मनीष कुमार जोशी
भारत के विश्वनाथन आनंद एक बार फिर रैपिड चेस के विश्व चैंपियन बन गए। रियाद में उन्होंने ट्राई ब्रेकर में रूस के फिडासिव को पराजित कर 14 साल बाद खिताब हासिल किया। आनंद का यह खिताब महज पुरस्कार नहीं, बल्कि उनके आलोचकों को करारा जवाब है। दरअसल, कुछ समय से आनंद फार्म से बाहर चल रहे थे। इस दौरान उनके आलोचकों ने उन्हें चुका हुआ मान लिया था। हालत यह थी कि पूर्व चैंपियन कास्पोरोव ने भी आनंद को संन्यास लेने की सलाह दी थी। हालांकि शानदार वापसी कर आनंद ने सबका मुंह बंद कर दिया।
सऊदी अरब के रियाद में चल रहे इस चैंपियनशिप के शुरू में आनंद को कोई खास तवोज्ज नहीं दी जा रही थी। लंदन और सेंट लुईस में आनंद के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद रैपिड चेस में उनकी कामयाबी की उम्मीद किसी को नहीं थी। कार्लसन की मौजूदगी में तो जरा भी नहीं। प्रतियोगिता के 9वें राउंड में कार्लसन को पराजित कर आनंद ने सबका ध्यान आकर्षित किया। अंतिम दौर के बाद आनंद 10.5 अंकों के साथ संयुक्त प्रथम स्थान पर थे। इसके बाद टाई ब्रेकर हुआ जिसमें आनंद ने रूस के फिडोसिव को पराजित कर दिया।
यह जीत उनके लिए काफी अहम थी। अगर वे यहां अच्छा प्रदर्शन नहीं करते तो शायद संन्यास की ओर बढ़ते।
2013 में विश्व शतरंज में कार्लसन से हार के बाद से आनंद के खेल में गिरावट आ रही थी। वास्तव में नई सोच और तकनीक के आगे उसकी रणनीति नाकाम हो रही थी। ब्लिट्ज शतरंज (सबसे तेज खेली जाती है) में भी आनंद एक चाल में लगभग डेढ़ मिनट का समय लेने लगे थे। उनकी इस धीमी चाल ने ही सतरंज जगत में उन्हें पीछे धकेलना शुरू कर दिया था। हालांकि आनंद ने रैपिड चेस में अपनी रणनीति पर बहुत काम किया। उन्होंने बताया कि वो लैपटॉप लेकर घंटों तक खेल का विश्लेषण करते थे। मैच से पहले भी वह लैपटॉप पर अपनी रणनीति की समीक्षा करते।
बादशाहत
आनंद 1988 में ग्रैंड मास्टर बने थे और 2000 में विश्व चैंपियन। उसके बाद लगातार वह शतरंज के सिरमौर बने रहे। 2013 में विश्व शतरंज में हारने के बाद उनके खेल में गिरावट आती गई।
रंग में लौटे आनंद
विदेशी मीडिया ने आनंद को ‘वेटरन’ कह कर संबोधित किया है। वहीं शतरंज के जानकार बताते हैं कि इस प्रतियोगिता में आनंद में वो ही तेजी दिखी दी जो पहले थी। 2007 में आनंद को दुनिया में सबसे तेज शतरंज खेलने वाला माना जाता था। उस समय आनंद के मुकाबले में कोई नहीं था।
मां ने सिखाया धैर्य
एकांत में समय बिताने वाले आनंद को शतरंज उनकी मां ने सिखाई। उन्होंने ही धैर्य का पाठ भी पढ़ाया। कई विवादों में नाम आने के बाद भी उन्होंने सबका जवाब खेल से दिया। सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलने पर आनंद का नाम उछला लेकिन उन्होंने सचिन को बधाई देकर विवाद को समाप्त कर दिया।