आकाश चोपड़ा और मिथुन मन्हास एक बार घरेलू मैच के लिए ट्रेन से दिल्ली से मुंबई जा रहे थे। आकाश चोपड़ा ने नए स्नीकर्स (जूते) खरीदे थे। आकाश चोपड़ा को डर था कि कहीं उनके जूते चोरी न हो जाएं। उन्होंने सोने से पहले मिथुन मन्हास से जूतों पर नजर रखने का अनुरोध किया।

मिथुन मन्हास ने उन्हें आश्वस्त किया और वादा निभाया। मिथुन मन्हास अपनी बात पर कायम रहते हुए आकाश चोपड़ा के जूतों पर अपना पैर रख लिया। हालांकि, जब तक वे मुंबई पहुंचे, मिथुन मन्हास के अपने जूते चोरी हो चुके थे।

जूते की रखवाली से बीसीसीआई अध्यक्ष तक

भारत के पूर्व सलामी बल्लेबाज आकाश चोपड़ा ने क्रिकबज को बताया, ‘बेचारा। इससे उनके चरित्र का पता चलता है। हालांकि, वह खुद इसे स्वीकार नहीं करेंगे। मशहूर फिल्मी डायलॉग ‘एक बार जब कमिटमेंट कर दी तो पीछे नहीं हटते’ उन पर बिल्कुल सटीक बैठता है।’ यही जज्बा मिथुन मन्हास को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) का अध्यक्ष बनने तक ले आया है।

दिल्ली क्रिकेट का भरोसेमंद कप्तान

मिथुन मन्हास (45) के बीसीसीआई अध्यक्ष बनने पर आकाश चोपड़ा बहुत खुश हैं। आकाश चोपड़ा ने बताया, ‘मैंने हमेशा सोचा था कि वह भारत के लिए खेलेंगे; कभी नहीं सोचा था कि वह बीसीसीआई के अध्यक्ष बनेंगे।’ दिल्ली की टीम के कप्तान के रूप में उनके कार्यकाल में भी यही रवैया देखने को मिला, जिसमें वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, आशीष नेहरा और चोपड़ा जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी शामिल थे।

दिग्गजों को साधने वाले लीडर

इस दौरान दिल्ली या उत्तर क्षेत्र की अगुआई करते हुए मिथुन मन्हास ने कई अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को भी संभाला, जिनमें विक्रम राठौर, युवराज सिंह, विजय दहिया, अजय जडेजा, शिखर धवन, इशांत शर्मा, विराट कोहली, अमित मिश्रा, वीआरवी सिंह, जोगिंदर शर्मा, परवेज रसूल और राहुल सांघवी जैसे खिलाड़ी शामिल थे। उन्होंने इन सभी का अद्भुत सहजता, संयम और शालीनता के साथ मैनेज किया।

बाएं हाथ से बल्लेबाजी का किस्सा

केवल एक कप्तान के रूप में ही नहीं, मिथुन मन्हास ने एक दृढ़ और जुझारू क्रिकेटर के रूप में भी अपनी प्रतिष्ठा बनाई। विजयवाड़ा में आंध्र और दिल्ली के बीच एक यादगार मैच में उन्होंने गति बढ़ाने के प्रयास में बाएं हाथ से बल्लेबाजी भी की। मैच का हिस्सा रहे आंध्र प्रदेश के एक खिलाड़ी ने चीजों को अंजाम तक पहुंचाने वाली मिथुम मन्हास की प्रवृत्ति को उजागर किया। उन्होंने बताया, ‘हम निगेटिव लाइन पर गेंदबाजी कर रहे थे और फिर उन्होंने तेजी से रन बनाने के लिए बाएं हाथ से बल्लेबाजी करने का फैसला किया। उन्होंने लगभग 10 ओवर तक ऐसा ही किया।’

जम्मू-कश्मीर क्रिकेट का कायाकल्प

मिथुम मन्हास के पूर्व साथी अमित भंडारी ने बताया, ‘उनका दिमाग बहुत परिपक्व है, उन्हें पता है कि क्या करना है, कैसे करना है और कब करना है। वह अपना समय लेते हैं, लेकिन हमेशा वही करते हैं जो जरूरी होता है।’ मिथुन मन्हास को जम्मू-कश्मीर क्रिकेट को नया रूप देने का श्रेय भी दिया जाता है। लंबे समय तक भारतीय क्रिकेट के पिछड़ेपन से जूझती रही जम्मू-कश्मीर टीम ने हाल के वर्षों में लगातार प्रगति की है। पिछले सीजन में लगभग अज्ञात क्रिकेटरों के एक समूह ने 43 बार की रणजी चैंपियन मुंबई को हराकर ऐसी जीत हासिल की थी कि भारतीय क्रिकेट दर्शक स्तब्ध रह गए थे।

घरेलू क्रिकेट का दिग्गज, लेकिन टीम इंडिया से दूर

हाल ही में हुई दलीप ट्रॉफी में, जम्मू-कश्मीर के पांच खिलाड़ियों को उत्तरी क्षेत्र की प्लेइंग इलेवन में जगह मिली, जो इस राज्य के लिए एक अभूतपूर्व उपलब्धि कही जा सकती है। यह उन पुराने दिनों से बिल्कुल अलग है, जब जम्मू-कश्मीर के क्रिकेटर टीम में जगह बनाने के लिए भी संघर्ष करते थे। जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (JKCA) के प्रशासक के रूप में मिथुन मन्हास ने उत्तरी राज्य में क्रिकेट की सूरत बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके अपने शब्दों में, जेकेसीए के प्रमुख के रूप में चार वर्षों में, जम्मू-कश्मीर की टीम ने राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।

