किलोमीटरों की इस दौड़ में बुशरा खान गौरी सिर्फ कदम नहीं बढ़ातीं, अपनी किस्मत से लड़ती हैं। केमिकल फैक्ट्री के ब्लास्ट में पिता को खो दिया, मां हमेशा बीमार रहतीं, घर की हालत इतनी खराब कि कई बार कोच को ही खाने तक का इंतजाम करना पड़ता।
एक वक्त आया जब बुशरा ने सब छोड़ देने का मन बना लिया था, लेकिन कोच एसके प्रसाद के हौसले और मध्य प्रदेश की तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के सहयोग ने उन्हें फिर ट्रैक पर फिर ला खड़ा किया।
एशियन गेम्स पर नजर, लेकिन आर्थिक तंगी बाधा
बुशरा हाल ही में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2025 में पांच हजार मीटर की चैंपियन बनीं। इसके अलावा उन्होंने 10 हजार मीटर में रजत पदक जीता। अब उनकी नजर अगले साल जापान के आइची और नागोया में होने वाले एशियाई खेलों पर है। बुशरा में वहां पहुंचने का जज्बा तो है, लेकिन आर्थिक तंगी उनकी राह रोक रही है।
मां की बीमारी और खाने के लाले
बुशरा खान की दौड़ सिर्फ ट्रैक पर नहीं, जिंदगी से लड़ने की भी है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की छात्रा बुशरा खान ने बचपन में पिता को केमिकल फैक्ट्री ब्लास्ट में खो दिया, मां बीमार रहती हैं और घर की हालत इतनी खराब है कि कई बार कोच को ही उनके और उनके परिवार के लिए खाने तक का इंतजाम करना पड़ता है।
किस्मत से लड़ती एक धाविका
बुशरा देश का नाम तो रोशन कर रही हैं, लेकिन एशियन गेम्स का सपना आर्थिक तंगी की वजह से अधर में अटका है। उन्हें आगे बढ़ने के लिए मदद की दरकार है, ताकि वह मां का सहारा भी बन सकें और देश के लिए पदक भी जीत पाएं।
जनसत्ता से बातचीत में बुशरा खान ने बताया कि वह भोपाल में टीटी नगर स्थित साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) सेंटर में प्रशिक्षण लेती हैं। उन्होंने बताया, ‘मेरे पिता को खेलों के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी, इसके बावजूद उन्होंने बहुत सपोर्ट किया। मेरी मम्मी भी मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं। यही वजह है कि मैं इंटरनेशनल लेवल तक परफॉर्म कर पाई।’
फैक्ट्री ब्लास्ट में पिता की मौत, उजड़ गया घर
बुशरा खान ने बताया, ‘जब मैं 18 साल की थी तब मेरे पिता की केमिकल फैक्ट्री (सीहोर) में ब्लास्ट में मौत (साल 2022) हो गई है। ब्लास्ट के समय पिता फैक्ट्री में काम कर रहे थे। फैक्ट्री में मजदूरों के लिए मकान बने हैं। वहीं, मेरा पूरा परिवार रहता था। मां और छोटी बहनें घर पर ही थीं। मैं एकेडमी में थी। मुझे वहीं पिता की मौत का समाचार मिला।’
जब खेल छोड़ने का बना लिया था मन
बुखरा ने बताया, ‘मेरे पिता का सपना था कि मैं खेलने के लिए विदेश जाऊं, लेकिन उनको ज्यादा नॉलेज नहीं थी। इसी वजह से एक बार मेरा वीजा लगा था, लेकिन वह कैंसल हो गया था। हालांकि, पापा की डेथ के बाद मैंने स्पोर्ट्स छोड़ दिया था, क्योंकि मेरा परिवार बहुत ज्यादा आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। हालांकि, तब मेरे कोच और मेरी खेल मंत्री यशोधरा मैम ने बहुत सपोर्ट किया और फिर मैंने 6-7 महीने बाद वापसी की।’
पिता का सपना और मां का हौसला
