खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स (Khelo India University Games) में बुधवार तीन दिसंबर 2025 को जब पुरुषों की 110 मीटर हर्डल्स (बाधा दौड़) के फाइनल के लिए सीबी शिंटोमोन ट्रैक पर उतरे तो जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में बैठे अधिकांश लोगों को पता नहीं था कि इस एथलीट का सफर कितना मुश्किल भरा रहा है।

23 वर्षीय शिंटोमोन ने 2021 तक कभी सिंथेटिक ट्रैक पर दौड़ ही नहीं लगाई थी। उनका जीवन पढ़ाई, स्कूल स्तर तक के फुटबॉल मुकाबलों और छुट्टियों में केरल के इडुक्की जिले में एरट्टयार स्थित इलायची (कार्डमम) के खेतों में मजदूरी तक सीमित था।

शिंटोमोन की किस्मत का मोड़ एक साधारण से फुटबॉल मैच के दौरान आया, जब केरल स्पोर्ट्स काउंसिल अकादमी के कोच बैजू जोसेफ की नजर उनकी मजबूत कद-काठी और दमदार फिटनेस पर पड़ी। बैजू जोसेफ ने शिंटोमोन को एथलेटिक्स अपनाने के लिए प्रेरित किया।

शिंटोमोन ने शुरुआत में 400 मीटर दौड़ और ऊंची कूद में हाथ आजमाया, लेकिन असली पहचान 110 मीटर हर्डल्स में हासिल की। महज दो साल में शिंटोमोन की प्रगति चौंकाने वाली रही। शिंटोमोन ने KIUG 2025 में 100 मीटर हर्डल्स के फाइनल में महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

शिंटोमोन ने 14.32 सेकंड का समय निकालकर खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का नया मीट रिकॉर्ड भी बनाया। यह दौड़ बेहद रोमांचक रही। शिवाजी यूनिवर्सिटी के विकास आनंदा खोडके (14.516 सेकंड) और यूनिवर्सिटी ऑफ कालीकट के रहील सकीर वीपी (14.518 सेकंड) के बीच सिर्फ हजारवें हिस्से का अंतर रहा।

रिकॉर्ड टूटा, लेकिन लक्ष्य अभी दूर

शिंटोमोन ने इस रेस में 14.40 सेकंड का पुराना रिकॉर्ड तोड़ा। हालांकि, वह अभी खुद को सीखने की प्रक्रिया में ही मानते हैं। शिंटोमोन ने 2024 में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में रजत पदक जीता था। तब उन्होंने 14.18 सेकंड के साथ पर्सनल बेस्ट प्रदर्शन किया था। इस साल चेन्नई में हुई 64वीं राष्ट्रीय अंतर-राज्यीय सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उनका सर्वश्रेष्ठ समय 14.25 सेकंड रहा था।

शिंटोमोन अब कोट्टायम के सेंट डोमिनिक कॉलेज में जूलियस जे मनायनी के अंडर प्रशिक्षण ले रहे हैं। उन्होंने आगामी प्रतियोगिताओं के बारे में अभी से सोचना शुरू कर दिया है। वह 2026 के व्यस्त सत्र की तैयारी के लिए जल्द ही फिर से प्रशिक्षण शुरू करेंगे।

गरीबी में पले-बढ़े

शिंटोमोन एक ऐसे परिवार से आते हैं, जहां खेल का कोई वातावरण नहीं था। उनके पिता पेशे से पेंटर हैं और दिहाड़ी मजदूरी से घर चलाते हैं। आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वह मानते हैं कि उनके परिवार को अब भी उनकी उपलब्धियों के बारे में ज्यादा पता नही है।

इलायची के खेतों में मजदूरी करने वाला लड़का आज देश के सबसे तेज उभरते हर्डलर्स में शामिल है। शिंटोमोन की यह यात्रा सिर्फ एक खिलाड़ी की सफलता नहीं, बल्कि संघर्ष, संकल्प और सपनों को अमलीजामा पहनाने की अद्भुत कहानी है।

जीत के बाद क्या बोले शिंटोमोन

गोल्ड मेडल जीतने के बाद शिंटोमोन ने बताया, ‘यह खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में मेरा पहला गोल्ड मेडल है। मुकाबला काफी कड़ा था। मैं इतने कॉम्पिटिटिव फील्ड का हिस्सा बनकर खुश हूं, जिसने मुझे जरूरी पुश दिया। मैंने खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के बारे में सुना था, लेकिन अनुभव करना और पहली बार में ही गोल्ड मेडल जीतना इसे और भी खास बनाता है।’

शिंटोमोन के लिए इस गोल्ड मेडल के बड़े मायने हैं। उन्होंने बताया, ‘यहां मीट रिकॉर्ड तोड़ने के लिए टाइमिंग अच्छी थी, लेकिन अगर देश का प्रतिनिधित्व करना है तो मुझे और ज्यादा मेहनत करनी होगी। यह गोल्ड मेडल मुझे खुद को और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगा।’