एशियाई खेलों के दौरान 1982 में बिछी रिंग रेलवे राजधानी में आवाजाही का एक बेहतर विकल्प हो सकती है। लेकिन सरकारी उपेक्षा, स्टेशनों पर अवैध कब्जे, मुख्य सड़क से इन स्टेशनों तक पहुंच का दुष्कर होने के कारण इसकी कुल क्षमता का बमुश्किल केवल पांच फीसद का ही उपयोग हो पा रहा है। इतने बड़े संसाधन का केवल बेहतर प्रबंधन के अभाव में फायदा लोगों को नहीं मिल पा रहा है। जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि इसे मजबूत बना कर मेट्रो रेल की तरह इसकी सेवाएं थोड़ी-थोड़ी देर केअंतराल पर दी जा सकती हैं। इससे एक बड़ी आबादी को राहत और आरामदायक यात्रा मिलेगी।
रिंग रेल को राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भी मजबूत बनाने की कुछ कोशिश की गई थी। लेकिन वह कागजों तक ही सीमित रही। उस दौरान केवल कुछ स्टेशनों के रंगरोगन तक ही रही। इस बारे में दिल्ली सरकार अब विचार कर रही है। दिल्ली के परिवहन मंत्री ने इस विषय में रेलमंत्री से मुलाकात कर सहयोग मांगा है।
राजधानी के लिए काफी मुफीद हो सकने वाली रिंग रेल का बुरा हाल है। दिल्ली की भोगोलिक स्थिति के हिसाब से यह काफी बड़े हिस्से को अधिकतम सेवाएं दे सकती है। यह न केवल मध्य दिल्ली को आपस में जोड़ती है बल्कि इसका फायदा गाजियाबाद, साहिबाबाद, सोनीपत, पानीपत, जींद और पलवल जैसे इलाकों से आने जाने वाले लोग भी ले सकते हैं। सन 1982 से अपनी सेवाएं दे रही इस रेलवे नेटवर्क में पहले दो-तीन दर्जन ट्रेनें चलती थीं, वहां अब गिन कर केवल पांच गाड़ियां ही चल रही हैं। वह भी लोगों की जानकारी में नहीं होने की वजह से आधी अधूरी सेवाएं ही दे रही हैं। इसके करीब 36 किलोमीटर के रेल नेटवर्क में अवैध कब्जे का बोलबाला है।
निजामुद्दीन, प्रगति मैदान,तिलक ब्रिज, शिवाजी ब्रिज,नई दिल्ली, सदर बाजार, दिल्ली किशनगंज, विवेकानंद पुरी, दया बस्ती, कीर्ति नगर, पटेल नगर, नारायणा विहार, सरदार पटेल मार्ग, बरार स्क्वायर,चाणक्यपुरी, सरोजनी नगर, सफदरजंग, लोधी कालोनी, सेवा नगर और लाजपतनगर स्टेशन को मिलाकर एक रिंग रेल का नेटवर्क बनाने वाली इस लाइन पर कई बड़े व्यापारिक केंद्र हैं। यही व्यापारिक केंद्र इस नेटवर्क को असफल बनाने के लिए जिम्मेदार भी हैं।
जब 90 के दशक में दिल्ली में पर्यावरण अनुकूल वाहनों को बढ़ावा देने की कोशिशें चरम पर थीं। उस समय इस नेटवर्क की समीक्षा कर इसकी खामियों को दूर करने और इसे सफल बनाने की संभावना तलाशने की भी कोशिश की गई थी। तब इसके लिए ही जेएन सैकिया समिति बनी थी। समिति में शामिल रहे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील एमसी मेहता ने बताया कि समिति ने तब कोटला से टेÑन पकड़ कर इसके कई स्टेशनों का मुआयना किया था। लोगों से बातें की थी। तब भी पूरी ट्रेन खाली थी। तब समिति ने जो रपट पेश की उसमें बाताया गया था कि दिल्ली चांदनी चौक और दूसरे प्रतिष्ठानों के व्यापारियों की लॉबी इस रिंग रेल क ो असफल बनाना चाहती है। ताकि टैंक खाली रहे व मालवाहक गाड़ियों को आने जाने में कोई मुश्किल न आए। व्यापारियों का माल कहीं न अटके।
रेलवे में कई सालों तक अपनी सेवाए दे चुके एक अधिकारी ने माना कि व्यापारियों की लॉबी अभी भी इसे असफल बनाए रखना चाहती है ताकि मुंबई और इंदौर की ओर से आने वाली मालगाड़ियों जिनको आगे पंजाब की ओर जाना है उनकी आवाजाही बाधित न हो। समिति ने यह भी पाया कि इन स्टेशनों तक पहुंच मुश्किल है। जो यात्री कहीं और से आकर रेलगाड़ी से जाना चाहें तो उसके लिए मुख्य सड़क से यहां तक पहुंचना आसान नहीं है। समिति ने इसके लिए फीडर सेवाओं जैसी व्यवस्था देने की सिफारिश की थी।
उत्तर रेलवे के पूर्व अधिकारी बीके शुक्ल का कहना है कि रिंग रेल को न केवल मजबूत बनाया जा सकता है बल्कि कुछ और स्टेशनों को इससे जोड़ कर इसका और विस्तार किया जा सकता है। इसको लोकप्रिय बनाने के लिए टेÑनों की उपलब्धता के बारे में और उनकी समय सारिणी बना कर लोगों को उसकी जानकारी देकर इसे सफल बनाया जा सकता है। अभी इस रूट पर केवल पांच गाड़ियां हैं जो अपनी सेवाएं देकर दिन भर खड़ी रहती हैं। रैक और इंजन की कमी नहीं है। इसे 10 से 15 मिनट के अंतराल पर भी चलाया जा सकता है।
शुक्ल के मुतिाबिक तिलक ब्रिज स्टेशन पर तीन नई लाइनें बिछने के बाद से इस लाइन का अधिक उपयोग किया जा सकता है। वे कहते हैं कि जिस स्टेशन पर जिस समय प्लेटफार्म खाली न मिले उस वक्त समय सारिणी में उस गाड़ी को उस स्टेशन पर न रोका जाए तो भी दिक्कत नहीं है। अगली टेÑन से वहां के यात्री जा सकें यह प्रावधान भी हो सकता है। दिल्ली सरकार की अपील पर अब रेलमंत्री ने फिर एक समिति बना कर इसकी पड़ताल करने की बात कही है।

