर्जे पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन उन्हें यह मिलना चाहिए क्योंकि वह इसके सबसे अधिक हकदार हैं।
विश्व कप 1975 में भारत की खिताबी जीत के दौरान टीम की कप्तानी करने वाले अजित पाल ने कहा कि ध्यानचंद यह सम्मान पाने वाले पहले खिलाड़ी होने चाहिए थे। अजित पाल ने कहा, ‘दुनिया भर के लोग उन्हें जानते हैं। वह हॉकी के जादूगर के नाम से जाने जाते हैं और हमने उनके बारे में इतनी सारी कहानियां सुनी हैं। अगर कोई खिलाड़ी इस सम्मान का हकदार है जो वह हैं। वह इसे हासिल करने वाले पहले खिलाड़ी होने चाहिए थे। वह उस समय खेले और स्वर्ण पदक जीते जब भारत बैलगाड़ी में यात्राएं करता था, बेहद गरीबी थी। खेल के लिए उनका बलिदान काफी बड़ा है। पूर्व की सरकारों ने उन्हें पुरस्कार नहीं देकर गलती की। उम्मीद करता हूं कि ये सरकार इस गलती को सुधारेगी।’

