बिहार में करीब देढ़ दशक से रुकी क्रिकेट की गतिविधियों को शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से राह दिखाई है। अब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को आगे का काम करना है। देश में क्रिकेट का संचालन करने वाली इस संस्था ने सियासी रंजिशों और दादागिरि की वजह से बिहार क्रिकेट को खत्म करने मे किसी तरह की कसर नहीं छोड़ी थी। यह भी सच है कि इसके लिए बिहार में क्रिकेट का संचालन करने वाले लोग भी उतने ही गुनहगार हैं, जिन्होंने अपने हित के लिए खिलाड़ियों का नुकसान किया और एक पीढ़ी वहां की खत्म हो गई।
बिहार क्रिकेट एसोसिएशन बीसीसीआइ की मान्य इकाई थी जो बिहार में क्रिकेट का संचालन कर रही थी। इसका मुख्यालय जमशेदपुर में था। बिहार विभाजन के बाद बोर्ड ने बिहार की जगह झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता दे दी। इसकी वजह अमिताभ चौधरी को माना जारहा है, जो लंबे समय से बोर्ड में पदाधिकारी हैं। उन पर धोखे से बीसीए का नाम बदल कर झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन (1935) किया गया और बोर्ड ने दरियादिली दिखाते हुए इसे मान्यता दे डाली। चौधरी ने 2003 में इस ‘बीसीए’ का गठन रांची में किया था।
लेकिन बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) से जुड़े लोग भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। बीसीए का गठन 1935 में हुआ था और तब से यह मान्य इकाई थी। बिहार बंटवारे के बाद भी यह इकाई काम करती रही, जिसका अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को बनाया गया था। लेकिन 2003 में अमिताभ चौधरी ने रांची में इसके समानांतर बीसीए का गठन कर लिया। लालू यादव की अगुआई वाली बीसीए ने एक बार बीसीसीआइ के चुनाव में भी हिस्सा लिया था और तब लालू यादव ने जगमोहन डालमिया गुट की जगह एसी मुथैया के पक्ष में वोट दिया था। लेकिन डालमिया चुनाव जीत गए और उन्होंने चुनाव में उनकी मुखालफत की सजा के तौर पर बीसीए की मान्यता को लटकाए रखा।
इस बीच क्रिकेट में अपना दबदबा बनाने के लिए पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और सांसद कीर्ति आजाद आगे आए और एसोसिएशन ऑफ बिहार क्रिकेट बना कर बीसीसीआइ को अपनी करने की छूट दे डाली। इस बीच बीसीए में भी फूट पड़ गई। बीसीए के तत्कालीन सचिव अजय नारायण शर्मा व उनके साथियों ने अपनी महत्त्वकांक्षा के लिए बीसीए में एक समानांतर समिति बना डाली। दरअसल 2009 में लालू यादव ने बिहार के पूर्व खेल मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी को बीसीए का संजयक बना कर चुनाव कराने को कहा था।
सिद्दीकी ने चुनाव के लिए तदर्थ समिति बना डाली, जिसके एक सदस्य शर्मा भी थे। लेकिन शर्मा को यह बात नागावार गुजरी और उन्होंने इस छोटी सी बात का फसाना बना कर नई समिति बना डाली। लेकिन 2010 में लालू यादव ने बीसीए को भंग कर डाला और तब शर्मा मामला अदालत लेकर चले गए। अदालत में मामला पहुंचने की वजह से बीसीसीआइ ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस बीच बिहार में एक और संस्था क्रिकेट एसोसिएशन आफ बिहार (सीएबी) का गठन हुआ। इसके अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय हैं और आदित्य वर्मा सचिव।
