खेल मंत्रालय के एक सूत्र ने मंगलवार को बताया कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) बुधवार 23 जुलाई 2025 को संसद में पेश किए जाने वाले नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नन्स बिल में शामिल होगा। सूत्रों के हवाले से समाचार एजेंसी पीटीआई ने लिखा, ‘सभी राष्ट्रीय खेल महासंघों की तरह, बीसीसीआई को भी इस विधेयक के अधिनियम बन जाने के बाद देश के कानून का पालन करना होगा।’

क्रिकेट को 2028 लॉस एंजिल्स खेलों में शामिल किए जाने के बाद, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भी ओलंपिक आंदोलन का हिस्सा बन गया है। राष्ट्रीय खेल विधेयक समय पर चुनाव, प्रशासनिक जवाबदेही और खिलाड़ियों के कल्याण के लिए एक मजबूत ढांचे को संस्थागत रूप देने का प्रयास करता है।’

बीसीसीआई साल 1926 में इंपीरियल क्रिकेट सम्मेलन में शामिल हो गया था, जो बाद में इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल बनी। बीसीसीआई एक स्वायत्त निजी संगठन है। बीसीसीआई भारत सरकार के राष्ट्रीय खेल महासंघ के दायरे में नहीं आता है। वह युवा मामले एवं खेल मंत्रालय से कोई अनुदान नहीं लेता है। हालांकि, साल 2020 में बीसीसीआई RTI अधिनियम के दायरे में आया था। खेल विधेयक के लागू होने पर बीसीसीआई स्वचालित रूप से एक राष्ट्रीय खेल महासंघ बन जाएगा। तब बीसीसीआई पर खेल मंत्रालय के सभी नियम और विनियम लागू होंगे।

क्या है राष्ट्रीय खेल विधेयक?

राष्ट्रीय खेल विधेयक का उद्देश्य समय पर चुनाव, प्रशासनिक जवाबदेही और खिलाड़ियों के कल्याण के लिए एक मजबूत ढांचा स्थापित करना है।

इस विधेयक का उद्देश्य राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSFs) के जरिए 10 प्रमुख मुद्दों का करना है समाधान

  • राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) में अपारदर्शी शासन: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना।
  • शासन में एथलीट्स के प्रतिनिधित्व का अभाव: एथलीट समितियों के जरिए एथलीट्स को शामिल करना और उत्कृष्ट योग्यता वाले खिलाड़ियों (एसओएम) का प्रतिनिधित्व अनिवार्य करना।
  • एनएसएफ चुनावों पर बार-बार मुकदमेबाजी: अदालती मामलों को कम करने के लिए स्पष्ट चुनावी दिशानिर्देश और विवाद समाधान तंत्र स्थापित करना।
  • अनुचित या अपारदर्शी एथलीट चयन: चयन मानदंडों का मानकीकरण और योग्यता-आधारित चयन सुनिश्चित करने के लिए ट्रायल और नतीजों के प्रकाशन को अनिवार्य करना।
  • उत्पीड़न और असुरक्षित खेल वातावरण: शिकायतों के लिए सुरक्षित खेल तंत्र, POSH अनुपालन और स्वतंत्र समितियों को अनिवार्य बनाना।
  • शिकायत निवारण माध्यमों का अभाव: एथलीट्स, प्रशिक्षकों और हितधारकों के लिए समर्पित, समयबद्ध शिकायत निवारण प्रणालियां स्थापित करना।
  • एथलीट्स के करियर को नुकसान पहुंचाने वाली लंबी कानूनी देरी: विवादों को शीघ्रता से सुलझाने के लिए फास्ट-ट्रैक मध्यस्थता या न्यायाधिकरण प्रणाली शुरू करना।
  • आयु हेरफेर और डोपिंग: कानूनी दायित्वों के रूप में सख्त सत्यापन, बायोमेट्रिक प्रणाली और डोपिंग रोधी अनुपालन को लागू करना।
  • पदाधिकारियों के बीच हितों का टकराव: हितों के टकराव के नियमों की स्पष्ट परिभाषाएं और प्रवर्तन शुरू करना।
  • NSF और IOA के लिए कोई समान संहिता नहीं: सभी खेल निकायों को एक एकीकृत शासन संहिता और पात्रता मानदंडों के अंतर्गत लाना।