भारत में खेल प्रशासन में सुधार के ऐतिहासिक कदम के तौर पर मंगलवार (12 अगस्त) को राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक संसद में पास हो गया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा और खेल संहिता (2011) की जगह लेगा। यह भारतीय खेल प्रशासन में पारदर्शिता,जवाबदेही और संस्थागत निगरानी सुनिश्चित करेगा।

2011 की खेल संहिता सुशासन के लिए एक मार्गदर्शक ढांचे के रूप में कार्य करती थी, लेकिन इसमें महत्वपूर्ण सुधारों को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनी नियमों का अभाव था। नए विधेयक का उद्देश्य प्रमुख बदलावों के साथ इस कमी को पूरा करना है। इसमें वैधानिक निकायों का गठन और खेल प्रशासकों के लिए संशोधित पात्रता मानदंड शामिल हैं।

खेल संहिता और खेल प्रशासन विधेयक में क्या है अंतर

आयु सीमा: खेल संहिता में प्रशासकों की आयु 70 वर्ष निर्धारित की गई थी, लेकिन नए विधेयक में किसी पदाधिकारी को अपना कार्यकाल पूरा करने की अनुमति दी गई है, यदि नामांकन दाखिल करते समय उनकी आयु 70 वर्ष से कम थी। यदि अंतरराष्ट्रीय कानून और उपनियम संबंधित खेल संस्था में चुनाव लड़ने की अनुमति देते हैं तो चुनाव लड़ने के लिए पांच साल की अतिरिक्त छूट दी गई है।

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कार्यकाल: खेल संहिता में अध्यक्ष के लिए दो कार्यकाल और कोषाध्यक्ष तथा सचिव के लिए दो कार्यकाल के बाद ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ (ब्रेक) के साथ तीन कार्यकाल की अनुमति थी। नया खेल विधेयक पदाधिकारियों (अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष) को अधिकतम 12 वर्षों के लगातार तीन कार्यकालों तक सेवा करने और ब्रेक के बाद कार्यकारी समिति के चुनाव के लिए पात्र बने रहने की अनुमति देता है।

कार्यकारी समिति: खेल संहिता में समिति में महिलाओं के अनिवार्य प्रतिनिधित्व का कोई प्रावधान नहीं था जिसकी अधिकतम सदस्य संख्या 15 थी। नए विधेयक में यह अनिवार्य किया गया है कि कार्यकारी समिति में कम से कम चार सदस्य महिलाएं और उत्कृष्ट योग्यता वाले दो खिलाड़ी होने चाहिए।

नियामक संस्था: खेल संहिता में राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) पर नजर रखने के लिए किसी नियामक संस्था का प्रावधान नहीं था जिससे मान्यता देने या रद्द करने का अधिकार खेल मंत्रालय के पास था लेकिन खेल प्रशासन विधेयक में एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड के गठन का प्रावधान है जो यह भूमिका निभाएगा।

निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका: राष्ट्रीय खेल पंचाट जो खेल विवादों का निपटारा करेगा, राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल जो एनएसएफ में चुनावों की देखरेख करेगा और आचरण आयोग खेल संहिता का हिस्सा नहीं थे। इस विधेयक के अधिनियम बन जाने के बाद इन सभी निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।