टी-20 विश्व कप जीतने का सुनहरा मौका हाथ से निकल गया। सेमी फाइनल में इंग्लैंड से मिली करारी शिकस्त से हरमनप्रीत कौर की टीम इंडिया का खिताबी सपना टूट गया। सपना टूटने के साथ विवाद भी पनप गया। टी-20 में भारत की सबसे सफल महिला क्रिकेटर मिताली राज को एकादश से बाहर रखना मुद्दा बन गया। सफाई देनी पड़ गई कि यह टीम प्रबंधन का फैसला था। इस फैसले में कप्तान हरमनप्रीत कौर, उप कप्तान स्मृति मंधाना, मुख्य प्रशिक्षक रमेश पोवार और चयनकर्ता सुधा शाह शामिल थे। महिला क्रिकेट टीम सेमी फाइनल मुकाबला जीत जाती तो यह मुद्दा दब जाता। फैसला लिया जा चुका है और हम खामियाजा भुगत चुके हैं। यह साहसिक फैसला क्या रणनीतिक चूक नहीं था। जब मुकाबला अहम हो और पहला फाइनल खेलने का मौका बन रहा हो तो फैसले पर ज्यादा मंथन करना चाहिए था। यह जरूरी नहीं कि पिछला मैच जीती टीम में बदलाव नहीं करने पर अड़ जाओ। पहले अपनी कमजोरी पहचानिए। आपकी कमजोरी थी बल्लेबाजी। गेंदबाज भी तभी प्रभावी होते हैं अगर लड़ने लायक स्कोर हो। स्कोर तभी बनता है अगर बल्लेबाज रन बनाएं।

जो आपकी रन मशीन थी, उसे आपने डग आउट में बैठा दिया। क्यों? इसलिए कि महत्त्वहीन बन गए आस्ट्रेलिया के साथ पूल मुकाबले में आपने मिताली को आराम करवाया। उसे घुटने में परेशानी थी या नहीं, यह अलग विषय है। पर इस मुकाबले से पहले दो मैचों में मिताली ने 56 गेंदों पर 51 और 47 गेंदों पर 56 रन की मैच जिताऊ पारियां खेली थीं। इन्हीं पारियों से वह प्लेयर आॅफ द मैच बनीं। 53.50 की औसत से 107 रन। और क्या चाहिए था आपको।

सवाल यह है कि आपको सेमीफाइनल में क्यों इतने गेंदबाजों के साथ उतरना था। यह जानते हुए भी कि इंग्लैंड का गेंदबाजी आक्रमण बेहतर है, हमने बल्लेबाजी की बजाय गेंदबाजी की मजबूती पर जोर दिया। हम 50 ओवरों के विश्व कप फाइनल में इंग्लैंड से मिली पराजय का हिसाब चुकता नहीं कर पाए। वहां भी हमने जीती बाजी हार दी थी। उस मुकाबले में भी हमारी बल्लेबाजी चरमरा गई थी और विंडीज में भी ऐसा ही हुआ। 24 रन पर आठ विकेट गंवा देने वाली टीम से आप कप जीतने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। सेमीफाइनल में भारतीय खिलाड़ियों को रन जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। ऐसे में सूझबूझ के साथ रन जुटाने की जरूरत थी लेकिन भारतीय टीम ने आनन-फानन में विकेट गंवा दिए। गेंद को उठाकर मारने की कोशिश में आसान कैच थमा दिए। यह गलती बल्लेबाज करते गए। कोचिंग स्टाफ तमाशा देखता रहा। पुछल्ले बल्लेबाजों की बाजुओं में तो ताकत भी दिखाई नहीं दी कि पांच-सात चौके उड़ाकर स्कोर को मजबूत किया जा सके।

