शिवानी नायक। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के गंगापुर के ग्रामीणों ने महेंद्र यादव से कभी इस बारे में सवाल नहीं किया कि उन्होंने अपनी पांच बेटियों में सबसे छोटी पूजा को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया या नहीं, लेकिन पड़ोसी और रिश्तेदार अक्सर एक ही बात कहते थे, ‘हॉकी में कुछ नहीं होगा इसका।’ तब महेंद्र सिर हिला देते और कुछ नहीं कहते थे। 20 साल की पूजा यादव ने पिछले सप्ताह भारतीय हॉकी टीम में जगह बनाई।

बनारस से राष्ट्रीय टीम में चुनी जाने वाली पहली महिला

पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से भारतीय हॉकी टीम में जगह बनाने वाली पहली महिला खिलाड़ी हैं। पूजा की यह उपलब्धि भविष्य में दूसरी खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। हालांकि, पूजा का गांव से भारतीय टीम में जगह बनाने तक का सफर आसान नहीं रहा। इसके लिए न सिर्फ उन्हें बल्कि उनके परिवार को भी बहुत संघर्ष करना पड़ा है।

एक जोड़ी जूते के बदले डेढ़ महीने मुफ्त में दूध

पूजा यादव के पिता दूध बेचते हैं और मां खेतों में काम करती हैं। पूजा को आज भी याद है कि पहली जोड़ी जूते उनके पिता ने एक स्थानीय दुकान से खरीदे थे और पैसे नहीं होने के कारण दुकानदार को डेढ़ महीने तक मुफ्त में दूध दिया था। पूजा ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘दुकान मालिक का परिवार छोटा था, इसलिए मेरे पिता ने उनसे कहा कि जब तक जूतों की कीमत वसूल नहीं हो जाती तब तक वह दूध देते रहेंगे। इसमें डेढ़ महीने का समय लगा, लेकिन मुझे मेरे पहले जूते मिल गए। उन पर दो सुनहरे सितारे लगे थे।

बचपन में लड़कों के साथ खेलती थीं क्रिकेट

पूजा को शुरुआती दिनों में लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने से भी मदद मिली। पूजा कहती हैं, ‘एक दिन मैंने स्कूल में हॉकी देखी और कोच से प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया, लेकिन मुझे लगता है कि क्रिकेट खेलने के उन शुरुआती दिनों ने मेरी मदद की, क्योंकि मुझे हमेशा लगता था कि मैं लड़कों के बराबर हूं। बड़े होने पर, मैं हॉकी खेलने वाली एकमात्र लड़की थी। मेरे भारतीय टीम में चयन के बारे में सुनने के बाद अब गाँव के लोग भी खुश हैं। भविष्य में शायद और लड़कियां खेलें।’

मां और बहनों ने बढ़ाया हौसला

उनका राष्ट्रीय टीम में चयन मां कलावती और पूजा की चार बहनों के लिए बहुत गर्व की बात थी, जो सभी विवाहित हैं और घर ही संभालती हैं। पूजा यादव ने कहा, ‘मेरी मां ही थीं जिन्होंने मुझे हार मानने नहीं दिया, लेकिन मेरी चारों बहनें मेरा साथ देती हैं और हमेशा कहती रहती हैं कि वे चाहती हैं कि मैं वह करूं जो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। ट्रायल में असफल होने के बाद भी वे मुझे प्रेरित करती रहीं। वे मुझे घर के काम छोड़कर बाहर जाकर ट्रेनिंग करने के लिए कहती थीं।’

SAI हॉस्टल में निखरी प्रतिभा

पांच बहनों, माता-पिता और एक भाई के परिवार ने जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर खेती की और दो भैंसें रखीं। महेंद्र यादव ने दूध देने का काम किया, जबकि कलावती ने फसलों की देखभाल की ​और पूजा खेलती थीं। हालांकि, जूते जल्दी घिस गए। पूजा जानती थीं कि उन्हें लखनऊ स्पोर्ट्स हॉस्टल में जगह पक्की करनी होगी, ताकि माता-पिता को उनके आहार और उपकरणों पर खर्च न करना पड़े।

पांच साल पहले वह लखनऊ में SAI हॉस्टल में पहुंच गईं। पूजा बताती हैं कि वह हमेशा अपनी मां की सलाह का पालन करती हैं कि असफलताओं से विचलित न हों। वह कहती हैं, ‘मेरे पिता को गर्व है कि मैंने अपनी कोशिश जारी रखी, क्योंकि मैं अपने पहले ट्रायल में असफल रही थी।’