भारत की स्टार डिस्कस थ्रोअर कमलप्रीत कौर भारत को ओलंपिक खेलों में ऐतिहासिक एथलेटिक्स पदक दिलाने से कुछ कदम दूर खड़ी हैं। उन्होंने शनिवार को 64 मीटर दूर चक्का फेंक कर दो अगस्त को होने वाले फाइनल के लिए क्वालिफाई किया। कमलप्रीत ओलंपिक में डिस्कस थ्रो के फाइनल के लिए क्वालिफाई करने वाली भारत की केवल दूसरी महिला एथलीट और तीसरी समग्र खिलाड़ी हैं।

उनका यह प्रदर्शन चौंकाने वाला है, क्योंकि ओलंपिक से पहले वह अवसाद में थीं। कोविड-19 लॉकडाउन ने चक्का फेंक की इस एथलीट के मानसिक स्वास्थ्य पर इतना असर डाला था कि वह अवसाद में चली गईं थीं। उन्होंने मनोवैज्ञानिक दबाव से निपटने के लिए क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। अब ओलंपिक में अपने इवेंट के फाइनल में जगह बनाने के बाद उन्होंने पिता से पदक जीतने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने का वादा किया है।

कमलप्रीत कौर के पिता कुलदीप सिंह ने पीटीआई से कहा, ‘मैंने आज उससे बात की। वह बहुत खुश थी। उसने मुझसे कहा कि वह फाइनल में अपना सर्वश्रेष्ठ करेगी। उसका फोकस हमेशा अपने खेल पर रहा है। उसने अपनी कड़ी मेहनत से ओलंपिक में हिस्सा लेने के सपने को साकार किया है।’

कमलप्रीत कौर को पंजाब के खेल मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी ने फाइनल्स में पहुंचने के लिए बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘कमलप्रीत कौर फाइनल्स के लिए क्वालिफाई करने के लिए बधाई हो। हमें तुम पर गर्व है। इसी लय को जारी रखना, मुझे भरोसा है कि तुम ओलंपिक खेलों में शानदार प्रयत्न से पदक जीतोगी।’

कमलप्रीत कौर का जन्म पंजाब में काबरवाला गांव किसान परिवार में हुआ है। पिछले साल के अंत में वह काफी हताश थीं, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण उन्हें किसी टूर्नामेंट में खेलने को नहीं मिल रहा था। वह अवसाद महसूस कर रही थीं। यही वजह थी कि उन्होंने अपने गांव में ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था।

कमलप्रीत कौर की कोच राखी त्यागी ने बताया, ‘उनके गांव के पास बादल में एक साई केंद्र है। हम 2014 से पिछले साल तक वहीं ट्रेनिंग कर रहे थे। कोविड-19 के कारण सबकुछ बंद था और वह अवसाद (पिछले साल) महसूस कर रही थी। वह हिस्सा लेना चाहती थी, विशेषकर ओलंपिक में।’

उन्होंने कहा, ‘वह बेचैन थी। यह सच है कि उसने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था, लेकिन यह किसी टूर्नामेंट के लिए या पेशेवर क्रिकेटर बनने के लिए नहीं था, बल्कि वह तो अपने गांव के मैदानों पर क्रिकेट खेल रही थी।’ भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) की कोच राखी त्यागी ओलंपिक के लिए उनके साथ टोक्यो नहीं जा सकीं। हालांकि, उन्हें लगता है कि उनकी शिष्या अगर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे तो इस बार पदक जीत सकती है।

उन्होंने कहा, ‘मैं उससे हर रोज बात करती हूं। वह आज थोड़ी नर्वस थी, क्योंकि यह उसका पहला ओलंपिक था। मैं भी उसके साथ नहीं थी। मैंने उससे कहा कि कोई दबाव नहीं ले, बस अपना सर्वश्रेष्ठ करो। मुझे लगता है कि 66 या 67 मीटर उसे और देश को एथलेटिक्स का पदक दिला सकता है।’

रेलवे की कर्मचारी कमलप्रीत कौर इस साल शानदार फार्म में रही हैं। उन्होंने मार्च में फेडरेशन कप में 65.06 मीटर चक्का फेंककर राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था। वह 65 मीटर चक्का फेंकने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं थीं। उन्होंने जून में इंडियन ग्रां प्री 4 में 66.59 मीटर के थ्रो से अपना राष्ट्रीय रिकॉर्ड सुधारा और दुनिया की छठे नंबर की खिलाड़ी बनीं।

परिवार की आर्थिक समस्याओं और अपनी मां के विरोध के कारण वह शुरू में एथलेटिक्स में नहीं आना चाहती थी, लेकिन अपने किसान पिता कुलदीप सिंह के सहयोग से उन्होंने इसमें खेलना शुरू किया। शुरू में उन्होंने गोला फेंक खेलना शुरू किया, लेकिन बाद में बादल में साइ केंद्र में जुड़ने के बाद चक्का फेंकना शुरू किया।

बादल में कौर के स्कूल की खेल शिक्षिका ने एथलेटिक्स से रूबरू कराया। इसके बाद वह 2011-12 में क्षेत्रीय और जिला स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगीं। उन्होंने फैसला किया कि वह अपने पिता पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव नहीं डालेंगी। उन्होंने 2013 में अंडर-18 राष्ट्रीय जूनियर चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और दूसरे स्थान पर रहीं।

साल 2014 में बादल में साइ केंद्र से जुड़ीं और अगले साल राष्ट्रीय जूनियर चैम्पियन बन गयीं। वर्ष 2016 में उन्होंने अपना पहला सीनियर राष्ट्रीय खिताब जीता। अगले तीन वर्षों तक वह सीनियर राष्ट्रीय खिताब जीतती रहीं। लेकिन इस साल एनआईएस पटियाला में आने के बाद वह सुर्खियों में आईं। टोक्यो जाने से पहले उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा पूनिया से सलाह भी मांगी, जो अब तक ओलंपिक में इस खेल की सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली खिलाड़ी हैं।

पूनिया 2012 ओलंपिक के फाइनल में छठे स्थान पर रही थीं। पूनिया ने कहा, ‘उसने पूछा कि ओलंपिक में कैसे किया जाए, क्योंकि यह उसका पहला ओलंपिक था तो वह थोड़ी तनाव में थी। मैंने उससे कहा कि बस तनावमुक्त होकर खेलना। पदक के बारे में मत सोचना, बस अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना।’

मार्च में कौर ने पूनिया का लंबे समय से चला आ रहा राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था। पूनिया ने कहा, ‘उसके पास पदक जीतने का शानदार मौका है। यह भारतीय एथलेटिक्स में बड़ा पल होगा और देश की महिलाएं भी चक्का फेंक और एथलेटिक्स में हाथ आजमाना शुरू कर देंगी।’