सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 15 मई 2023 को क्रिकेटर मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां की याचिका पर संबंधित प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए। हसीन जहां ने अपनी याचिका में तलाक के लिए समान कानूनों की मांग की है। हसीन जहां ने मुस्लिम पुरुषों को तलाक का एकाधिकार देने वाले तलाक-उल-हसन और कानूनी दायरे से बाहर तलाक की दूसरी प्रचलित परंपराओ को रद्द करने की मांग की है। हसन जहां का कहना है कि वह शरीयत कानून से पीड़ित हैं। शरीयत कानून के तहत दिए गए तलाक, तलाक-उल-हसन को वह उचित नहीं मानतीं।

सुप्रीम कोर्ट ने हसीन जहां की याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार और महिला आयोग को नोटिस जारी किया है। हालांकि, मामले में मोहम्मद शमी को पक्षकार बनाने की हसीन जहां की मांग खारिज कर दी। इसे इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) 2023 में व्यस्त मोहम्मद शमी के लिए राहत के रूप में देखा जा रहा है। हसीन जहां और मोहम्मद शमी में अभी तलाक नहीं हुआ है, लेकिन दोनों अलग-अलग रहते हैं। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने हसीन जहां की याचिका को समान मुद्दों को उठाने वाली अन्य ऐसी ही याचिकाओं के साथ टैग करने का आदेश दिया।

शमी ने 23 जुलाई 2023 को भेजा था पहली बार तलाक का नोटिस: हसीन जहां

समाचार एजेंसी की खबर के मुताबिक, हसीन जहां की ओर से एडवोकेट दीपक प्रकाश ने याचिका दायर की है। याचिका में हसीन जहां की ओर से कहा गया है कि वह न्यायिक दायरे के बाहर मिलने वाले तलाक यानी तलाक-उल-हसन की एकतरफा प्रक्रिया से पीड़ित है। हसीन जहां के मुताबिक, उनके पति मोहम्मद शमी की ओर से 23 जुलाई 2022 को तलाक-उल-हसन के तहत ही तलाक का पहला नोटिस मिला था।

हसीन जहां को यह नोटिस शमी के वकील की ओर से दिया गया था। हसीन जहां के वकील ने बताया कि ऐसा नोटिस मिलने पर याचिकाकर्ता ने अपने निकट सहयोगियों और प्रियजनों से संपर्क किया, जो खुद भी इस तरह के मामलों में फंसे हुए थे। उनके पतियों ने खुद की शनक और शौक के कारण उन्हें एकतरफा तलाक दे दिया था।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शरीयत एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 असंवैधानिक: हसीन जहां

इस प्रकार याचिकाकर्ता ने तलाक-उल-हसन और कानूनी दायरे से बाहर तलाक की दूसरी प्रचलित परंपराओं से जुड़े मुद्दों पर फैसले की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत ये अब भी लागू हैं। हसीन जहां का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शरीयत एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 असंवैधानिक है। यह देश के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का भी उल्लंघन करती है।

मुस्लिम पुरुषों को मिली है आजादी: हसीन जहां

याचिकाकर्ता ने कहा कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के तहत अपनाई जा रही कठोर प्रथाओं के दुरुपयोग के चलते एक पीड़ित पत्नी है। जिसमें तलाक-ए-बिद्दत के अलावा, एकतरफा तलाक के कई अन्य रूप मौजूद हैं, जिन्हें तलाक के नाम से जाना जाता है, जो मुस्लिम पुरुषों को बेलगाम अधिकार प्रदान करते हैं। इसमें मुस्लिम महिला को सुलह का कोई अधिकार दिए बिना या किसी भी तरीके से उसकी बात सुने बिना तलाक दिया सकता है। मुस्लिम महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव होना भारत के संविधान 1950 के अनुच्छेद 14,15 और 21 के तहत दिए गए महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

हसीन जहां ने मुस्लिम विवाह अधिनियम को भी असंवैधानिक घोषित करने की मांग की

याचिका में मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के विलय को शून्य और असंवैधानिक घोषित करने की भी मांग की गई है, क्योंकि यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 का उल्लंघन करता और मुस्लिम महिलाओं को तलाक-उल-हसन और कानूनी दायरे से बाहर तलाक की दूसरी प्रचलित परंपराओ से सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहता है।