बीसीसीआई भारत के प्रमुख घरेलू टूर्नामेंट रणजी ट्रॉफी को उसके पहले दौर के तीसरे दिन यानि शनिवार (8 अक्टूबर) से बंद कर सकता है क्योंकि लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुसार अधिकतर वर्तमान पदाधिकारियों को अपने पद छोड़ने पड़ सकते हैं। अब तक 18 राज्य इकाईयों ने कोष नहीं मिलने पर घरेलू मैचों के आयोजन में असमर्थता जतायी है। बीसीसीआई के सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने यह बात उच्चतम न्यायालय के सामने रखी। शीर्ष अदालत का फैसला शुक्रवार (7 अक्टूबर) को आएगा और विश्वस्त सूत्रों के अनुसार 83वीं रणजी ट्रॉफी पर इसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ सकता है। सूत्रों ने कहा, ‘इसकी पूरी संभावना है कि रणजी ट्रॉफी को तीसरे दिन से ही रोक दिया जाए। यदि बोर्ड ही नहीं रहेगा तो फिर ऐसी स्थिति में मैचों का आयोजन कैसे हो सकता है। केवल रणजी ट्रॉफी ही नहीं बल्कि सीनियर और जूनियर महिला चैंपियनशिप, अंडर 23, अंडर-19 और अंडर-16 चैंपियनशिप भी इसमें शामिल हैं। बीसीसीआई के इन मैचों को सही तरह से चलाने के लिए आपको पैसे की जरूरत पड़ती है।’

उन्होंने कहा, ‘यदि पूर्व मुख्य न्यायाधीश के अगुवाई वाली लोढ़ा समिति सदस्यों को सिफारिशें स्वीकार करने के लिए दबाव नहीं डाल सकती तो फिर आपको क्या लगता है कि बीसीसीआई अध्यक्ष के लिए यह संभव है कि वह उन्हें इन सिफारिशों को मानने के लिए मजबूर करें। हां रणजी ट्रॉफी पर खतरा मंडरा रहा है।’ बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर उच्चतम न्यायालय की गुरुवार (6 अक्टूबर) की कार्यवाही पर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे लेकिन उनके करीबी सूत्रों ने कहा कि क्रिकेटर के रूप में उनके योगदान पर उठाए गए सवालों से वह आहत नहीं हैं।

ठाकुर के करीबी व्यक्ति ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, ‘अनुराग राजनीतिज्ञ हैं। अक्सर राजनीतिज्ञों को आलोचनाएं झेलनी पड़ती है और वह आहत नहीं हुए हैं। लेकिन उन्होंने पंजाब की अंडर-16 और अंडर-19 टीमों की कप्तानी की है। उन्होंने अंडर-19 स्तर पर राष्ट्रीय टूर्नामेंट में 196 और 163 रन की पारियां खेली है। यदि वह अक्षम होते तो धर्मशाला में स्टेडियम नहीं बना पाते।’ देश भर के विभिन्न स्टेडियमों में अभी रणजी ट्रॉफी के 13 मैच खेले जा रहे हैं। राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने के लिये किसी भी प्रथम श्रेणी क्रिकेटर का रणजी ट्रॉफी में खेलना अनिवार्य है।