दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि पहलवान सुशील कुमार और नरसिंह पंचम यादव को कुश्ती महासंघ की राजनीति में मोहरों की तरह उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने रियो ओलंपिक 2016 में 74 किग्रा फ्रीस्टाइल में भारत का प्रतिनिधित्व कौन करेगा इसको लेकर इन दोनों के बीच चल रही खींचतान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने आश्चर्य जताया कि देश का मान बढ़ाने वाले ये दोनों पहलवान क्या यह जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं क्योंकि ये चीजें महासंघ में राजनीति के कारण हो रही हैं, जो कि चौंकाने वाली हैं। उन्होंने कहा, ‘ये सभी चीजें महासंघ में राजनीति के कारण हो रही है। इन दोनों पहलवानों का उपयोग मोहरों की तरह नहीं किया जाना चाहिए। उनका उपयोग राजनीति के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह हैरान करने वाला है।’ न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘मैं नहीं जानता कि क्या वे (सुशील और नरसिंह) इस बात को समझते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। वे दोनों अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।’
अदालत दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अपनी याचिका में सुशील ने भारती कुश्ती महासंघ (डब्लूएफआइ) को चयन ट्रायल करवाने का निर्देश देने का आग्रह किया है, ताकि यह तय हो सके कि रियो खेलों में 74 किग्रा फ्रीस्टाइल में भारत का प्रतिनिधित्व कौन करेगा। इस पर एक जून को भी जिरह जारी रहेगी।
सुनवाई के दौरान नरसिंह की तरफ से उपस्थित सीनियर एडवोकेट निदेश गुप्त ने कहा कि उनके मुवक्किल ने 74 किग्रा में पिछले साल विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक जीतकर रियो खेलों के लिए कोटा हासिल किया था। उन्होंने कहा, ‘जो खिलाड़ी कोटा हासिल करता है वह ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करता है। पिछला रिकार्ड यही कहता है। सुशील कुमार स्वयं पहले तीन अवसरों पर इसका फायदा उठा चुके हैं। इस समय चयन ट्रायल करवाना अनुचित होगा।’
सुशील के वकील के इस तर्क पर पिछले साल इस वर्ग में चयन ट्रायल क्यों किया गया, गुप्त ने कहा, ‘ट्रायल सितंबर 2015 से पहले किया गया था क्योंकि विश्व चैंपियनशिप सितंबर में होनी थी। यदि हम अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को नहीं भेजते तो कोटा हासिल करने की संभावना भी कम हो जाती।’ उन्होंने दावा किया कि सुशील ने जुलाई 2014 के बाद किसी भी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया। गुप्त ने साथ ही यह दावा भी किया कि सुशील ने पहले महासंघ को चिकित्सा प्रमाणपत्र मुहैया नहीं कराए थे। गुप्त ने कहा, ‘पिछले दो सालों से उन्होंने (सुशील) किसी भी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया। डब्लूएफआइ ने भी यही बात की। उन्होंने पिछले दो साल से कुछ भी नहीं किया।’
सुशील की तरफ से उपस्थित सीनियर एडवोकेट अमित सिब्बल ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल ने डब्लूएफआइ को चिकित्सा प्रमाणपत्र दिया था। सुनवाई के दौरान गुप्त ने अदालत ने कहा कि सुशील ने 35 दिन के लिए प्रमाणपत्र दिया था लेकिन पिछले दो साल में उन्होंने किसी भी चयन ट्रायल या प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने कहा कि यादव का नाम रियो भेज दिया गया है और ओलंपिक के लिए क्वालीफिकेशन का समय सितंबर 2015 से मई 2016 तक है, जो मंगलवार को खत्म हो रहा है।
नरसिंह के वकील ने उनकी तरफ से कहा, ‘मुझे निष्पक्ष और उचित तरीके से प्रतियोगिता के लिए चुना गया।’ उन्होंने बताया कि नरसिंह भारतीय दल के साथ अभ्यास करने के लिए दो जून को पोलैंड जा रहा है। हालांकि सुनवाई के आखिरी क्षणों में सिब्बल ने अदालत से कहा कि ओलंपिक के लिए नाम भेजने की अंतिम तिथि 18 जुलाई है और डब्लूएफआइ की तरफ से नाम भेज दिए गए हैं, यह मामला नहीं है। डब्लूएफआइ ने इससे पहले अदालत में कहा था कि रियो ओलंपिक में 74 किग्रा भार वर्ग में सुशील की तुलना में नरसिंह बेहतर दांव है।

