जयनारायण प्रसाद

पीके यानी प्रदीप कुमार बनर्जी। 83 वर्षीय इस महान फुटबॉलर की हालत इन दिनों बेहद खराब है और दो हफ्ते से कोलकाता के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। इस वक्त पीके वेंटिलेशन पर हैं। उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी में 23 जून,1936 को जन्मे प्रदीप कुमार बनर्जी ने महज 15 साल की उम्र में संतोष ट्रॉफी में बिहार का प्रतिनिधित्व किया। तब वे राइट विंग में खेला करते थे। बाद में भारत के नामी स्ट्राइकर में पीके का नाम शुमार हो गया। 1961 में उन्हें देश का प्रथम अर्जुन पुरस्कार मिला। 1990 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया।

हालांकि, पीके के फुटबॉल करिअर की शुरुआत हुई तो 1951 में बिहार से, लेकिन वे 1954 में कोलकाता आ गए और आर्यन एफसी फुटबॉल क्लब को ज्वाइन किया। फिर, 1955 में ईस्टर्न रेलवे एफसी में आ गए। इसी दौरान प्रदीप कुमार बनर्जी भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में रहे और उनका यह सिलसिला 1976 तक रहा।
पीके के बचपन की पढ़ाई जलपाईगुड़ी जिला स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए जमशेदपुर के केएमपीएम स्कूल में दाखिला हुआ। लेकिन, फुटबॉल का नशा उनपर इस कदर तारी था कि 1954 में कोलकाता महानगर आ गए। तब कोलकाता को ‘फुटबॉल का मक्का’ कहा जाता था। 1955 में पहली दफा वे राष्ट्रीय टीम में शामिल हुए और उसी साल ढाका में हुए क्वाडंरगुलर फुटबॉल टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। तब पीके की उम्र महज 19 साल थी।

कहते हैं कि फुटबॉल प्रदीप कुमार बनर्जी के सिर चढ़कर बोलता था। तीन एशियाई खेलों में पीके ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। पहली दफा 1958 में तोक्यो के एशियाई खेल में, 1962 में जकार्ता (मलेशिया) के एशियाई खेल में, जहां उन्हें स्वर्ण पदक मिला। फिर, 1966 के बैंकाक एशियाई खेल में। कहते हैं कि पीके के फुटबॉल करिअर का वह सुनहरा दौर था, जब उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए फुटबॉल प्रेमी बैरिकेड तोड़ देते थे।

1956 के मेलबर्न ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भी पीके ने अपने जादुई पैरों से सबको हैरान किया। 1960 में रोम में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में वे कप्तान रहे और फ्रांस के साथ 1-1 ड्रॉ खेला, जिसमें एक अकेला गोल पीके के पैरों से हुआ और भारत की शान इस ओलंपिक में बरकरार रही।

1959 में क्वालालंपुर में हुए मर्डेका कप में पीके को रजत पदक मिला। बाद में ईस्ट बंगाल क्लब में वे कोच हुए। फिर जब मोहन बागान एथलेटिक क्लब में आए तो उनकी वजह से मोहन बागान को आइएफए शील्ड मिला। 1972 में वे राष्ट्रीय प्रशिक्षक बने। यह सिलसिला 1986 तक बना रहा। 1989 में जमशेदपुर में टाटा फुटबॉल अकादमी के तकनीकी निदेशक भी रहे।

2005 में फीफा की तरफ से पीके को ‘प्लेयर ऑफ मिलेनियम’ पुरस्कार से नवाजा गया। आइएफएफएचएस ने उनका नाम 20वीं सदी के नामी फुटबॉल खिलाड़ियों में शुमार कर रखा है।