ओलंपिक इतिहास में भारत को हॉकी में सबसे ज्यादा मेडल मिले हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर हैं शूटिंग और रेसलिंग। भारत को रेसलिंग में 7 मेडल हासिल हुए हैं। हर बार पहलवानों से मेडल की उम्मीदें होती हैं। हालांकि इस बार स्थिति अलग है। बीते 1 साल में भारतीय रैसलर्स और भारतीय रेसलिंग दोनों ही विवादों की वजह से सुर्खियों में रहे हैं। कुछ रैसलर्स रेसलिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष के खिलाफ धरने पर बैठ गए।
इसके बाद आईओए द्वारा एक एडहॉक समिति बनाई गई जिसे फेडरेशन का काम देखने की जिम्मेदारी दी गई। चुनाव न होने के कारण रेसलिंग की अंतरराष्ट्रीय फेडरेशन ने भारतीय रेसलिंग फेडरेशन पर बैन लगा दिया। फेडरेशन के चुनाव हुए और इसके बाद फेडरेशन और एडहॉक समिति के बीच लड़ाई शुरू हुई। एक ऐसी लड़ाई जिसके बीच भारतीय पहलवान पिस्ते रहे।
लड़ाई में पीसे पहलवान
एक समय पर दो-दो नेशनल में जाना, दो-दो ट्रायल्स में जाना और आखिरी समय तक यह तय न होना की ओलंपिक जाएगा कौन? भारतीय पहलवानों के लिए बीते 6-7 महीने खेल के लिए लिहाज से उतार-चढ़ाव से भरे रहे। इसके बावजूद पांच महिला रेसलर ने ओलंपिक कोटा हासिल करके इतिहास रचा। पुरुष रेसलर अमन शेरावत भी ओलंपिक कोटा हासिल करने में कामयाब रहे अब। इन 6 खिलाड़ियों पर जिम्मेदारी है कि वह पिछले चार ओलंपिक से रेसलिंग में आ रहे मेडल की कड़ी को पेरिस ओलंपिक में भी जारी रखें।
विनेश फोगाट पर रहेंगी नजरें
बीते 1 साल में विनेश फोगाट ने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ देखा। विनेश फोगाट पिछले साल रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ धरने पर बैठी थी ।लगभग एक महीना सड़क पर बैठने के बाद उन्होंने कुश्ती में वापसी की। एशियन गेम्स से पहले विनेश चोटिल हो गईं जिसके कारण उन्हें अपनी सर्जरी करानी पड़ी।
सर्जरी से रिकवर होने में विनेश को काफी समय लगा। यही कारण था कि न तो वह एशियन गेम्स खेल पाई और न ही वर्ल्ड चैंपियनशिप से ओलंपिक कोटा हासिल कर पाईं। विनेश फोगाट इस बार 50 किलोग्राम की वेट कैटेगरी में उतरेंगी। उनकी राह आसान नहीं है। उनके लिए सबसे पहली चुनौती है अपना वेट कायम रखना। 50 किलोग्राम वजन को दो दिनों तक कायम रखना आसान काम नहीं है। ओलंपिक क्वालिफायर टूर्नामेंट के दौरान भी विनेश को अपना वजन कायम रखने में परेशानी हुई थी।
विनेश के लिए दूसरी चुनौती यह है कि कि उन्हें इस कैटेगरी में कोई वरीयता नहीं दी गई है। इसका मतलब है कि उनके के लिए ड्रॉ आसान नहीं होगा। उन्हें हर एक मैच में कड़े प्रतिद्वंद्वी मिलने वाले हैं। हालांकि विनेश की पूरी कोशिश होगी कि वह अपने तीसरे ओलंपिक में ऐतिहासिक मेडल जीत कर जाए।
अंशु हुई चोटिल
22 साल की अंशु मलिक अपना दूसरा ओलंपिक खेलने जा रही हैं। अंशु ने इस साल की शुरुआत में जापान में हुए ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लिया था। इसके बाद उनकी फुर्ती बढ़ गई है। हालांकि उनका कंधे पर चोट भी आई और उसके बाद उन्हें 15 दिन तक आराम की सलाह दी गई। ओलंपिक जैसे बड़े टूर्नामेंट से पहले चोट के कारण अंशु पूरी तरह ट्रेनिंग नहीं कर पाई।
रीतिका हुड्डा कर सकती हैं हैरान
भारत की 21 साल की रेसलर रितिका हुडा ओलंपिक मेडल की बड़ी दावेदार हैं। वह इस साल एक सरप्राइज मेडल लेकर आ सकती हैं। रितिका हुड्डा 71 किलोग्राम वेट कैटेगरी में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली है रितिका ने पिछले साल अंदर 23 वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती थी। वह ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला रेसलर बनी थीं। रितिका के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए अच्छी बात यह है कि वह उस प्रतियोगिता के बाद से अब तक केवल एक ही मुकाबला हारी।
अमन और निशा की राह मुश्किल
ओलंपिक में भारत के इकलौते पुरुष पहलवान अमन सरावत को 57 किलोग्राम वेट कैटेगरी में वरीयता मिली है। अमन उसी कैटेगरी में हिस्सा लेने वाले हैं जिसमें पिछले पिछले ओलंपिक में भारत के रवि दहिया ने सिल्वर मेडल जीता था। अमन के लिए चुनौती आसान नहीं होने वाली है उनके ड्रॉ में कई ऐसे खिलाड़ी शामिल है जो उनका मेडल तक का रास्ता बहुत मुश्किल कर सकते हैं। निशा दहिया की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। निशा दहिया को सीड नहीं मिली है जिससे उनका ड्रॉ काफी मुश्किल है।
अंतिम पंघाल हैं बड़ी उम्मीद
भारत की मेडल की सबसे बड़ी उम्मीद रेसलिंग में अंतिम पंघाल हैं। अंतिम ने बीते साल अपने आप को साबित किया है। उन्होंने पहले अंडर 20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था। इसके बाद सीनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में अपने डेब्यू में ही ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया। इसी ब्रॉन्ज मेडल ने उन्हें ओलंपिक कोटा भी दिलाया। अंतिम को अपने इसी ब्रॉन्ज के कारण दी गई है जिसका असर उनके ड्रॉ पर भी हुआ है। 53 किलोग्राम वेट कैटेगरी में अंतिम की राह आसान है। अगर वह हर मुकाबले में अपना सर्वश्रेष्ठ करती है तो उनके लिए मेडल हासिल करना बहुत मुश्किल काम नहीं होगा। हालांकि अंतिम का पहला ओलंपिक है और मैं 19 साल की उम्र में इतने बड़े स्तर पर प्रदर्शन करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।