भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व तेज गेंदबाज लक्ष्मीपति बालाजी का मानना है कि लोगों के साथ भेदभाव करने की प्रवृत्ति की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह कुछ ऐसा है जिसे उन्होंने काफी करीब से देखा है। स्पोर्ट्स कमेंटेटर अरुण वेणुगोपाल के साथ बातचीत में लक्ष्मीपति बालाजी नस्लवाद पर खुलकर बोले। उन्होंने कहा, ‘यह मानसिकता से बड़ी समस्या का हिस्सा है, जो हमारे घरों और स्कूलों बहुत गहरे से फैला हुआ है।’
उन्होंने कहा, ‘सभी स्तरों पर, फिर चाहे वह स्कूल, कॉलेज या कोई भी उद्योग हो, किसी की कथित कमजोरी को लक्षित करने के लिए कुछ लोगों में यह एक प्रवृत्ति होती है। यह संस्कृति हमारे घरों से शुरू होती है। यदि कोई बच्चा मोटा होता है तो बुजुर्ग उसे बुलाने के लिए विशेष उपनाम का इस्तेमाल करते हैं। बच्चे का भारी होना उसकी समस्या नहीं है। मैंने अपने सर्किल में भी ऐसे कई उदाहरण देखे हैं। वे इन्हें उपनाम मानते हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते कि इसका बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ता है।’
बालाजी ने कहा, ‘जब तक विभिन्न वर्गों, नस्लों और राष्ट्र के लोग इस समस्या को उतनी गंभीरता से नहीं लेते, जैसे कि उन्होने कोविड-19 जैसी महामारी को लिया है, इसका हल नहीं हो सकता। जिंदगी के डर के कारण हमने सामाजिक स्वच्छता पर ज्यादा जोर दिया। हालांकि, ऐसा कौन सा मुखौटा है जो नस्लवाद और भेदभाव के वायरस को छिपा सकता है, जो हमारे दिमाग में घुसा हुआ है।?’
बालाजी ने स्कूल में खुद के साथ हुए अपमान के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, ‘मैं 12-13 साल का था, जब मैं कक्षा सात में फेल हो गया था। यदि आप मुझसे पूछें तो उस उम्र में एक कक्षा में फिर से पढ़ना निश्चित रूप से अपमानजनक रहा। मैंने सामाजिक दबावों और माता-पिता को हताश करने वाले अहसासों को गंभीरता से महसूस किया। उस समय ने मुझे मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत प्रभावित किया। मुझे नहीं लगता कि कक्षा सात में फेल होना सही बात है। मेरे कारण अपने माता-पिता को अपमानित होते हुए देखना वास्तव में कठिन था। 25-26 साल हो गए, लेकिन उसके घाव अब तक भरे नहीं हैं।’
बालाजी ने कहा, हालांकि, इस तरह के अपमान के बाद भी मुझे अपने करियर और जीवन में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लक्ष्मीपति बालाजी ने खुलासा किया कि त्वचा के रंग के कारण उन्हें क्रिकेट में हर स्तर पर भेदभावपूर्ण और अपमानजनक भाषा का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि यह स्तर पर है। हर कोई, सिर्फ क्रिकेटर्स ही नहीं। भेदभाव की कोई सीमा नहीं है।