मनोज जोशी
लगता है कि दोयम दर्जे की श्रीलंका टीम को उसी की जमीं पर हराकर भारतीय टीम के कोच रवि शास्त्री सहित कुछ अति उत्साही क्रिकेट प्रेमी कुछ ज्यादा ही इतराने लगे हैं जबकि वे इस बात से वाकिफ हैं कि यह श्रीलंका की हाल के वर्षों की सबसे कमजोर टीम है और उसके कुछेक अच्छे खिलाड़ी पूरी तरह से फॉर्म में नहीं हैं। संभव है कि यह टीम इस शृंखला में श्रीलंका का सूपड़ा साफ करके विदेशी जमीं पर अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सफल हो जाए लेकिन क्या इस आधार पर यह कहना ठीक होगा कि मौजूदा भारतीय टीम ने अतीत की उन टीमों से कहीं अधिक उपलब्धियां हासिल की हैं जिनमें बड़े-बड़े नाम शामिल थे। रवि शास्त्री यह तो कहते हैं कि टीम ने 2015 में 22 साल बाद यहां टैस्ट सीरीज जीती और अब उससे भी बड़ी कामयाबी हासिल की है लेकिन वह यह नहीं बताते कि धोनी की कप्तानी में टीम ने न्यूजीलैंड में 41 साल बाद शृंखला जीती थी। राहुल द्रविड़ की अगुवाई में इंग्लैंड को 2007 में इंग्लैंड में 1-0 से हराया था और सौरभ गांगुली की टीम ने आॅस्ट्रेलिया से 2004 में 1-1 से शृंखला ड्रॉ खेली थी।
अगर और पीछे चलें तो मौजूदा टीम को अजित वाडेकर और कपिल देव की टीमों से सीख लेने की जरूरत है जिन्होंने तमाम मुश्किल हालात में विदेश में आला दर्जे की टीमों के खिलाफ आला दर्जे से शृंखला फतह की थी। क्या रवि शास्त्री 70 के दशक की उस वेस्ट इंडीज टीम को उसी की सरजमीं पर हराने का वह कमाल भूल गए जब उस टीम की विश्व क्रिकेट में तूती बोलती थी। क्या वह उसी वर्ष इंग्लैंड की उस टीम को उसी की जमीं पर हराने के उस करिश्मे को भी भूल गए जब इंग्लैंड के लगातार 26 मैचों से अपराजित रहने के क्रम को भारत ने ही तोड़कर उसी की धरती पर इतिहास रचा था। क्या कपिल देव की उस टीम के महत्व को कभी नजरअंदाज किया जा सकता है जब टीम ने इंग्लैंड को उसी की धरती पर दो टैस्टों में हराकर शृंखला अपने नाम की थी जबकि इंग्लैंडकी टीम भी उन दिनों अच्छी खासी ताकतवर थी। क्या सुनील गावसकर के रूप में एक ऐसे खिलाड़ी के शृंखला में 774 रनों की कोई बराबरी कर पाएगा, जिनकी वह पहली सीरीज थी और वह भी एक खूंखार टीम के खिलाफ। इस शृंखला में गावसकर ने एक दोहरे शतक सहित कुल चार शतक लगाकर हैरतअंगेज प्रदर्शन किया था। अजित वाडेकर की उस टीम के सामने क्लाइव लॉयड, रोहन कन्हाई और गैरी सोबर्स जैसे धाकड़ मौजूद थे। गौरतलब बात यह है कि वह शृंखला भारत ने अपने तुरुप के इक्के यानी चंद्रशेखर के बिना जीती थी।
विदेशी सरजमी पर जीत की सच्चाई यह है कि हम आज तक आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में टैस्ट शृंखला नहीं जीत पाए हैं। हमने श्रीलंका की मौजूदा शृंखला सहित जो 18 जीतें अब तक दर्ज की हैं, उनमें से ज़्यादातर भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। इनमें श्रीलंका से तीन, बांग्लादेश से चार और पाकिस्तान से एक शृंखला जीत शामिल है। इसी तरह उपमहाद्वीप के बाहर हमने जिम्बाब्वे से एक और न्यूजीलैंड से दो शृंखलाएं जीती हैं। वेस्ट इंडीज से भारत ने उसी के मैदान पर जिन तीन मौकों पर शृंखला जीती है, उनमें दो ऐसे मौके थे, जब यह टीम पूरी तरह से चुक चुकी थी। आज हमारे सामने वेस्ट इंडीज और इंग्लैंड के खिलाफ 1971 और 1986 की जीत हैं जो हमें इतराने का मौका देती हैं और मौजूदा टीम को उसी से सीख लेने की जरूरत है। जिस दिन यह टीम आॅस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका को उसी की सरजमीं पर हरा देगी, तब उसकी तुलना दिग्गज टीमों से करने के बारे में सोचना उचित होगा।
इसलिए बेहतर होगा कि तब तक रवि शास्त्री भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को उल्टे-सीधे तर्क देकर भ्रमित न करें क्योंकि अभी भारतीय को विदेशों में जीत हासिल करने का लंबा सफर तय करना है।
विदेश में 18वीं बार
विरुद्ध वर्ष परिणाम कुल टैस्ट
न्यूजीलैंड 1967-68 3-1 4
वेस्ट इंडीज 1970-71 1-0 5
इंग्लैंड 1971 1-0 3
इंग्लैंड 1986 2-0 3
श्रीलंका 1993 1-0 3
बांग्लादेश 2000-01 1-0 1
पाकिस्तान 2003-04 2-1 3
बांग्लादेश 2004-05 2-0 2
जिम्बाब्वे 2005 2-0 2
वेस्ट इंडीज 2006 1-0 4
बांग्लादेश 2007 1-0 2
इंग्लैंड 2007 1-0 3
न्यूजीलैंड 2008-09 1-0 3
बांग्लादेश 2009-10 2-0 2
वेस्ट इंडीज 2011 1-0 3
श्रीलंका 2015 2-1 3
वेस्टइंडीज 2016 2-0 4
श्रीलंका 2017 2-0 (1 टैस्ट बाकी) 3
कपिल देव की वह भारतीय टीम
1986 में कपिल की टीम ने इंग्लैंड को उसके ही मैदान में 2-0 से पटखनी दी थी। क्या कपिल, चेतन शर्मा, रोजर बिन्नी और मनिंदर सिंह के उस आक्रमण को कमतर करके आंका जा सकता है जिसने उस जीत में अहम भूमिका निभाई थी और वेंगसरकर का बल्ला उस शृंखला में इंग्लैंड पर भारी पड़ा था। इसी तरह राहुल द्रविड़ की अगुआई में इंग्लैंड को इंग्लैंड में हराकर उस टीम की जान में जान आ गई थी जो विश्व कप में बुरी तरह से हारी थी।
