श्रीशचंद्र मिश्र 

अब जबकि रूस में अगले साल होने वाली विश्व कप फुटबाल प्रतियोगिता में ज्यादा समय नहीं रह गया है, यह गंभीर सवाल उठने लगा है कि क्या प्रतियोगिता नस्लभेदी टिप्पणियों से मुक्त हो पाएगी। यह आशंका इसलिए है क्योंकि रूसी दर्शक काली चमड़ी वाले खिलाड़ियों पर भद्दी फब्तियां कसने के लिए कुख्यात रहे हैं। आज खेलों की दुनिया में काफी बदलाव आया है। खिलाड़ियों को उनकी चमड़ी के आधार पर नहीं बल्कि प्रतिभा के बूते मान्यता मिल रही है। फिर भी नस्लभेद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और समय-समय पर उसका घिनौना रूप दिख जाता है।  तीन साल पहले इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन आरोपों के घेरे में आए। इस मुद्दे पर भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर गई थी, इसी मसले पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) में खासी ठन भी गई। भारतीय पक्ष का आरोप था कि 10 जुलाई 2014 को दोनों देशों के बीच हुए पहले टैस्ट के दूसरे दिन लंच के लिए मैदान से बाहर जाते समय एंडरसन ने रविंद्र जडेजा को गाली दी और उन्हें धक्का दिया।

अभद्र भाषा का इस्तेमाल तो उन्होंने किया ही, नस्लीय टिप्पणी भी की। बाद में दोनों पक्षों ने सुलह कर ली। बीसीसीआइ ने ऐसी दृढ़ता हालांकि तब नहीं दिखाई गई जब 1974 में सुधीर नाइक को दो जोड़ी जुर्राब जुराने के कथित आरोप में घेरकर डिपाटर्मेंटल स्टोर के गार्ड ने पूरी एशियाई नस्ल को लांछित करते हुए अभद्र टिप्पणी की थी। 2007 में नाटिंघम में ही जहीर खान के बल्लेबाजी के लिए उतरने पर इंग्लैंड के खिलाड़ियों ने जेलीबीन थूक कर उन्हें चिढ़ाया। तब भी इस घटना का सख्ती से विरोध नहीं किया गया। दिलचस्प बात यह है कि मैदान में बेवजह आक्रामकता दिखाने और उस बहाने विरोधी खिलाड़ियों पर टीका टिप्पणी या नस्लीय इशारों के खिलाफ वे इयन चैपल आवाज उठा रहे हैं जो खुद और उनकी आस्ट्रेलियाई टीम आज तक मैदान पर इस तरह की हरकत करती आई है। एंडरसन-जडेजा मामले में मैदान में मौजूद दोनों अंपायरों का निष्क्रिय रहना भी सवाल खड़े करता है।

यह बीमारी केवल गोरी चमड़ी वाले देशों में ही नहीं है। भारतीय दर्शक भी पाकिस्तान व श्रीलंका के खिलाड़ियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करते रहे हैं। अफ्रीकी मूल के खिलाड़ियों पर तो भारतीय खिलाड़ी भी अभद्र टिप्पणी करने से नहीं चूकते। आस्ट्रेलियाई दौरे पर हरभजन सिंह का एंड्रयू साइमंड्स को मंकी कहना खासा विवाद की वजह बना।हालांकि लीपापोती करके उस मामले को शांत कर दिया गया था। नस्लभेद की वजह से जिंबाब्वे में क्रिकेट चौपट हो गया। गोरी सत्ता थी तो सफेद चमड़ी की टीम। सत्ता का रंग बदला तो काली चमड़ी को प्रोत्साहन। इससे असंतुलन बना और पूरा ढांचा लड़खड़ा गया।
नस्लीय टिप्पणियां गोरे खिलाड़ी ही हमेशा नहीं करते। कुछ साल पहले आस्ट्रेलिया के विकेटकीपर एडम गिलक्रिस्ट ने शिकायत की कि पाकिस्तान के राशिद लतीफ ने विश्व कप के मैच के दौरान उन्हें नस्लीय गाली दी। यह 2003 की बात है। क्रिकेट में नस्ल भेद रोकने के लिए आईसीसी ने आचार संहिता बना रखी है। जिसका उल्लंघन करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। लेकिन इस आरोप में किसी खिलाड़ी को सजा मिलने का कोई मामला सामने नहीं आया है। पाकिस्तान में जन्मे और अब आस्ट्रेलियाई नागरिक स्पिनर फवाद अहमद आज भी नस्लीय लांछन झेल रहे हैं।