साल 2016 के पहले महीने में भारतीय टीम ने आस्ट्रेलिया का दौरा किया था। 8 से 31 जनवरी के बीच उसे पांच एकदिवसीय और तीन टी-20 मैच खेलने थे। दौरे से पहले ही टीम के स्टार गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार चोटिल हो गए। चयनकर्ताओं और कोच को तब एक अदद तेज गेंदबाज की तलाश थी। इसी बीच इंडियन प्रीमियर लीग में मुंबई इंडियंस और गुजरात के लिए धमाकेदार प्रदर्शन करने वाले जसप्रीत बुमराह पर उनकी निगाहें गईं।

बुमराह को टीम में शामिल किया गया। यहीं से भारतीय टीम के तेज गेंदबाजी आक्रमण के स्वर्णिम दौर की शुरुआत हुई। 2019 के अंत में बुमराह चोटिल हो गए। उन्हें कुछ महीनों के लिए मैदान से दूर होना पड़ा। उन्होंने वापसी की लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ हाल में समाप्त एकदिवसीय में वे एक भी विकेट नहीं ले पाए। इसके बाद आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ। भारतीय टीम के तीन एकदिवसीय मैचों की शृंखला में 3-0 से हारने का ठीकरा भी गेंदबाजों पर फोड़ने की पूरी कोशिश की जाने लगी। लेकिन इस बीच सवाल है कि वर्तमान में जिस भारतीय टीम को तेज गेंदबाजी का पावर हाउस माना जा रहा है, कहीं उसका मेन फ्यूज बुमराह तो नहीं हैं? उनके न होने पर गेंदबाजी में सेंध लगाना विपक्षी टीमों के लिए आसान तो नहीं हो जाएगा। क्या पूरी टीम उन पर जरूरत से ज्यादा निर्भर नहीं हो गई? ये सवाल टी-20 विश्व कप के लिहाज से और अहम हो जाते हैं।

दरअसल, भारतीय टीम साल के मध्य में बीसम-बीस के महा मुकाबले में आस्ट्रेलियाई सरजमीं पर दुनिया के ताकतवर टीमों का सामना करेगी। इस टूर्नामेंट में खिताबी जीत के लिए बल्लेबाजों के साथ गेंदबाजों का प्रदर्शन अहम है। बल्लेबाजी शीर्ष क्रम में रोहित शर्मा, शिखर धवन, केएल राहुल और विराट कोहली के होने से टीम की चिंता दूर हो गई है। मध्यक्रम में भी संतुलन बनाने की कोशिश जारी है। लेकिन सबसे अहम गेंदबाजी और उसमें भी तेज गेंदबाजी संतुलन है।

जसप्रीत बुमराह की अगुआई में अब तक धमाल मचा रही गेंदबाजों की टोली एकदिवसीय में कीवी टीम के खिलाफ बेअसर रही। बुमराह का प्रदर्शन तो खराब रहा ही लेकिन अन्य के खेल को भी सराहा नहीं जा सकता। इससे यह भी साबित होता दिखता है कि बुमराह के बिना गेंदबाजी में भारतीय टीम डगमगा रही है। आंकड़े भी इस तथ्य की गवाही देते हैं। भारत के मुख्य तेज गेंदबाजों में शामिल भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी, उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह, शार्दुल ठाकुर और नवदीप सैनी के प्रदर्शन का आकलन करें तो साफ हो जाता है कि टीम किस पर आश्रित हो रही है।

बुमराह ने अब तक 64 वनडे खेले हैं जिनमें 104 विकेट अपने नाम किए हैं। इस दौरान उनका औसत 24.43 और इकॉनमी 4.56 रही। वहीं 2019 में कुछ विवादों से निपटने के बाद वापसी करने वाले सीमर शमी का प्रदर्शन भी लाजवाब रहा। उन्होंने 2019-20 के दौरान विरोधी बल्लेबाजों को खूब परेशान किया है। इसके अलावा अन्य गेंदबाजों का भी प्रदर्शन काबिलेतारीफ रहा। लेकिन बुमराह के अलावा अन्य गेंदबाजों में निरंतरता की कमी साफ दिखती है। मसलन शार्दुल ठाकुर ने बीते कुछ समय में टी-20 मैचों में खूब विकेट लिए लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे सीरीज में उन्होंने 227 रन लुटाए। उनकी इकॉनमी रेट 8.05 रही। नए गेंदबाजों में नवदीप सैनी की भी चर्चा रही लेकिन 2019-20 में उनके नाम पांच विकेट हुए लेकिन औसत 60.20 का रहा और इकॉनमी 6.27 रही।

आंकड़ों से इतर गेंदबाजों का मनोबल बढ़ाने में माहौल का असर होता है। स्ट्राइक गेंदबाज अगर पहले ही विपक्षी बल्लेबाजों पर दबाव बना दे तो बाद में गेंदबाजी करने वालों को काफी फायदा होता है। बुमराह यही काम करते रहे हैं। वे टीम को हर मुश्किल से निकालने की रामबाण दवा हैं। वे विरोधी पर दबाव बनाते हैं जिसका फायदा कई दफा अन्य गेंदबाजों को विकेट के रूप में मिलता हैै। ऐसे में यह तो माना ही जा सकता है कि भारतीय तेज गेंदबाजी पावरहाउस के मेन फ्यूज बुमराह ही हैं। जैसे विराट कोहली के बिना बल्लेबाजी में टीम असंतुलित होती है उसी तरह बुमराह के बगैर तेज गेंदबाजी आक्रमण अधूरा है।