टेनिस रोहन बोपन्ना युगल में नंबर एक खिलाड़ी बन गए हैं। इस साल की पहली ग्रैंडस्लैम प्रतियोगिता आस्ट्रेलियाई ओपन की सफलता से उन्हें यह सौभाग्य मिला। नंबर एक बनने के साथ उनका सफर कई पहल के साथ जुड़ गया। आस्ट्रेलिया के मैथ्यू एबडन के साथ उनकी जोड़ी भी विश्व में नंबर एक बन गई है। पुरुष युगल में यह उनका पहला ग्रैंडस्लैम खिताब रहा। साथ ही 43 की उम्र में खिताबी सपना साकार करने वाले वे सबसे उम्रदराज खिलाड़ी बन गए।
युगल के 16 साल के सफर में यह उनका सबसे नायाब तोहफा है। यह तोहफा ऐसे समय में आया है, जब उन पर उम्र हावी है। यह समय टेनिस सर्किट से दूर होने का है। टेनिस जैसे खेल में ताकत, दमखम और फुर्ती अहम है। सर्विस सटीक रहे, इसके लिए कंधे भी मजबूत रहने चाहिए। यह सब बढ़ती उम्र के साथ बनाए रखना बड़ी चुनौती है। इसलिए इस जज्बे और सफलता के लिए रोहन बोपन्ना को सलाम है।
यों टेनिस में भारत की युगल जोड़ियां काफी चर्चित रही हैं। इन जोड़ियों ने करिअर में कई यादगार जीत दर्ज कीं। खिताबी सफलताएं भले ही ज्यादा नहीं मिली हों पर प्रेमजीत लाल-जयदीप मुखर्जी, अमृतराज बंधु विजय और आनंद, लिएंडर पेस-महेश भूपति ने खूब सुर्खियां बटोरीं। इनमें श्रेष्ठ जोड़ी पेस-भूपति की रही जिन्होंने कई ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंट भी जीते। एक समय तो पेस-भूपति चारों ग्रैंडस्लैम – आस्ट्रेलियाई ओपन, विंबलडन, फ्रेंच ओपन और अमेरिकी ओपन के फाइनल में खेले। इनमें कुछ में जीत मिली और कुछ में हार। दोनों में तालमेल काफी अच्छा था। अगर इनमें मतभेद नहीं उभरते तो यह टेनिस जगत की सबसे कामयाब जोड़ी बनती।
कामयाबी इन्हें फिर भी मिली पर अलग जोड़ीदारों के साथ। आस्ट्रेलियाई ओपन के साथ भारतीय खिलाड़ियों का खासा प्यार रहा। लिएंडर पेस ने यहां मार्तिना नवरातिलोवा, मार्तिना हिंगिस और कारा ब्लैक के साथ मिश्रित युगल खिताब जीते। इसके अलावा चेकोस्लोवाकिया के राडेक स्टेपनेक के साथ 2012 में पुरुष खिताब भी जीता। महेश भूपति ने 2006 में मार्टिना हिंगिस और 2009 में सानिया मिर्जा के साथ जोड़ी बनाकर खिताबी जीत पाई।
सानिया मिर्जा ने 2016 में महिला युगल खिताब भी जीता। मार्तिना हिंगिस के साथ उनका प्रदर्शन गजब का रहा। अब रोहन बोपन्ना की खिताबी सफलता ने टेनिस जगत को युगल में भारतीय खिलाड़ियों की ताकत का अहसास कराया है। लेकिन भविष्य के प्रति सवालिया निशान है। आगे ऐसी कोई जोड़ी दिखाई नहीं दे रही जो युगल में सशक्त दिखती हो।
महिला युगल में सानिया मिर्जा ने खूब नाम कमाया। उन्होंने एक मजबूत युगल खिलाड़ी की पहचान ही नहीं बनाई बल्कि 2015 में विश्व की नंबर एक युगल खिलाड़ी भी बनीं। लेकिन पिछले साल उनके खेल से विदाई लेने के बाद भारतीय महिला टेनिस में शून्य सा आ गया है। ऐसी कोई प्रतिभा नजर नहीं आ रही जो सानिया का स्थान ले सके। वैसे भी एकल में कभी भी भारतीय महिला टेनिस का मजबूत पक्ष नहीं रहा।
लिएंडर पेस और महेश भूपति के टेनिस मानचित्र से ओझल होने के बाद रोहन बोपन्ना की यह खिताबी जीत भारतीय टेनिस को संजीवनी प्रदान करेगी। बोपन्ना युगल में सशक्त जोड़ीदार रहे हैं। एटीपी टूर पर उनके नाम कई खिताबी सफलताएं हैं। 24 खिताब उनकी उपयोगिता को बयां करते हैं। दस साल से वे मजबूत खिलाड़ी के तौर पर उभरे लेकिन बड़ी सफलताएं उनसे विमुख रही। चोटों से भी उनका करिअर प्रभावित हुआ। 2021 में तो स्थिति इतनी खराब हुई कि सात टूर्नामेंटों के पहले राउंड में ही उनकी विदाई हो गई। इनमें छह जोड़ीदार नए बने।
निराश रोहन ने तब खेल से दूर होने का मन बना लिया था। ऐसे में परिवार से मिले समर्थन से उन्हें नई ऊर्जा मिली। पिछले साल के शुरू एबडन उनके नए जोड़ीदार बने। शुरू में जमने में दिक्कत हुई पर तालमेल बैठ जाने पर सफलता कदम चूमने लगी। दोहा में एटीपी खिताब की सफलता से नया जोश मिला। फिर इंडियन वेल्स की सफलता से ग्रैंडस्लैम में भी जोड़ी ने बढ़िया प्रदर्शन किया।
विंबलडन के सेमीफाइनल में पहुंचना और अमेरिकी ओपन का फाइनल खेलना सफल जोड़ी की पहचान बन गया और अब उस टूर्नामेंट को जिसमें वे कभी भी तीसरे राउंड से आगे नहीं बढ़ पाए, उसे जीतकर सपना साकार किया। फाइनल में बोपन्ना-एबडन की जोड़ी ने इतालवी जोड़ी सिमोन बोलेली-आंद्रिया वावासोरी को सीधे सैटों में हराया। बोपन्ना 2010 और 2023 में अमेरिका ओपन के फाइनल में पहुंचे पर दोनों ही बार उन्हें उपविजेता रहकर संतोष करना पड़ा। 2024 की सफलता से बोपन्ना का आत्मविश्वास बढ़ेगा। लेकिन यह भी तय है कि उनका करिअर अब लंबा नहीं खींचने वाला। ऐसे में टेनिस फेडरेशन को विकल्प की तैयारी कर लेनी चाहिए।
पेस-भूपति के बाद उल्लेखनीय सफलता
लिएंडर पेस और महेश भूपति के टेनिस मानचित्र से ओझल होने के बाद रोहन बोपन्ना की यह खिताबी जीत भारतीय टेनिस को संजीवनी प्रदान करेगी।
बोपन्ना युगल में सशक्त जोड़ीदार रहे हैं। एटीपी टूर पर उनके नाम कई खिताबी सफलताएं हैं। 24 खिताब उनकी उपयोगिता को बयां करते हैं। दस साल से वे मजबूत खिलाड़ी के तौर पर उभरे लेकिन बड़ी सफलताएं उनसे विमुख रही। चोटों से भी उनका करिअर प्रभावित हुआ। 2021 में तो स्थिति इतनी खराब हुई कि सात टूर्नामेंटों के पहले राउंड में ही उनकी विदाई हो गई। इनमें छह जोड़ीदार नए बने।