बुशरा ने कहा, ‘उस समय मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था, क्योंकि समस्या बहुत बढ़ गई है। मेरी मम्मी की तबीयत खराब रहती है, वह बहुत ज्यादा बात नहीं कर पाती हैं। अब भी वह बीमार हैं, लेकिन जब मैं खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मेडल जीती तो उन्होंने खुशी-खुशी में बहुत ज्यादा बात की। उनसे बातकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे लगा कि उनके लिए मैं एक उम्मीद बन रही हूं। मैं उनकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती।’
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में स्वर्णिम प्रदर्शन
खेलो इंडिया यूनिर्विसटी गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने के बाद भी बुशरा अपनी परफॉर्मेंस से बहुत खुश नहीं हैं। उन्होंने बताया, ‘मैं जो ट्रेनिंग करके आई हूं उससे मेरा बेकार टाइमिंग लगा है। मेरी तबीयत खराब थी। मुझे एक दिन पहले बुखार भी था तो इसलिए मैं बहुत अच्छा भाग नहीं पाई। मैंने जो प्रैक्टिस की थी, उसमें अच्छी टाइमिंग थी, तो मुझे पता था कि मेरा गोल्ड है। मेरा बेस्ट टाइम 16.38 है। बुशरा ने यह भी बताया कि अभी थोड़ा मुझे इंजरी भी हुई है। मेरे हिप और हैमस्ट्रिंग में इंजरी है। मतलब अभी मेरा एक पैर सही से काम नहीं करता।’
एथलेटिक्स में कैसे शुरुआत हुई के सवाल पर बुशरा ने कहा, ‘जब मैं बहुत छोटी थी, मतलब चलना ही सीखी थी तब मैं बहुत भागती थी। तब मेरी मम्मी मुझे बांधकर रखती थीं ताकि मैं भाग नहीं पाऊं। मेरा रनिंग करने का शौक था, लेकिन हमारे मजहब में गर्ल्स को बाहर निकालते नहीं हैं। सब लोग कहते थे कि लड़की बाहर नहीं निकलेगी। इस कारण शुरुआत में बहुत दिक्कत हुई थी। मेरी मम्मी ने मुझे अपने जेवर बेचकर मुझे पढ़ाया। मेरे पापा फैक्ट्री में काम करते थे।’
बुशरा खान ने कहा, ‘मैं ऑक्सफोर्ड स्कूल में पढ़ती थी। जब 6-7 साल की थी तो स्कूल में प्रतियोगिताएं होती थीं। मुझे लड़कों से कॉम्पिटिशन करने में बहुत अच्छा लगता था। स्कूल में एक स्पोर्ट्स टीचर थे। उन्होंने मुझे कॉम्पिटिशन में दौड़ते हुए देखा और जब मैं फर्स्ट आई तो उन्होंने मुझे ग्राउंड पर बुलाया। उन्होंने कहा कि तुम आओ मैं तुम्हारी तैयारी कराऊंगा।’
बुशरा ने बताया, ‘मैं रोजाना शाम को पापा के साथ बैडमिंटन खेलती थी। मैंने सर से कहा कि मैं बैडमिंटन भी खेलूंगी और रनिंग भी करूंगी, तो उन्होंने मुझे बोला कि अभी तुम फिटनेस के लिए सिर्फ रनिंग करो। सात दिन के बाद मेरी प्रतियोगिता थी। मैंने तीन महीने में तीन नेशनल खेल लिए। इससे मेरी रुचि बढ़ती चली गई। मुझे कुछ आता नहीं था, न स्टार्ट आदि। फिर सर ने मुझे सिखाया।’
बुशरा खान गौरी ने बताया, ‘एक साल बाद मेरा नेशनल में ब्रॉन्ज मेडल लगा। बाद में टीटी नगर स्टेडियम में एथलेटिक्स की एकेडमी खुली तो वहां मेरा इम्प्रूवमेंट हुआ। वहां कोच एसके प्रसाद सर ने मुझे 2023 में इंटरनेशनल एथलीट बनाया।’ बुशरा खान जब अंडर-16 में थीं तब उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया था।
पढ़ाई और खेल में क्या चुनना है के सवाल पर बुशरा बोलीं, ‘मुझे दोनों मेंटेन करना है, क्योंकि खेल के साथ-साथ पढ़ाई भी जरूरी होती है।’ भविष्य की योजनाओं पर बुशरा ने कहा, ‘मेरा सपना ओलंपिक में पदक जीतना है। मेरी योजना यह है कि इसकी शुरुआत मैं एशियन गेम्स से करूं। यदि स्कॉलरशिप वगैरह से मुझे सपोर्ट हो जाएगा तो मैं अच्छा कर पाऊंगी।’ Yearender 2025: विनेश फोगाट की वापसी, अंतिम पंघाल की चमक, भविष्य की मजबूत नींव, भारतीय कुश्ती के लिए अहम रहा साल