वर्मा ने बिहार में क्रिकेट बहाली के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी है और उन्होंने बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ी ताकि क्रिकेट में एकाधिकार खत्म हो और जो कालिख क्रिकेट पर लगी है वह खत्म हो। आइपीएल सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग को लेकर भी वे अदालत में गए और जस्टिस लोढ़ा समिति ने आइपीएल की दो टीमों पर दो साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया। इस बीच ग्यारह अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बीसीए को नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश दिया है। यानी अदालत ने बोर्ड की मान्य इकाई बीसीए को एक तरह से मान्यता देते हुए दो महीने में चुनाव कराने का आदेश दिया है। अदालत ने दोनों पक्षों से चुनाव कराने को लेकर सवाल किया था तो बीसीए के दोनों गुट ने इस पर होने वाले लगभग बारह लाख रुपए के खर्च का रोना रोया था। तब अदालत ने बीसीसीआइ से इस पर राय मांगी थी।
इससे ठीक पहले बोर्ड ने बिहार और उत्तराखंड में क्रिकेट प्रशासन के लिए तदर्थ समिति का गठन कर दिया था। अदालत ने तदर्थ समिति की देखरेख में चुनाव के आदेश दिए हैं। लेकिन इसकी निगरानी के लिए पटना हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश धर्मपाल करेंगे। बिहार के लिए बनी तदर्थ समिति के अध्यक्ष निरंजन शाह हैं जबकि विनोद फड़के (गोवा), सौरव दासगुप्ता (त्रिपुरा), भरत झावेरी (गुजरात) और रत्नाकर शेट्टी (महाप्रबंधक, महाप्रबंधक, खेल विकास, बीसीसीआइ) इसके दूसरे सदस्य हैं।
तदर्थ समिति के गठन के बाद बीसीसीआइ सचिव अनुराग ठाकुर ने कहा था कि इन राज्यों में संघों के बीच आपसी मतभेदों के कारण उदीयमान क्रिकेटरों को बेवजह की सजा मिल रही है। इन राज्यों में क्रिकेट को आगे बढ़ाने के लिए बीसीसीआइ ने तदर्थ समिति गठित करने का फैसला किया। ये समितियां इन राज्यों के मान्यता संबंधी मसला सुलझने तक काम करेंगी और इससे इन राज्यों के क्रिकेटर इस सत्र से बीसीसीआई के एसोसिएट और एफिलिएट सदस्यों के टूर्नामेंट में हिस्सा ले पाएंगे। हैरत तो इस बात की है कि जिन डालमिया ने बिहार क्रिकेट को बर्बाद करने में बड़ी भूमिका अदा की थी, वे भी अब खिलाड़ियों और क्रिकेट के हितों की रक्षा की बात कर रहे हैं। लेकिन अभी बोर्ड को बहुत कुछ करना बाकी है।
बोर्ड ने तदर्थ समिति के गठन का फैसले को लेकर माना जारहा है कि बोर्ड को लगने लगा था कि अब अगर वह आगे नहीं आया तो हालात विस्फोटक हो सकते हैं। बिहार के खिलाड़ी आरपार के मूड में थे। नौबत यहां तक पहुंच गई थी कि प्लेयर्स एसोसिएशन के बैनर तले कोलकाता में खिलाड़ियों ने डालमिया के घर के सामने धरना-प्रदर्सन किया था। अनुराग ठाकुर को भी संघ घेरने की तैयारी करने वाला था और उसने चेतावनी दी थी कि अगर बोर्ड का रवैया ऐसा ही रहा तो फिर वह अपने हद से आगे भी जा सकता है। एक बड़ी वजह इस चेतावनी को भी माना जारहा है कि आनन-फानन तदर्थ समिति का गठन कर दिया गया।
लेकिन हैरत इस बात पर है कि रविवार को बंगलूर में होने वाली बैठक में बिहार को मान्यता के सवाल पर किसी तरह की चर्चा नहीं होने जारही है। इस सिलसिले में गोवा के डा शेखर सालकर ने डालमिया और ठाकुर दोनों के मेल भेज कर कहा है कि हमें बिहार और उत्तारखंड की मान्यता को लेकर भी चर्चा करनी चाहिए। सालकर ने कुछ महत्त्वपूर्ण बात अपने मेल में उठाई है। उन्होंने लिखा है कि मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि बाहरी लोगों की बनी समिति की बजाय ऐसी एक समिति बनाई जाती, जिसमें बिहार के सभी गुटों की नुमाइंदगी होती और बीसीसीआइ अपना एक पर्यवेक्षक नियुक्त कर देता जो उन्हें समिति के गठन में राय-मश्विरा देता। बिहार जैसे बड़े राज्य को इस तरह अनदेखा नहीं किया जा सकता।
उधर आदित्य वर्मा ने उम्मीद जताई है कि बिहार के जल्दी ही पूर्ण सदस्यता मिलेगी क्योंकि बिहार ने क्रिकेट पर जो कालिख लगी थी उसे धोने में बड़ी भूमिका अदा की है। अब बोर्ड के रवैये का इंतजार है। वह बिहार में क्रिकेट की बहाली चाहता है या जिस तरह चल रहा है उसी तरह चलते देना चाहता है।