गुजरात के प्रियंक पांचाल ने इस साल रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्‍यादा रन बनाए हैं। वे आठ मैचों में 1120 रन बनाकर सबसे आगे हैं और उनका औसत 101.81 का है। 1934 में रणजी ट्रॉफी शुरू होने के बाद पहली बार है यानि लगभग 82 साल में पहली बार है जब गुजरात का कोई बल्‍लेबाज रन बनाने में सबसे ऊपर है। इस साल उन्‍होंने लगातार तीन शतकीय पारियां खेली हैं। इनमें उनका स्‍कोर मुंबई के खिलाफ 232, पंजाब के खिलाफ नाबाद 314 और तमिलनाडु के खिलाफ 113 रन शामिल हैं। गुजरात के रणजी ट्रॉफी के सेमीफाइनल में पहुंचने में उनका बड़ा योगदान है।

प्रियंक के लिए हालांकि सफर इतना आसान नहीं रहा। जब वे 15 साल के थे तो उनके पिता गुजर गए थे। उनके पिता किरीटभाई पांचाल शेयर ट्रेडिंग में थे। उनकी असामयिक मौत ने परिवार को हिलाकर रख दिया। प्रियंक इस बारे में बताते हैं, ”मेरे पिता को क्रिकेट का काफी शौक था। उन्‍होंने यूनिवर्सिटी लेवल तक क्रिकेट खेला भी था, उनके कारण मैं क्रिकेटर बना। पिता के जाने के बाद मां दीप्तिबेन ने सारी जिम्‍मेदारियां उठाईं। उन्‍होंने फैशन डिजाइनिंग शुरू की और यह तय किया कि मेरे खेल पर असर ना पड़े। इसके बाद मेरी बहन बृंदा की नौकरी लग गई और उन्‍होंने मेरी देखभाल की।”

पांचाल को पढ़ने और डायरी लिखने का शौक है। इस बारे में उन्‍होंने बताया, ”मुझे यह आदत 19 साल की उम्र से है। मैं क्रिकेटर्स की जीवनियां पढ़ा करता था। मेरे आदर्श राहुल सर(द्रविड़) पर लिखी किताबें स्‍पेशल हैं लेकिन मुझे रिकी सर(पोटिंग) और सचिन सर(तेंदुलकर) की जीवन की कहानियों ने भी मोहित किया। मैं हर रोज डायरी लिखता हूं। मैं अपने बारे में और यादगार घटनाओं के बारे में लिखता हूं। मैं ब्‍लॉग शुरू करने के बारे में सोच रहा हूं।” प्रियंक अपने समकालीन क्रिकेटर्स से काफी अलग हैं। उन्‍होंने गुजरात यूनिवर्सिटी से फाइनेंशियल मैनेजमेंट में पोस्‍ट ग्रेजुएट भी कर रखा है। वर्तमान में बहुत कम भारतीय क्रिकेटर हैं जिन्‍होंने हायर स्‍टडीज की हो।

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गुजरात के बल्‍लेबाज प्रियंक पांचाल की डायरी।

साल 2012 में इंग्‍लैंड से सीरीज के दौरान उन्‍हें भारतीय टीम में रिजर्व के रूप में लिया गया था। नागपुर टेस्‍ट के दौरान वे टीम इंडिया के साथ ही थे। इस दौरान उन्‍हें महेंद्र सिंह धोनी से सलाह मिली, ”जो दिल से खेलता है उसके शॉट से ही पता चलता है।” प्रियंक ने इस अनुभव के बारे में बताया, ”भारत सीरीज में 1-2 से पीछे था इसके बाद भी आला खिलाड़ी काफी सकारात्‍मक थे। वे पारी बनाने के बारे में चर्चा कर रहे थे और इससे मैंने काफी सीखा। और उन्‍होंने मुझे रिजर्व के रूप में महसूस नहीं कराया। एक बार जब मैं टीम हडल( जब खिलाड़ी घेरा बनाकर रणनीति पर चर्चा करते हैं) के समय बाहर खड़ा था तो ईशांत शर्मा मुझे साथ लेकर गए।”

प्रियंक बिना पर्सनल कोच के क्रिकेट के इस मुकाम तक पहुंचे हैं। इस बारे में उनका कहना है, ”किरण ब्रम्‍हट समर कैंप में मेरे कोच थे लेकिन मैंने कभी पर्सनल कोच नहीं रखा। आज भी मैं खुद ही अपना खेल एनालिसिस करता हूं। हालांकि मैं पार्थिव पटेल भाई और अन्‍य खिलाडि़यों से बात करता हूं लेकिन आपको खुद को अपने खेल के बारे में सोचना होता है।”