आत्माराम भाटी

नए साल 2024 में होने वाले ओलंपिक में भारत की संभावनाओं से पहले बीते साल की सफलताओं पर नजर डालें तो भारतीय खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में 28 स्वर्ण, 31 रजत व 51 कांस्य पदक के साथ पहली बार पदकों का आंकड़ा सौ पार ले जाते हुए कुल 107 पदक भारत की झोली में डाले। इन्हीं खेलों में एक नया इतिहास बनाने में हमारे पैरा खिलाड़ी भी पीछे नहीं रहे। इन्होंने तो हमारे सामान्य खिलाड़ियों को भी पदकों में पछाड़ कर 29 स्वर्ण, 31 रजत और 51 कांस्य के साथ कुल 111 पदकों की माला देश को पहना कर नया इतिहास ही बना दिया।

इस साल फ्रांस की राजधानी पेरिस में 26 जुलाई से 11 अगस्त तक हो रहे खेलों के महाकुंभ – ओलिंपिक की। इसमें दुनिया के 200 से ज्यादा देश भाग लेते हैं। यह आयोजन चार साल में एक बार होता है। पूरी दुनिया के बेहतर से बेहतर खिलाड़ी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। भारत के खेल प्रेमियों की भी तमन्ना है कि उसके खिलाड़ी भी इस महाकुंभ में ज्यादा से ज्यादा पदक लेकर लौटें।

अभी तक के ओलंपिक के 128 साल के सफर में और आजादी के बाद के 75 साल में हमारे पास ओलंपिक में ज्यादा उपलब्धियां नहीं है। पिछले ओलंपिक तक भारत के नाम केवल 10 स्वर्ण, 9 रजत व 16 कांस्य सहित कुल 35 पदकों का मामूली खजाना है जो पदक तालिका में प्रथम पांच में रहने वाले देशों के खाते में एक ओलिंपिक में होते हैं।

जिस तरह का भारत का प्रदर्शन अभी तक के ओलंपिक में रहा है, उसे देखते हुए हमारे खिलाड़ी पदकों की संख्या को 10 तक भी पहुंचा देते हैं तो हमारे खेल संघ, खेल मंत्रालय व खेल प्रेमी बहुत बड़ी उपलब्धि मान लेंगे। लेकिन सच्चाई तो यह है कि दहाई के इस आंकड़े के लिए ऐसे 10 दावेदार सौ फीसद नहीं है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इस महाकुंभ में बेहतरीन खिलाड़ियों का एक बड़ा दल ज्यादा से ज्यादा पदक देश की झोली में डालने का विश्वास दिलाएगा। लेकिन जिन खेलों व खिलाड़ियों पर विश्वास मजबूत दिखाई दे रहा है उनमें सबसे पहला नाम भाला फेंक में नीरज चोपड़ा का है। इनसे सभी को उम्मीद है कि यह एकबार फिर से सबसे लंबा भाला फेंककर के देश को लगातार दूसरा स्वर्ण पदक दिलाएंगे। इसकी वजह भी मजबूत है क्योंकि अभी दुनिया में अपने खेल में वे सिरमौर हैं।

विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता, दोहा व लुसान डायमंड लीग के साथ अन्य प्रतियोगिताओं के खिताब नीरज के नाम हैं। ओलंपिक में अन्य खेलों में अगर पदक की आस कर सकते हैं तो वे हैं-निशानेबाजी, कुश्ती, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, भारोत्तोलन, टेनिस व पुरुष हाकी। इसका कारण भी साफ है कि इन्हीं खेलों में अभी तक ओलंपिक में भारत को पदक मिले हैं।

बैडमिंटन में सात्विक व चिराग लगातार सफलता पा रहे हैं। दोनों ने विश्व टूर के तीन खिताब, एशियाई खेलों व एशियाई चैंपियनशिप का खिताब पिछले साल जीता है। पूरी उम्मीद है कि यह जोड़ी भी बिना पदक के वापसी नहीं करेगी। इन्हीं की तरह महिलाओं में अश्वनी पोनप्पा व तनीषा क्राष्टो तथा गायत्री गोपीचंद व त्रिशा जौली से पदक तक पहुंचने के आशा है।

एकल वर्ग में लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत व एचएस प्रणय भी लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन से दावेदारों में हैं। महिला एकल में मात्र पीवी सिंधू ही हैं जो पदक की दौड़ में है। लेकिन सिंधू का प्रदर्शन ढलान पर है। फिर भी पिछले ओलंपिक की कांस्य विजेता से लय में लौटने की उम्मीद की जा सकती है। मुक्केबाजी में महिला मुक्केबाजों ने पिछले साल हुई विश्व मुक्केबाजी में चार स्वर्ण पदक जीते। इससे विश्वास बना है कि निकहत जरीन, लवलीना, स्वीटी व नीतू में से कोई जरूर पदक जीतेगा। पुरुष मुक्केबाजों से उम्मीद कम ही हैं ।

निशानेबाजी में 2004 ओलंपिक में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ द्वारा पहला रजत पदक जीतने, 2008 में अभिनव बिंद्रा के स्वर्ण पदक व 2012 में विजय कुमार के रजत व गगन नारंग के कांस्य पदक के बाद पदक का इंतजार है। लेकिन सरबजोत सिंह, एश्वर्य प्रताप सिंह, रिदम सांगवान, अमनप्रीत सिंह, वरुण तोमर, ईशा सिंह लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।

भारोत्तोलन में भी महिलाओं से उम्मीद है। इनमें पिछली बार रजत जीतने वाली मीरा बाई चानू के समेत राष्ट्रमंडल भारोत्तोलन में नौ स्वर्ण के साथ 20 पदक जीतने वाले खिलाड़ियों में से भी कोई भी पदक जीतने का दमखम रखती हैं। कुश्ती में पिछले कुछ समय से देश में वातावरण सही नहीं रहा, उसका असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर भी पड़ रहा है। वे पूरी तरह से अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं। फिर भी अंतिम पंघाल, सविता, प्रिया व दीपक पुनिया अच्छे प्रदर्शन से अन्य अनुभवी पहलवानों के साथ चौंकाते हुए पदक जीत सकते हैं।

हाकी में हमारा ओलंपिक में अतीत आठ स्वर्ण पदक, एक रजत व तोक्यो में मिले कांस्य सहित तीन कांस्य पदक के साथ गौरवमयी है। पुरुष हाकी टीम ने एशियाई चैंपियनशिप ट्राफी भी पिछले साल जीती है। ऐसे में विश्वास कर सकते हैं कि अपनी लय को बरकरार रखते हुए पदक देश की झोली में डालेंगे। हालांकि भारत में हुए विश्व कप में नौवें स्थान पर रहना पदक की आशा में खटक रहा है।

इस साल पेरिस में हो रहा खेलों का यह महाकुंभ 1896 में अपने पहले आयोजन के बाद 128 साल का सफर पूरा कर रहा है। बात करें स्वतंत्र भारत की भागीदारी की तो 76 साल होने को है। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि अभी तक भारत किसी भी ओलंपिक में पदकों का आंकड़ा दहाई तक नहीं पहुंचा पाया है। फिर भी पूरे देश की निगाह तालिका में प्रथम 10 में आने से ज्यादा पहली बार 10 पदक जीतने पर होंगी।