भारतीय शटलर किदांबी श्रीकांत विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के आखिरी मुकाबले में रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष खिलाड़ी बन गए हैं। उनका मुकाबला सिंगापुर के लोह किन यू से हुआ। लोह ने इस मुकाबले में श्रीकांत को 21-15 और 22-20 से हरा दिया। इस हार के बावजूद किदांबी श्रीकांत ने भारतीय पुरुष बैडमिंटन की दुनिया में इतिहास रचा है। उन्होंने स्पेन के हुएलवा में चल रही इस चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में हमवतन लक्ष्य सेन को एक घंटा और आठ मिनट के मैच में 17-21, 21-14 और 21-17 से हराया। अब यह तय हो गया भारतीय पुरुष खिलाड़ी इस चैंपियनशिप से दो पदकों के साथ लौटेंगे। यह पहला मौका है। पहली बार विश्व चैंपियनशिप में भाग लेने वाले लक्ष्य सेन का कांस्य पदक पक्का हो गया है और श्रीकांत ने भी रजत पदक जीत लिया है।
श्रीकांत किदांबी भारत के बेहतरीन बैडमिंटन खिलाड़ियों में से एक हैं। किदांबी श्रीकांत ने 18 दिसंबर 2021 को लक्ष्य सेन को हराकर बीडब्ल्यूएफ विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बनकर इतिहास की किताबों में अपना नाम दर्ज करा लिया।मात्र 20 साल के लक्ष्य सेन और 28 साल के किदांबी श्रीकांत असल में देश में दो पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लक्ष्य देश के तेजी से उभरते खिलाड़ी हैं, वह अपने आक्रामक अंदाज से यह दिखाने में सफल रहे हैं कि आने वाला कल उनका ही है।
किदांबी श्रीकांत गुंटूर के रहने वाले हैं। उनके पिता 2008 में जब उन्हें गोपीचंद अकादमी में ले गए, उस समय उनके बड़े भाई नंदगोपाल इसी अकादमी में खेला करते थे। गोपीचंद ने उन्हें युगल और मिश्रित युगल में खिलाना शुरू कर दिया। इसी दौरान 2013 में इंडियन बैडमिंटन लीग का आयोजन हुआ। श्रीकांत और उस समय दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी किदांबी श्रीकांत एक ही टीम में थे। दोनों को एक दिन साथ अभ्यास करते देख ली चोंग वेई के कोच तेई जो बोक को लगा कि श्रीकांत बिलकुल ली चोंग वेई की तरह खेलते हैं। उन्होंने उसे एकल में खेलने की सलाह दी।
आंध्र प्रदेश की स्पोर्ट्स अकादमी में अपने भाई के साथ जुड़ने से पहले, श्रीकांत बहुत ही ज्यादा आलसी थे। हालांकि, उन्होंने अकादमी में शामिल होने के लिए कड़ी मेहनत की। श्रीकांत ने 2008 में गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी में शामिल होने तक बैडमिंटन को गंभीरता से नहीं लिया था। गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी में जाने के बाद श्रीकांत ने बैडमिंटन को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। पुलेला गोपीचंद का मानना था कि उनमें प्रतिभा है, लेकिन उनमें फोकस की कमी थी। गोपीचंद ने उन्हें खेल पर अपना ध्यान मजबूत करने के लिए निर्देशित किया।