Tanishq Vaddi | भारतीय महिलाओं के लिए साल 2025 खेल जगत में काफी यादगार रहने वाला है। 2 नवंबर को भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार विश्व कप जीतते हुए इतिहास रचा था। उसके बाद 23 नवंबर को भारत की महिला दृष्टिबाधित टीम ने टी20 विश्व कप जीतते हुए सुर्खियां बटोरीं। इस टीम की कप्तान थीं टीसी दीपिका जिनके लिए विश्व विजेता बनने तक का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा है।

दीपिका का सफर काफी दर्दनाक मोड़ से होता हुआ यहां तक पहुंचा है। उनका जीवन बेहद गरीबी में गुजरा था। गरीबी का यह आलम रहा कि दीपिका और उनके भाई बचपन में सड़कों पर टहलते थे और ढूंढते थे कि अगर पेड़ से गिरा या सड़क पर पड़ा हुआ कोई फल मिल जाए तो उससे वह पेट भरेंगे। इतना ही नहीं दीपिका के पिता भी बहुत ज्यादा नहीं कमाते और ऐसे में परिवार के पास दो समय का भोजन तक नहीं होता था।

दीपिका के पिता और माता खेतों में मजदूरी का काम करते थे। दोनों को मिलाकर 800 रुपये प्रतिदिन मेहनताना मिलता था। उनके भाई गिरीश ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि, दीपिका के दादा जी का भूख के कारण देहांत हो गया था। उनके पिता सिर्फ एक समय ही मुश्किल से खाने का इंतजाम कर पाते थे। यही कारण है कि दीपिका की आंख के साथ जब हादसा हुआ तो उन्हें पूरी तरह इलाज नहीं मिल पाया।

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दीपिका के साथ बचपन में हुआ हादसा

दीपिका के 60 वर्षीय पिता चकथामप्पा ने बताया,”दीपिका जब सिर्फ पांच महीने की थीं तो उन्होंने अपनी ही उंगली अपनी दाईं आंख में डाल दी थी। उनके गांव के आसपास कोई सुविधा नहीं थी। एक हॉस्पिटल 30 किलोमीटर दूर था तो दूसरा 68 किलोमीटर। जैसे-तैसे दीपिका को हॉस्पिटल पहुंचाया गया और वहां दो महीने तक इलाज चला। उन्होंने कहा कि वह बहुत कुछ नहीं कर पाए और 3 हजार रुपये का खर्चा हुआ जो उनके लिए 3 लाख के बराबर थे।”

बेटी से मिलने जाने के लिए माता-पिता करते थे मजदूरी….

दीपिका की आंख का पूरा इलाज नहीं हो पाया और वह दृष्टिबाधित हो गईं। उसके बाद उनकी पढ़ाई आगे बढ़ी और कक्षा 4 तक वह घर के नजदीक स्कूल में पढ़ीं। फिर दीपिका का एडमिशन कर्नाटक के कुनिगल स्थित एक दृष्टिबाधित स्कूल में हो गया। कक्षा 7 तक दीपिका वहां पढ़ीं, उसके बाद वह मैसूर स्थित दिव्यागों के रंगा राव मेमोरियल स्कूल गईं जहां उन्होंने हाईस्कूल तक पढ़ाई की। यहीं से उनकी क्रिकेट की तरफ नजदीकियां बढ़ीं।

दीपिका का करियर जैसे-तैसे आगे बढ़ रहा था। स्कूल की तरफ से फ्री एजुकेशन और फ्री हॉस्टल की सुविधा मिली, लेकिन उनके माता-पिता की गरीबी दूर नहीं हुई। दीपिका का स्कूल उनके घर से काफी दूर था, इस कारण माता-पिता को बेटी से मिलने के लिए उधार मांगना पड़ता था या खेतों पर मजदूरी करनी पड़ती थी। इतना सबकुछ करके भी दोनों छह महीने में एक बार ही बेटी से मिलने जा पाते थे।

कैसे क्रिकेट में बना करियर?

दीपिका के क्रिकेट के सफर की बात करें तो दसवीं के बाद वह घर लौट आई थीं। उसके बाद अपने होमटाउन में ही दीपिका ने एक ट्रस्ट के स्कूल (Gnana Jyothi Education Trust’s school) में पढ़ाई जारी रखी। फिर 2019 में अचानक दीपिका को शिखा शेट्टी का फोन आया जो अभी राष्ट्रीय दृष्टिबाधित महिला टीम की मैनेजर हैं। उन्होंने दीपिका से सेलेक्शन ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए पूछा।

दीपिका ने भी यहां से सोच लिया था कि क्रिकेट ही एक चारा है जिससे वह अपने घर की स्थिति को सुधार सकती हैं। उन्होंने अपने स्कूल के दिनों से सहायता करने वाले ‘मोहन अन्ना’ का धन्यवाद अदा किया जिन्होंने सेलेक्शन ट्रायल तक पहुंचाने में भी दीपिका की मदद की थी। जब उनका सेलेक्शन ट्रायल सफल रहा उसके बाद समर्थनम ट्रस्ट ने उनकी मदद की और यहां से दीपिका का जीवन बदलना शुरू हो गया।

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विश्व कप में दीपिका का लाजवाब प्रदर्शन

समर्थनम ट्रस्ट ने ही इस छह टीमों वाले विश्व कप का आयोजन करवाया था जिसमें दीपिका की कप्तानी में भारत विश्व विजेता बना। इस विश्व कप की मेजबानी भारतीय दृष्टिबाधित क्रिकेट एसोसिएशन ने की। वहीं श्रीलंका के समकक्ष बोर्ड ने इस टूर्नामेंट की मेजबानी की। भारत ने फाइनल में नेपाल को 7 विकेट से हराकर खिताब जीता। इस टूर्नामेंट में कप्तान दीपिका ने 5 मैचों में 246 रन बनाए। सेमीफाइनल में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 58 गेंद पर 91 रनों की बेहतरीन पारी भी खेली।

भारतीय महिला दृष्टिबाधित टीम इस विश्व विजेता बनने की उपलब्धि के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मिली। बीसीसीआई के मुंबई स्थित मुख्यालय में भी टीम का स्वागत और सम्मान किया गया। इसके बाद दीपिका ने आंध्र प्रदेश के सीएम पवन कल्याण से मुलाकात की और अपने गांव तंबालाहट्टी के सुधार की भी मांग की। सीएम कल्याण ने तुरंत 6.2 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट उनके गांव के लिए पास करवाया।