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जम्मू से ताल्लुक रखने वाले मिथुन मन्हास 90 के दशक के मध्य में क्रिकेट करियर बनाने की उम्मीद में दिल्ली आए और सूबे के महान खिलाड़ी बन गए। उन्होंने 250 से ज्यादा मुकाबलों में राज्य का प्रतिनिधित्व किया और विभिन्न प्रारूपों में 60 से ज्यादा मैचों में कप्तानी की। यह सफर आसान नहीं था। उन्हें भी पूरा यकीन था कि यह आसान नहीं होगा।

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मिथुन मन्हास की कहानी एक ऐसे घरेलू दिग्गज की है जो वाकई राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने के हकदार थे, लेकिन कभी वहां नहीं पहुंच पाए। पूर्व भारतीय कप्तान और मिथुन मन्हास के दोस्त अजय जडेजा कहते हैं, ‘यह एक चयन प्रक्रिया है और वह ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेला, लेकिन उत्तर भारत में हमारे लिए हमेशा एक टेस्ट खिलाड़ी रहे।’ कई खिलाड़ी मजाक में उनसे कहते थे कि वह बिना टेस्ट कैप के भी टेस्ट खिलाड़ी हैं।

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अजय जडेजा से मिथुन मन्हास की पहली मुलाकात उनके पहले मैच (दिल्ली बनाम हरियाणा) में हुई थी। अजय जडेजा ने कहा, ‘मैं मिथुन को उनके पहले मैच से जानता हूं। मैं हरियाणा के लिए खेल रहा था और तब मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई थी। उन दिनों दिल्ली एक बहुत मजबूत टीम थी जिसमें कई सीनियर खिलाड़ी थे।’ पिछले कुछ वर्षों में मिथुन मन्हास दिल्ली के लिए एक मुख्य खिलाड़ी बन गए। उनकी तुलना मुंबई के अमोल मजूमदार से होने लगी, जो बहुत रन बनाने वाले खिलाड़ी थे, लेकिन घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के बावजूद उन्हें कभी भारत के लिए खेलने का मौका नहीं मिला।

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अजय जडेजा ने कहा, ‘मिथुन मन्हास को ज्यादा चतुर क्रिकेट खिलाड़ी माना जाता था। हर कोई उनकी प्रतिभा और बनाए गए रनों की संख्या से वाकिफ है। मुझे लगता है कि मुंबई में अमोल को लोग जिस नजर से देखते हैं, वह भी कुछ ऐसा ही है। मैं यह नहीं कह रहा कि वे एक जैसे खिलाड़ी थे, लेकिन उनका सफर एक जैसा था। अमोल को भी लगता था कि वह देश के लिए खेलने वाले कई खिलाड़ियों से बेहतर हैं।’

19 साल का चमकदार करियर, आंकड़े ही नहीं, नेतृत्व भी खास

मिथुन मन्हास ने 19 साल के घरेलू करियर में 157 प्रथम श्रेणी मैच (9,714 रन), 130 लिस्ट ए मैच (4,126 रन) और 91 टी20 मैच (1,170 रन) खेले। दिल्ली का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने 127 प्रथम श्रेणी मैच, 90 लिस्ट ए मैच और 23 टी20 मैच खेले, और 31 प्रथम श्रेणी मैच, 20 लिस्ट ए मैच और 10 टी20 मैचों में टीम की कप्तानी की।

जम्मू की मिट्टी से भारतीय क्रिकेट के शिखर तक

मिथुन मन्हास का बीसीसीआई अध्यक्ष बनना उनके जम्मू-कश्मीर मूल से जुड़ा है। ‘सत्ताधारी’ भारतीय क्रिकेट के कम प्रतिनिधित्व वाले राज्यों में से एक को प्रतिनिधित्व देना चाहते थे। इस भूमिका के लिए जेकेसीए प्रशासक से बेहतर कोई नहीं था। अजय जडेजा याद करते हुए कहते हैं, ‘मुझे याद है कि वह जम्मू-कश्मीर के बारे में बहुत जोश से बात करते थे, क्योंकि वहीं पले-बढ़े थे। अगर आप गौर करें तो वह हमेशा से एक नेतृत्वकर्ता रहे हैं। उनमें नेतृत्व के गुण हैं, इसमें कोई शक नहीं। भारतीय क्रिकेट अब उन्हीं नेतृत्व गुणों की ओर देखेगा।’

मिथुन मन्हास मानते हैं कि मैदान के अंदर और बाहर उनकी योग्यता ने उन्हें यह शीर्ष पद दिलाया। बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में औपचारिक रूप से चुने जाने के बाद उन्होंने कहा, ‘शायद मेरे काम, मेरी योग्यता ने। एक घरेलू क्रिकेटर के रूप में योग्यता या एक प्रशासक के रूप में? ज़ाहिर है, एक प्रशासक के रूप में, एक क्रिकेटर के रूप में भी। पिछले चार वर्षों से मैं जम्मू-कश्मीर क्रिकेट संघों के साथ काम कर रहा हूं। हमने सात बार नॉकआउट चरण में क्वालिफाई किया है।’ अब उनका एजेंडा भारतीय क्रिकेट का विकास सुनिश्चित करना और उसे आगे बढ़ाना है।

‘संयोगवश अध्यक्ष’ या नियति का खेल?

हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि उन्हें कैसे चुना गया, क्यों चुना गया और क्या उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने की आज़ादी होगी। दरअसल, मिथुन मन्हास के चयन ने राजधानी के क्रिकेट हलकों में, भले ही राजनीतिक परिदृश्य में न हो, खलबली मचा दी है और उनके उदय का वहां स्वागत नहीं किया गया है, लेकिन यह एक अलग मुद्दा है। अब बारी है भारतीय क्रिकेट के ‘संयोगवश’ अध्यक्ष की।