संदीप भूषण
विराट कोहली वर्तमान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक ऐसा नाम बन गए हैं जिनमें सिर्फ जीत और जब्जा नजर आता है। इस ओहदे और सम्मान को हासिल करने के लिए निसंदेह उन्होंने कड़ी मेहनत की। बल्लेबाज के रूप में दमदार प्रदर्शन से उन्हें आस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीवन स्मिथ और इंग्लैंड जोए रूट से भी आगे माना जा रहा है। वे इसके हकदार भी हैं, लेकिन क्या यही उनकी असली काबिलियत है? इस सवाल के जवाब में दिग्गजों का मानना है कि कोहली की असली परीक्षा विदेशी दौरों पर ही होगी। अगर ऐसा है तो एशियाई पिचों पर कप्तान के तौर पर सफल रहे कोहली के लिए अगले दो साल अग्निपरीक्षा के हैं।
एक बल्लेबाज के रूप में विराट ने अपने दम पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आशातीत सफलता हासिल की है। 2014-15 में टीम इंडिया के कप्तान बनने के बाद उन्होंने अपने लय को बरकरार रखा है और कप्तान के तौर पर भी कई उपलब्धियां अपने खाते में जोड़ी हैं। आंकड़ों को देखें तो हालिया भारत-श्रीलंका टैस्ट शृंखला से पहले 29 टैस्ट मैचों में से भारत ने 19 अपने नाम किए हैं। एकदिवसीय में भी भारतीय टीम का रेकार्ड 30 मैचों में 22 जीत का है। टी-20 अंतरराष्ट्रीय में चार मैचों में दो जीत और दो हार भारत के नाम है। इस लिहाज से देखें तो विराट भारत के सफलतम कप्तानों की श्रेणी में आ गए हैं।
घरेलू पिचों के बादशाह
भारतीय कप्तान के रूप में विराट के प्रदर्शन को आंका जाए तो यह साफ हो जाता है कि उन्होंने जो उपलब्धियां अपने खाते में डाली हैं उनमें 90 फीसद घरेलू सरजमीं पर खेली गई शृंखलाओं की हैं। इस जीत में दो शृंखलाएं ऐसी हैं जो उन्होंने श्रीलंका और वेस्ट इंडीज के साथ खेली हैं और उनमें जीत हासिल की हैं लेकिन इसके साथ यह भी तथ्य जुड़ जाता है कि ये दोनों ही टीमें अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही हैं। इससे यह साफ समझा जा सकता है कि विदेशी पिचों पर भारत की जीत कोहली के लिए कितनी मायने रखती है। साथ ही कोहली के लिए अगले दो साल चुनौतीपूर्ण लेकिन ऐतिहासिक होंगे।
असली परीक्षा अभी बाकी है
घरेलू पिच पर लगातार जीत के साथ ही खिलाड़ियों और आलोचकों के मन में यह भ्रम होने लगता है कि शायद टीम अपने सफल दौर से गुजर रही है। यह कोहली जैसे कप्तान के लिए खतरनाक हो सकता है। अगले दो-तीन सालों में भारतीय टीम को कई विदेशी दौरे करने हैं। यहां की परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन से ही कोहली सेना की असली ताकत और एकता का पता चलेगा। 2017 से 2019 के बीच उन्हें दुनिया की चंद सबसे दिग्गज टीमों के साथ उन्हीं की पिच पर भिड़ना है।

सबसे पहले इसमें नवंबर 2017 से जनवरी 2018 तक उन्हें दक्षिण अफ्रीका के साथ घसियाली और उछालभरी पिच पर तीन टैस्ट, सात एकदिवसीय और दो टी-20 मैच खेलना है। इसके बाद जून-अगस्त 2018 में इंग्लैंड से पांच टैस्ट, पांच एकदिवसीय और एक टी-20 खेलना है। नवंबर 2018 से जनवरी 2019 के बीच चार मैचों की टैस्ट सीरीज खेलने भारत आस्ट्रेलिया जाएगी। इसी साल फरवरी-मार्च में न्यूजीलैंड दौरा भी है जहां उसे तीन टैस्ट, पांच एकदिवसीय और दो टी-20 मैच खेलने हैं। जून-जुलाई में इंग्लैंड की धरती पर आइसीसी विश्व कप का आयोजन भी होना है।

क्रिकेट जगत में एशियाई देशों के लिए दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड की पिचों पर खेलना काफी चुनौतीपूर्ण माना जाता है। इसका कारण है यहां कि घास वाली पिचें और मौसम। भारत में आम तौर पर पिच धीमी और स्पिनरों के लिए सहायक होती है, लेकिन विदेशों में इसके उलट पिच तेज गेंदबाजों के लिए मददगार होती हैं। इसलिए अगले दो साल कोहली को एक सफल बल्लेबाज और बेहतर कप्तान के रूप में निखारने के लिए काफी अहम हैं।

पहले से ही घसियाली पिचों पर अभ्यास
विराट कोहली अपनी अगली चुनौती से भलीभांति वाकिफ हैं। यही कारण है कि भारतीय माहौल के विपरीत वह घसियाली पिचों पर मैच खेलने को तवज्जो दे रहे हैं। श्रीलंका के खिलाफ कोलकाता के ईडन गार्डन का पहला टैस्ट मैच हो या नागपुर में खेला गया दूसरा टैस्ट मैच, कोहली ने दोनों में घास वाली पिच बनाने की वकालत की। उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिण अफ्रीकी दौरे से पहले ऐसी पिचों पर खेलने से वहां के माहौल में ढलने में मदद मिलेगी।