भारत में सट्टा लगाना कानूनी अपराध है। कई लोग फैंटेसी लीग और अन्य ऐसे आॅनलाइन खेल जिसमें सीधे पैसा दांव पर लगाया जाता हो, उसे सट्टा की श्रेणी में ही रखते हैं। आनलाइन खेलों के लिए लोगों को यह समझा पाना की यह सट्टा नहीं कौशल का खेल है, यह सबसे बड़ी चुनौती है। कई कंपनियां इस क्षेत्र में लगातार काम कर रही हैं।

दरअसल, फैंटेसी लीग के प्रारूप को समझे बगैर ही कई लोग इसे सट्टा की श्रेणी में रख देते हैं। जानकार कहते हैं कि यह विशेषज्ञता का खेल है। इसलिए इसे सट्टेबाजी और जुए से अलग माना जाना चाहिए। हाल ही में नीति आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें कहा गया है कि फैंटेसी स्पोर्ट्स पर बैन लगाना समाधान नहीं है। आयोग के मुताबिक इन प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाने से तेजी से बढ़ते इस सेक्टर में इनोवेशन रुक जाएगा। नीति आयोग ने अनुमान लगाया कि आने वाले समय में इस सेक्टर में बड़ा एफडीआइ निवेश हो सकता है। साथ ही 2023 तक 150 करोड़ का आनलाइन ट्रांजेक्शन इस इंडस्ट्री से हो सकता है।

फैंटेसी लीग कंपनियों ने हाल के दिनों में अपने प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता रखने के लिए काफी काम किया है। साथ ही पैसे के लेन-देन में भी सभी जरूरी नियमों का पालन किया जाता है।

पेमेंट गेटवे को लेकर भी सभी कानूनी प्रक्रियाओं का ध्यान रखा जाता है। इस खेल प्रारूप में जो टीम बनाया जाता है वह सभी प्रतिभागी को दिखता है और जो प्राइस मनी है वह भी सभी को दिखता है।

ऑनलाइन आयोजन से फीफा को भी बड़ा मुनाफा
फुटबॉल की सुप्रीम संस्था फीफा ने 2020 की अपनी वित्तीय रिपोर्ट जारी की है। कोरोना से प्रभावित इस साल में उसने कुल 1930 करोड़ रुपए कमाए हैं। इसमें 1150 करोड़ की कमाई गेमिंग की लाइसेंसिंग राइट्स से हुई है। फीफा के इतिहास में यह पहला मौका है जब उसे पारंपरिक खेल से ज्यादा कमाई वीडियो गेंमिंग से हुई है। फीफा ने कहा कि उसने ई-क्लब विश्व कप के अलावा, ई-चैलेंजर्स सीरीज, फीफा ई-नेशन्स, स्टे एंड प्ले फ्रेंडलिज, और ई-कॉन्टिनेन्टल का सफल आयोजन किया। ये सारे टूर्नामेंट आॅनलाइन ही खेल गए। फीफा के अध्यक्ष जियानी इन्फेंटिनो ने कहा कि इससे फीफा और अन्य इंटरनेशनल फेडरेशन को पता चलता है कि कैसे युवाओं को खेल के साथ जोड़ने के लिए वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर भी ध्यान देने की जरूरत है।