जब लक्ष्य छोटा हो तो टीम या तो फंस जाती है, नहीं तो आसानी से जीत जाती है। इंग्लैंड की टीम ने आठ विकेट से आसान जीत दर्ज की। टीम में जरूरत से ज्यादा गेंदबाज खिलाने का खामियाजा भुगतना पड़ा। 2017 में विश्व कप फाइनल में हार का बदला लेने का अरमान दिल में ही रह गया। पूल मुकाबले में भारत ने चारों मैच दमदार अंदाज में जीते थे, इसलिए इस मैच का दर्द उन्हें कचोटता रहेगा। खैर, आपको पहले से ही मालूम था कि मिताली राज का यह आखिरी टी-20 विश्व कप है। हमें उनकी विदाई को विवादास्पद नहीं, सम्मानजनक बनाना चाहिए था। विश्व कप से पहले मुख्य प्रशिक्षक रमेश पोवार मिताली की सलामी बल्लेबाज के रूप में पोजीशन से खुश थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि थोड़े समय में ही उनकी सोच बदल गई। पोजीशन तो दूर, मिताली टीम से बाहर हो गई। वेदा कृष्णामूर्ति जैसी खिलाड़ियों से तो उनका प्रदर्शन बेहतर था।

2014 में मिताली ने पारी शुरू करने की भूमिका को संभाला था। तब प्रशिक्षक पूर्णिमा राव का मानना था कि अपनी सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज को ज्यादा ओवर खेलने को मिलें। पारी को ठोस आधार देने के लिए पिच पर तकनीकी रूप से कुशल बल्लेबाज जरूरी हैं। 84 टी-20 मैचों में मिताली ने 2232 रन बनाए हैं। स्मृति मंधाना के साथ उनकी सलामी जोड़ी हिट रही है। 26 पारियों में दोनों ने 835 रन बनाए हैं। 33.40 की औसत से खेली इन पारियों में दोनों ने दो शतकीय और चार अर्ध शतकीय साझेदारियां निभाई हैं। अब इस बात में कोई संशय नहीं है कि महिला क्रिकेट का रंग जमने लगा है। चौके-छक्कों की बरसात, बेहतरीन फील्डिंग, अविश्वसनीय कैच, किफायती गेंदबाजी, हैट्रिक सभी कुछ देखने को मिल रहा है। हरमनप्रीत टी-20 में शतकीय पारी खेलने वाली पहली भारतीय क्रिकेटर बन गई हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले मुकाबले में खेली गई ताबड़तोड़ पारी में उन्होंने आठ छक्के उड़ाए।

लीग स्टेज में विश्व की नंबर वन टीम आस्ट्रेलिया और नंबर दो टीम न्यूजीलैंड को हराकर महिला क्रिकेटरों ने भारतीय ताकत का अहसास करवाया। पर अफसोस यही रहेगा कि जिस आस्ट्रेलिया को हमने प्रभावशाली तरीके से हराया, वही चैंपियन बन गया। भारतीय टीम को सफलता का स्वाद चखना है तो गेंदबाजों को अपनी बल्लेबाजी क्षमता को निखारकर आलराउंड खेल दिखाना होगा। हरमनप्रीत के आईसीसी टी-20 विश्व कप टीम की कमान मिलना जख्मों पर मरहम जैसा है।

खटास को कम करने की बजाय बयानबाजी चल रही है। कप्तान हरमनप्रीत ने कह दिया है कि मिताली को टीम से बाहर रखने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है। उन्हें टीम के प्रदर्शन पर गर्व है। शायद हरमनप्रीत को विश्व कप जीत नहीं पाने का भी अफसोस नहीं होगा। डायना एडुलजी बड़ी खिलाड़ी रही हैं। उनका कहना है कि किसी खिलाड़ी को बाहर करने पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। अरे, अगर रोहित शर्मा को पुरुष टी-20 टीम से बाहर कर दिया जाए तो क्या बावेला नहीं मचेगा?

किसी के करिअर से खिलवाड़ करो और छूट जाओ, ऐसा नहीं होना चाहिए। देश की सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर जिसने दो दशक तक सेवाएं दी हों, कोच अपमानित करें, यह असहनीय है। डायना पर भी आरोप लगे हैं। मिताली ने ही नहीं, पूर्व कोच अरोठे ने भी उनको कठघरे में खड़ा किया है। यह सत्ता का दुरुपयोग है और अगर डायना में नैतिकता है तो उन्हें सीओए से इस्तीफा दे देना चाहिए।