भारत के युवा शूटर सौरभ चौधरी ने आईएसएसएफ वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। सौरभ ने 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए 245 अंक हासिल किए। उन्होंने यूक्रेन के ओलेह ओमेलचुक (243.6 अंक) का रिकॉर्ड ध्वस्त किया। सौरभ के नाम अब जूनियर और सीनियर दोनों 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धाओं में वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हो गए हैं।

गोल्ड जीतने के साथ ही सौरभ ने 2020 टोक्यो ओलिंपिक खेलों का कोटा भी हासिल कर लिया। सौरभ यह कोटा पाने वाले तीसरे भारतीय शूटर हैं। सौरभ से पहले अपूर्वी चंदेला और अंजुम मौद्गिल ओलंपिक का कोटा हासिल कर चुके हैं। सौरभ चौधरी ने पिछले कुछ सालों में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत का नाम पूरी दुनिया में रौशन किया है। इससे पहले सौरभ एशियन गेम्स और यूथ ओलंपिक गेम्स में गोल्ड पर निशाना लगा चुके हैं। वहीं, सौरभ जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप और जूनियर वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुके हैं। सौरभ के इस शानदार प्रदर्शन के पीछे उनकी कड़ी मेहनत छिपी है, जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं।

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सौरभ चौधरी के घर में मौजूद शूटिंग रेंज (Photo: Indian Express)

इस टूर्नामेंट से पहले जब दुनिया के दिग्गज शूटर अपने खेल को धार देने और अपनी बंदूकों को परखने में लगे हुए थे तब सौरभ अपने मवेशियों को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर रहे थे। ताकि वह सुकून से ट्रेनिंग कर सके। सौरभ के कोच अमित श्योराण ने कहा, ” बागपत के बिनौली स्थित जिस एकेडमी से सौरभ ने एशियाड और यूथ वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए प्रशिक्षण लिया, था वो बहुत छोटी थी। यहां उनका ध्यान भी भटकता था। इसके अलावा, अपने घर से एकेडमी के लिए सुबह की ठंड में 45 मिनट की यात्रा करना भी एक अच्छा विचार नहीं था। इसलिए हमने उनके घर पर ही शूटिंग रेंज बनाने का फैसला किया।

श्योराण ने आगे कहा, ” सौरभ ने एक 15 मीटर लंबे कमरे को शूटिंग रेंज के मुताबिक ढाल कर अपनी प्रैक्टिस शुरु कर दी। हम लोग दिन में लगभग 6 घंटे और शाम को 2 घंटे प्रैक्टिस किया करते थे। इस दौरान हमारी यही कोशिश होती थी कि लगातार ज्यादा से ज्यादा स्कोर हासिल किया जाए। 16 साल के सौरभ चौधरी ने सिर्फ तीन साल में शूटिंग में वो मुकाम हासिल कर लिया है, जिसको पाने में कई शूटर्स की उम्र बीत जाती है। सौरभ ने कोच अमित श्योराण की पिस्टल से साल 2015 में दिल्ली में आयोजित 59वीं नेशनल चैंपियनशिप में यूथ वर्ग का गोल्ड मेडल जीता था। इसके बाद सौरभ ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। परिवार ने साथ दिया और उन्हें किसी तरह करीब ढाई लाख रुपये खर्च कर पिस्टल दिलाई। सर्दी गर्मी बरसात हर मौसम में रोज 12 किमी का सफर टैंपो से करते हुए सौरभ कलीना से बिनौली तक जाते और वहां करीब आठ घंटे तक नियमित अभ्यास किया करते थे। सौरभ की ये कड़ी मेहनत ही नतीजा है कि इतनी कम उम्र में वह वर्ल्ड लेवल पर अपनी धाक जमा चुके हैं।