राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल समेत कई पदक अपने नाम करने वाली उत्तराखंड की गरिमा जोशी आज पाई-पाई को मोहताज है। कारण है उसका एक एक्सीडेंट में चोटिल होना। गरिमा की हिम्मत भरी कहानी जानकर आप भी उन्हें सलाम करने पर मजबूर हो जाएंगे। गरिमा ने साल 2013 में सबसे पहले देहरादून में आयोजित मैराथन में तीसरा स्थान प्राप्त किया। इसके बाद साल 2014 में उन्होंने अहमदाबाद में नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। इसके अगले साल वह नैशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप भी खेली। साल 2016 में कर्नाल रेस में उन्होंने तीसरा स्थान प्राप्त किया। जिसके बाद उत्तराखंड सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया था। उत्तराखंड सरकार ने स्लोगन ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ में गरिमा की तस्वीर लगाई। पिछले साल 31 मई 2018 को हुई एक दुर्घटना के बाद गरिमा की जिंदगी एकदम से बदल गई। दरअसल, वह बंगलुरू में प्रैक्टिस के दौरान एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी और इसके बाद व्हीलचेयर पर आ गई।

इस एक्सीडेंट में उन्हें स्पाइनल कॉर्ड इंजरी हुई। जिसके बाद कर्नाटक में उनका ऑपरेशन किया गया। उस दौरान गरिमा को खुद से ज्यादा चिंता अपनी माता की इलाज की थी। उनकी मां साल 2012 से कैंसर से जूझ रही थीं। उनके परिवार वाले गरिमा का इलाज नहीं करा सकते थे, लिहाजा सरकार ने उनके इलाज के लिए पैसे दिए। गरिमा के पिता ने अपनी पत्नी के इलाज के लिए बैंक से लोन लिया। इसी साल 2 मार्च को गरिमा ने अपनी मां को खो दिया और पिता भी बैंक से लिए लोन को चुकाने में नाकाम रहे।

एक्सीडेंट के बाद गरिमा व्हीलचेयर पर भले ही आ गई हो, लेकिन उन्होंने अपने खेल को जारी रखा। व्हीलचेयर पर ही उन्होंने गेम्स के लिए अभ्यास करना शुरू किया। पिछले साल दिल्ली में हुई एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन में उन्होंने पहला स्थान भी हासिल किया। इसके अलावा उन्होंने दूसरे प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लिया। गरिमा के हालात इस समय बेहद खराब हैं और उन्हें आर्थिक सहायता की सख्त जरूरत है।