इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) खेल के स्तर को नए प्रयोग करती रही है। हालांकि, काफी प्रयास के बावजूद आईसीसी वर्ल्ड कप 2019 के मैचों में अंपायरिंग को लेकर उसकी काफी आलोचना हुई है। इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में भी अंपायरिंग का स्तर काफी नीचे रहा था। आईसीसी ने अंपायरिंग का स्तर सुधारने का बीड़ा उठाया है। वह क्रिकेट मैचों में फ्रंटफुट नो बॉल का फैसले लेने में टीवी अंपायरों की मदद लेने का विचार कर रही है। इसे अभी टी-20 और वनडे मैचों में ट्रायल के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि, यह नियम ट्रायल के तौर पर किसी सीरीज में लागू किया जाएगा, इसका फैसला अभी नहीं हुआ है।
2016 में इंग्लैंड और पाकिस्तान की बीच हुई वनडे सीरीज में इस सिस्टम का ट्रायल किया गया था, लेकिन इसमें समय ज्यादा बर्बाद होता देख, इसे हटा लिया गया था। क्रिकेट वेबसाइट ईएसपीएनक्रिकइंफो ने आईसीसी के जनरल मैनेजर (क्रिकेट ऑपरेशंस) ज्यॉफ एलरडाइस के हवाले से बताया है, ‘हां ऐसे ही टेक्नॉलाजी का इस्तेमाल 2016 में किया गया था। तीसरे अंपायर को आगे का पांव पड़ने के कुछ सेकंड के बाद फुटेज दी जाएगी। वह मैदानी अंपायर को बताएगा कि यह नो बॉल है या नहीं। ऐसे में गेंद को तब तक मान्य माना जाएगा जबतक अंपायर कोई दूसरा फैसला नहीं ले लेता।’
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2016 में थर्ड अंपायर को फुटेज देने के लिए हॉकआई ऑपरेटर का इस्तेमाल किया जाता था। एलरडाइस ने बताया, ‘फुटेज थोड़ी देरी से दिखाई जाती है। जब पैर क्रीज पर बनी लाइन की ओर बढ़ता है तो फुटेज स्लो मोशन में दिखाई जाती है। यह फुटेज लाइन पर पड़ते समय रुक जाती है। फुटेज के आधार पर थर्ड अंपायर फैसला लेता है। इस फुटेज को हमेशा ब्रॉडकास्ट नहीं किया जाता।’ आईसीसी की क्रिकेट ऑपरेशंस वाली समिति चाहती है कि छोटे फॉर्मेट में इस नियम का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए।
एलरडाइस ने बताया, ‘क्रिकेट कमेटी ने सिफारिश की है कि इसे सभी वनडे और टी-20 में इस्तेमाल किया जाएगा। पिछले साल दुनिया भर में हुए पुरुषों के इन दोनों फॉर्मेट के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में 84 हजार नो बॉल फेंकी गईं थीं, इसलिए विभिन्न मैदानों पर फेंकी गईं ऐसी सभी नो बॉल की निगरानी करना एक बड़ी कवायद है।’