हर पैरा-एथलीट की कहानी में शारीरिक और मानसिक चुनौतियां, सामाजिक मान्यता मिलने की लड़ाई और अविश्वसनीय बाधाओं पर विजय पाना शामिल होता है। लैंडमाइन ब्लास्ट (बारूदी सुरंग धमाके) से बचे नारायण कोंगनापल्ले और रेल दुर्घटना में पैर गंवाने वाली अनीता की कहानी भी बहुत मोटिवेशनल (प्रेरणादायी) है, खासकर उन लोगों के लिए जो शारीरिक कमी को अपनी लाचारी मान लेते हैं। नारायण कोंगनापल्ले और अनीता 2024 पेरिस पैरालंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। नारायण और अनीता पेरिस में पैरा-रोइंग में PR3 मिक्स्ड डबल स्कल्स में हिस्सा लेंगे। यह पहली बार होगा जब भारत पैरालंपिक में नए बोट क्लास (रोइंग) में हिस्सा लेगा।

दो साल पहले एक-दूसरे से मिले नारायण और अनीता

आंध्र प्रदेश के रहने वाले नारायण 2018 से प्रतिस्पर्धी रोइंग में हैं, लेकिन अनीता के साथ उनकी साझेदारी 2022 में ही शुरू हुई, जब उन्हें 2023 एशियाई खेलों और 2024 पैरालंपिक के कार्यक्रम के कारण महिला टीममेट की तलाश करनी पड़ी, क्योंकि वहां PR3 पुरुष युगल स्पर्धा को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन PR3 मिक्स्ड डबल्स को जगह दी गई थी। PR3 उन रोवर्स की श्रेणी है, जो रोइंग के लिए अपने पैर, धड़ और हाथ के साथ-साथ स्लाइडिंग सीट का इस्तेमाल कर सकते हैं। नारायण ने इससे पहले 2022 में पोलैंड में अपने साथी कुलदीप सिंह के साथ वर्ल्ड रोइंग कप II में कांस्य पदक जीता था, लेकिन अब उन्हें बदलाव की जरूरत थी।

दरअसल, पुणे में उनके प्रशिक्षण केंद्र आर्मी रोइंग नोड (ARN) में बहुत अधिक महिला पैरा-रोअर नहीं थीं। फिर 2022 में एक दिन, पुणे में भारतीय सेना की ओर से संचालित संस्थान आर्टिफिशियल लिम्ब सेंटर में नारायण की मुलाकात अनीता से हुई। उन्होंने अनीता को अपना रोइंग पार्टनर बनने के लिए कहा। अनीता को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि एक खेल के रूप में रोइंग में क्या-क्या होता है।

रोइंग से अनजान थीं अनीता

नारायण के हवाले से फर्स्टपोस्ट ने लिखा, ‘मैं आर्टिफिशियल लिम्ब सेंटर में था। वहां मेरी मुलाकात अनीता से हुई। मैंने उससे कहा कि 10 महीने में एशियाई पैरा गेम्स होने वाले हैं। अगर आप इच्छुक हैं तो आप इसमें हिस्सा ले सकती हैं। अनीता को खेल के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए मैंने उन्हें इसके बारे में विस्तार से बताया और जब वह तैयार हो गई, तो उन्होंने मुझसे कहा कि परिवार से मंजूरी लेनी होगी। उनका परिवार राजस्थान में रहता था।’

अनीता के लिए यह उनके जीवन में एक नया अध्याय लिखने का मौका था। अनीता ने बताया, ‘मेरी दुर्घटना के बाद, मैंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। मैं अपना कृत्रिम अंग बनाने के लिए पुणे आती थी, जहां मेरी मुलाकात नारायण सर से हुई। उन्होंने केंद्र में मुझसे संपर्क किया। मुझे खेल के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन फिर भी मैंने दिलचस्पी दिखाई। नारायण सर से मिलने के बाद मुझे लगा कि मैं यह कर सकती हूं। उसके बाद मैंने YouTube से खेल के बारे में सीखा। फिर दिसंबर में हमने अभ्यास करना शुरू किया।’

इन लोगों को मिला साथ

नारायण और अनीता के बीच हुई इस आकस्मिक मुलाकात ने एक सपने को जन्म दिया। कोच मोहम्मद आजाद ने नारायण के पिता से तुरंत संपर्क किया। नारायण के पिता भी भारतीय सेना में ही हैं। भारतीय सेना से विशेष सहायता मिलने के बाद चीजें सही होने लगीं। मोहम्मद आजाद खुद एशियाई चैंपियनशिप के रजत पदक विजेता हैं। नारायण ने बताया, ‘उसके (अनीता) माता-पिता सहमत हो गए। लेकिन नारायण के लिए वहां रहना एक समस्या थी, इसलिए आर्मी रोइंग नोड के प्रमुख कर्नल आर रामकृष्ण ने उनके पिता का तबादला पुणे कराने में मदद की। इस तरह हमारी पार्टनरशिप की शुरुआत हुई।’

