भारतीय क्रिकेट टीम के सफल कप्तानों में से एक मोहम्मद अजहरुद्दीन मैदान पर हमेशा खड़े कॉलर में ही दिखाई देते थे। यही नहीं, खेल से रिटायर होने के बाद भी वह जब भी स्पोर्ट्स किट में होते हैं तो उनका कॉलर खड़ा ही रहता है। बहुत से लोगों को उनका इस तरह से कॉलर खड़े रखना स्टाइल लगता हो, लेकिन वास्तविक कारण उनके स्वास्थ्य (हेल्थ) से जुड़ा है। अजहर ने एक शो के दौरान इस बारे में बताया था। उनसे एंकर ने पूछा था कि यह कोई स्वैग है या फिर कुछ और?
इस पर अजहर ने कहा, इसके पीछे कोई स्टाइल नहीं है। दरअसल, मैं अक्सर सिली पॉइंट पर फील्डिंग करता था। यह एक ऐसी जगह होती है जहां आप पर सूर्य की रोशनी पड़ती ही है। फील्डिंग करते हुए मेरी त्वचा खासकर गर्दन पर सूरज की रोशनी का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता था। सूर्य की किरणों और गर्मी के कारण मेरी त्वचा लाल हो जाती थी। इससे बचने के लिए मैंने 1992-93 के आसपास कॉलर खड़ा करना शुरू कर दिया। इससे मुझे आराम मिला। अब यह मेरी आदत बन गई है।
उन्होंने एंकर को बताया, कल भी जब मैं आ रहा था, तो एक व्यक्ति ने मुझे टोका कि अजहर भाई आपका कॉलर अब भी ऊपर है। इस पर मैंने कहा, नीचे कर लूं। तो वह कहने लगा कि नहीं नहीं ठीक है। शो में उनके साथ संजय मांजरेकर और वेंक्टेश प्रसाद भी मौजूद थे। वे 1996 में 9 मार्च को बेंगलुरु में हुए आईसीसी वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल की बात कर रहे थे। उस मैच में भारत ने पाकिस्तान को 39 रनों से हरा दिया था।
इस दौरान अजहर ने बताया कि उस समम हमारी टीम मीटिंग बहुत स्ट्रिक्ट होती थी। नवजोत सिंह सिद्धू तो बोलते तक नहीं थे। इस पर एंकर ने आश्चर्य जताया तो अजहर ने कहा, हां यदि कोई कुछ बोल दे तो वह लड़ने के लिए तैयार रहते थे। एक बार आमिर सोहेल को मैदान पर ही बल्ला उठाकर दिखाया था। इस दौरान संजय मांजरेकर ने बताया कि कप्तान अजहर की फील्डिंग को लेकर थ्योरी का भी खुलासा किया। उन्होंने कहा, अजहर का कहना था कि दिन में सौ कैच लो, जैसे भी हाथ रखोगे गेंद आकर हाथ में चिपकेगा।
बता दें कि अजहरुद्दीन सफेद रंग का हेलमेट पहनकर ही बल्लेबाजी करते थे। इसके पीछे का राज यह है कि अजहर को सफेद रंग बहुत भाता था, इसलिए उन्हें सफेद रंग के हेलमेट से भी ज्यादा लगाव था। वह टेस्ट मैचों में भी सफेद हेलमेट ही पहनते थे। तब नीले रंग का ही हेलमेट पहनना आवश्यक भी नहीं था। अजहर की यह स्टाइल भी विश्व क्रिकेट में काफी लोकप्रिय हो गई।