किसी भी क्रिकेटर की पूंजी है उसका मैदान पर किया गया प्रदर्शन। आंकड़े इसके गवाह बनते हैं। कितने रन बनाए, कितने शतक या अर्धशतक मारे, कितने विकेट लिए, यह सब इतिहास में दर्ज हो जाता है। पर इस प्रदर्शन की अहमियत तब बढ़ती है जब साथ में जुड़ी हो प्रमुख खिताबी सफलताएं। भारतीय महिला क्रिकेट में कुछ ऐसा है। दशकों के इस सफर में एक भी विश्व खिताब नहीं। टीम इंडिया दो बार – 2005 और 2017 में इतिहास रचने के करीब पहुंची पर फाइनल में हार से विश्व चैंपियन बनने का सपना टूट गया।
न्यूजीलैंड में चल रहे 50 ओवरों के विश्व कप में यह सपना पूरा करने का सुनहरा मौका था। टीम सही राह पर भी थी लेकिन युवा प्रतिभाओं और अनुभवी खिलाड़ियों से करिश्माई प्रदर्शन नहीं देखने को मिला। विश्व कप से पहले परिस्थितियों के अनुकूल अपने को ढालने के लिए भारतीय महिलाओं ने मेजबान न्यूजीलैंड के साथ एकदिवसीय शृंखला भी खेली।
इस शृंखला ने उनकी कई खामियों को उजागर भी किया। अफसोस की बात यह रही कि भारत इन कमजोरियों से कोई सबक नहीं ले पाया। बल्लेबाजों के प्रदर्शन में एकरूपता नहीं रही। जब उन्होंने सम्मानजनक स्कोर खड़ा किया तो गेंदबाज उसका बचाव कर पाने में नाकाम रहे। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ‘करो या मरो’ वाले मुकाबले में आखिरी ओवर में दीप्ति शर्मा नो बाल कर गई जिससे बाजी हाथ से निकल गई। अंतिम गेंद पर रन बनाकर दक्षिण अफ्रीका ने भारत को विश्व कप से बाहर कर दिया। लीग अभियान में गलतियां और भी हुईं। महत्त्वपूर्ण मौके पर कैच टपकाना, अच्छी शुरुआत को बड़े स्कोर में नहीं बदल पाना और पावरप्ले में धीमी बल्लेबाजी जैसी बातें हमेशा परेशान करती रहेंगी।
दरअसल अपनी विदाई का रास्ता खुद भारतीय टीम ने बनाया। पिछली चैंपियन इंग्लैंड की टीम पहले तीन मैच हारकर टूर्नामेंट में बाहर होने के कगार पर थी। उस निरुत्साहित हो चुकी टीम के खिलाफ हमने आसानी से घुटने टेक दिए। पूरी टीम 134 रन पर लुढ़क गई। अगर उस मैच को भारत ने दमदार तरीके से खेला होता तो यह नौबत नहीं आती। लेकिन हमने उन्हें जीत का मंत्र दे दिया। ऐसे निराशाजनक प्रदर्शन की टीम से कतई उम्मीद नहीं थी। इंग्लैंड ने इस जीत से अपनी लय पाते हुए अगले तीन मुकाबले जीतकर सेमी फाइनल में जगह बना ली। किस्मत ने वेस्ट इंडीज टीम का भी साथ दिया। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उनका मैच बारिश में धुल गया। अंक बंट गए और वेस्ट इंडीज की नैया पार लग गई। आस्ट्रेलिया अपने सभी मैच जीतकर खिताब की प्रबल दावेदार बनकर उभरा।
कहां-कहां गलतियां हुईं, इसका मंथन जरूर होगा। पर मिताली राज और झूलन गोस्वामी को जैसी विदाई मिलनी चाहिए थी, नहीं मिली। सबसे ज्यादा दर्द तो इन्हें पहुंचा है। एक छठा विश्व कप खेल रही थीं तो दूसरी पांचवां। वैसे दोनों अपने अंतरराष्ट्रीय करिअर पर गर्व कर सकती हैं। मिताली ने 22 साल और झूलन ने 17 साल के करिअर में कई उपलब्धियां अर्जित कीं। इस विश्व कप में भी उनके नाम रेकार्ड दर्ज हुए।
मिताली विश्व कप में सर्वाधिक अर्धशतकीय पारियां खेलने वाली खिलाड़ी बनीं। 36 विश्व कप मैचों में 13 अर्धशतक जमाकर मिताली ने न्यूजीलैंड की डेबी हाकले का 43 मैचों में 12 शतक जमाने का रेकार्ड तोड़ा। एकदिवसीय में सर्वाधिक रन बनाना और दस हजार अंतरराष्ट्रीय रन बनाने वाली पहली महिला क्रिकेटर बनना उनकी उपलब्धियों में शामिल है। यही नहीं विश्व कप में सबसे युवा और सबसे उम्रदराज खिलाड़ी के तौर पर अर्धशतक लगाने का गौरव भी उनके नाम है। झूलन गोस्वामी को यह अफसोस रहेगा कि वे अंतिम मैच नहीं खेल पाईं। दर्द की वजह से उन्हें मैच से हटना पड़ा। इसी दौरान उन्होंने अपना 200वां वनडे मैच खेला और 250 से ज्यादा विकेट लेकर वह नंबर एक बन गईं।
अब सबको इंतजार है मिताली राज के अगले कदम का। वे क्रिकेट से संन्यास लेंगी या अभी और खेलेंगी। वैसे 39 की उम्र में भी वह काफी फिट हैं। वनडे में 64 अर्धशतक ने उन्हें आगे चलते रहने को प्रेरित किया होगा। हो सकता है वे साल दो साल तक टीम के साथ रहे और कप्तानी का दायित्व किसी दूसरी खिलाड़ी को सौंप दें। इस विश्व कप में खिलाड़ियों के सकारात्मक प्रदर्शन से मिताली को महिला क्रिकेट का भविष्य चमकदार दिखाई दे रहा है, पर दो विश्व कप की नाकामी कोच रमेश पोवार के लिए खतरे की घंटी है।