भारत को निशानेबाजी में ओलंपिक में चार मेडल हासिल हुए हैं। साल 2004 में राज्यवर्धन राठौड़ ने सिल्वर मेडल जीता, साल 2008 में अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड मेडल जीता वहीं साल 2012 में विजय कुमार ने सिल्वर और गगन नारंग ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। शूटिंग में भारत के प्रदर्शन को देखते हुए ही हर बार ओलंपिक मेडल की उम्मीद जताई जाती है। हालांकि साल 2016 में रियो ओलंपिक और 2021 में टोक्यो ओलंपिक में भारत शूटिंग में खाली हाथ रहा। पेरिस ओलंपिक के लिए भी भारतीय दल तैयार है। इस दल में कई नए नाम हैं लेकिन टोक्यो ओलंपिक के कई टॉप निशानेबाजों का नाम नदारद थे।

टोक्यो ओलंपिक के कई नाम गायब

साल 2021 में हुए टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत ने 15 निशानेबाजों का दल भेजा था। उस दल में तत्कालीन वर्ल्ड नंबर वन एलावेनिल वालारिवन, एशियन गेम्स और यूथ ओलंपिक मेडलिस्ट सौरभ चौधरी और पूर्व वर्ल्ड नंबर वन अभिषेक वर्मा जैसे बड़े नाम शामिल थे। सौरभ चौधरी इकलौते ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने टोक्यो में शूटिंग के किसी इवेंट के फाइनल में जगह बनाई थी। हालांकि सौरभ और अभिषेक और अपूर्वी चंदेला जैसे बड़े नाम इस बार ट्रायल्स में भी नजर नहीं आए। ऐलावेनिल ने ट्रायल्स में तो हिस्सा लिया लेकिन वह दल में जगह नहीं बना सकीं।

सिस्टम में गलती है

बीते तीन सालों में यह खिलाड़ी नियमित प्रदर्शन करने में नाकाम रहे। खिलाड़ियों के नियमित प्रदर्शन की कमी को लेकर पूर्व नेशनल कोच जसपाल राणा ने जनसत्ता.कॉम से बात की। जसपाल राणा से सवाल किया गया कि भारतीय निशानेबाजों के नियमित प्रदर्शन में कमी का क्या कारण है। जसपाल ने केवल एक वाक्य में इस सवाल का जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘प्रॉब्लम हमारे निशानेबाजों में नहीं प्रॉब्लम सिस्टम में है।’जसपाल ने इस सवाल पर विस्तार से बात नहीं की।

सेलेक्शन पॉलिसी पर कायम रहे NRAI

जसपाल ने यहां सेलेक्शन पॉलिसी को लेकर चल रहे विवाद पर भी बात की। उन्होंने कहा कि नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के लिए यह बेहद अहम है कि वह किसी के लिए भी अपने तय किए गए मानक न बदले। उन्होंने कहा, ‘मैं बस यही चाहता हूं कि एनआरएआई ने जो सेलेक्शन के लिए जो नियम बनाया वह उसी पर कायम रहे। किसी भी शूटर के लिए बदलाव करने की जरूरत नहीं है। जब दबाव में ऐसा होता है तो गलती वहीं से शुरू हो जाती है। जो जैसे है उसे वैसा ही रहने दें। जो खिलाड़ी नियम के मुताबिक चुना जाए उसी को भेजें। बात खत्म।’

दबाव में नियम न बदलें जाएं

उन्होंने आगे कहा, ‘कोर्ट भी यही कहता है कि अगर आप एक खिलाड़ी के लिए नियम बदल सकते हैं तो बाकियों के लिए क्यों नहीं। बाकी खिलाड़ी भी सेलेक्शन को लेकर सवाल खड़े कर सकते हैं क्योंकि सभी को यह हक है। ऐसे में कोर्ट वही करेगा जो कि सही होगा। अगर आपने 33 प्रतिशत को पासिंग मार्क्स बनाया है तो वही रखें, किसी के कहने पर 32 प्रतिशत लाने वालो को पास मत कीजिए। कई खिलाड़ियों ने कोटा जीता लेकिन वह ट्रायल्स में अच्छा नहीं कर पाए और इसी कारण अब वह पेरिस नहीं जा पाएंगे। यही नियम है।’