मनोज चतुर्वेदी
डेविस कप के बारे में कहा जाता है कि यह भिन्न बॉल गेम है। इसका मतलब यह है कि इसमें खिलाड़ी की रैंकिंग का बहुत फर्क नहीं पड़ता। रमेश कृष्णन और लिएंडर पेस ने अपने से ऊंची रैंकिंग के खिलाड़ियों को हराकर इसे साबित भी किया है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में भारत इस खेल में थोड़ा पिछड़ गया है। इन सब के बाद भी रामकुमार रामनाथन और युकी भांबरी के खेल को देखते हुए कयास लगाया जा सकता है कि भारत का भविष्य उज्वल है। इस बार कनाडा से मुकाबला होने की वजह से उम्मीद की जा रही थी कि कोई कमाल जरूर होगा, क्योंकि उनके पास डेनिस शापोवालोवा के रूप में एकमात्र 51वीं रैंकिंग का खिलाड़ी था। इसके बाद भी भारत हार गया। लिएंडर और महेश भूपति के रहते भारत के बारे में माना जाता था कि युगल मुकाबला तो जीत ही जाएगा, लेकिन रोहन बोपन्ना इस विरासत को आगे बढ़ाने में असफल साबित हुए हैं। इसके अलावा युकी भांबरी ने यदि पहले एकल में पूरी रंगत में प्रदर्शन किया होता तो भारत को पहले दिन ही 2-0 की बढ़त मिल सकती थी।

इसी तरह उलट एकल में रामकुमार के सामने दूसरे सेट में चार बार इसे जीतकर बराबरी करने का मौका आया। पर वह इसका फायदा नहीं उठा सके। भारतीय कप्तान महेश भूपति इस हार के बावजूद निराश नहीं हैं। उन्हें लगता है कि हमारी टीम ने यदि कुछ मिले मौकों का फायदा उठाया होता परिणाम भिन्न हो सकता था। वह कहते हैं कि हमारे खिलाड़ियों ने जबर्दस्त संघर्ष किया और विश्व ग्रुप के करीब पहुंचे।असल में पहले युगल जोड़ी के साथ सोमदेव देववर्मन की मौजूदगी भारत की संभावनाओं को मजबूत बनाती थीं। लेकिन इसके बाद भारतीय टेनिस लिएंडर पेस और महेश भूपति के टकराव में उलझकर रह गई। सही मायनों में इस विवाद ने भारतीय टेनिस का माहौल नकारात्मक बना दिया।