अनीता के लिए एक नए शहर में शिफ्ट करना तो समस्या थी ही, उससे भी बड़ी चुनौती एक साल से कम समय में होने वाले एशियाई पैरा गेम्स से पहले इस खेल की तरकीबें सीखना था। अनीता ने बताया, ‘शुरुआत में मुझे इस खेल के बारे में कुछ भी नहीं पता था। यह कठिन था। मैंने 20 दिसंबर 2022 से अभ्यास शुरू किया। हमने स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, एर्गोमीटर और तैराकी से शुरुआत की। एक महीने के बाद, मैंने नारायण सर और आजाद सर के मार्गदर्शन में नौकायन शुरू कर दिया।’

अक्टूबर 2023 में जीता रजत पदक

अनीता और नारायण ने अक्टूबर 2023 में एशियाई पैरा गेम्स में 8:50.71 के समय के साथ रजत पदक जीता। यह अविश्वसनीय ही था? संयोग से हुई मुलाकात के सिर्फ 10 महीने बाद अनीता और नारायण दोनों ही एशिया की शीर्ष खेल प्रतियोगिता में रजत पदक विजेता बन गए।

रोइंग कभी अनीता के रडार पर नहीं थी। कॉलेज के प्रथम वर्ष में उसका पूरा ध्यान शिक्षा पूरी करने और पिता की तरह सरकारी नौकरी पाने पर था। हालांकि, 2013 में एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन, 17 साल की अनीता एक ट्रेन से फिसल गई। इस दर्दनाक दुर्घटना में उनका बायां पैर काटना पड़ा। नारायण बचपन से ही फुटबॉल या कबड्डी में अपना करियर बनाना चाहते थे, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारी के चलते वह 2007 में सेना में शामिल हो गए। साल 2016 उनके लिए त्रासदी लेकर आया। जम्मू में पोस्टिंग के दौरान एक बारूदी सुरंग धमाके में उन्हें अपना बायां पैर गंवाना पड़ा।

नारायण ने 2018 में रोइंग शुरू की

नारायण ने बताया, ‘मैंने अपना बायां पैर खो दिया। मैं 4-5 महीने तक उधमपुर के एक अस्पताल में रहा। उसके बाद कृत्रिम अंग के लिए मैं पुणे आया। कर्नल गौरव दत्ता ने मुझे पैरा स्पोर्ट्स में शामिल होने के लिए कहा और मुझे प्रेरित किया…। 2016-17 में, मैंने भाला फेंक में हिस्सा लिया, लेकिन दौड़ने में समस्या हो रही थी। 2018 में उन्होंने मुझे फिर आने के लिए कहा, क्योंकि पैरा गेम्स में रोइंग को जोड़ा जा रहा था। मैंने 2018 में रोइंग शुरू की।’

नारायण ने बताया, ‘इंडोनेशिया में 2018 के खेलों में रोइंग नहीं थी, इसलिए मैंने हिस्सा नहीं लिया, लेकिन मैं आर्मी रोइंग नोड में अभ्यास करता रहा। उन्होंने मुझे सभी सुविधाएं दीं। साथ ही भविष्य की प्रतियोगिताओं के लिए प्रयास करते रहने के लिए कहा। रोइंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भी हमारा साथ दिया। उन्होंने हमें 2019 में पहले अंतरराष्ट्रीय आयोजन के लिए पोलैंड भेजा। कुलदीप सिंह और मैंने कांस्य पदक जीता। 2019 में दक्षिण कोरिया में, हमने कांस्य जीता। हमने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया।’

खेल ने जीवन को अलग स्तर पर पहुंचाया: नारायण

नारायण ने बताया, ‘खेल ने मेरे जीवन को एक अलग स्तर पर पहुंचा दिया है। मेरी शादी के कुछ महीने बाद ही लैंडमाइन दुर्घटना हुई। मुझे लगा कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। पूरी जिंदगी मैं एक ही जगह तक सीमित रहूंगा या फिर मुझे मदद के लिए चलने पर मजबूर होना पड़ेगा। मुझे कृत्रिम अंगों के बारे में भी नहीं पता था, लेकिन मेरे डॉक्टर ने मुझे इस बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मुझसे भी बदतर परिस्थितियों में लोग कैसे सामान्य जीवन जी रहे हैं।’

नारायण ने कहा, ‘मैंने 7 महीने तक घर वालों को दुर्घटना के बारे में नहीं बताया। मैं 11 महीने तक घर भी नहीं गया। मैं कृत्रिम अंग बनवाने के बाद ही घर गया। अगर मेरे परिजन को मेरे नुकसान के बारे में पता चलता तो वे बहुत परेशान हो जाते, इसलिए मैंने उन्हें कुछ नहीं बताने का फैसला किया। लेकिन नौकायन ने मुझे सभी कठिनाइयों से बाहर निकलने में मदद की और मेरे जीवन को एक नया अर्थ दिया।’

जीवन में पहले से ही संघर्षों से जूझने के बाद नारायण और अनीता अब पैरालंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए दृढ़ हैं। उन्होंने 7:50.80 के समय के साथ एशियाई क्वालिफाइंग चैंपियनशिप जीतने के बाद क्वालिफाई किया, जो एशियाई पैरा गेम्स में उनके 8:50.71 के समय से काफी बेहतर है। पैरालंपिक के लिए अपनी योजनाओं के बारे में नारायण ने कहा कि उन्होंने ट्रेनिंग में 7:40 का समय हासिल किया है और पेरिस में इससे भी बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगे।