चीन के हांगजो में हो रहे एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने वालों में फुटबॉल टीम भी शामिल है। शुरुआत में फुटबॉल टीम को न भेजने का फैसला किया गया था लेकिन फैंस के दबाव और एआईएफएफ की अपील के बाद आईओए टीम भेजने के लिए तैयार हो गया। भारत ने अब तक एशियन गेम्स में दो गोल्ड और एक ब्रॉन्ज मेडल जीता है। इत्तेफाक कहिए या किस्मत भारत ने जो दो गोल्ड जीते उसके पीछे एक ही कोच का हाथ था। सैयद अब्दुल रहीम ने भारतीय फुटबॉल टीम के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

पेशे से शिक्षक रहीम ने 1950 से 1962 तक टीम इंडिया के कोच की भूमिका निभाई। यह वही दौर था जहां भारतीय फुटबॉल टीम अपने चरम पर थी। टीम ने इस दौरान एशियन गेम्स मे दो गोल्ड मेडल जीते, ओलंपिक का सेमीफाइनल मुकाबला खेलने वाली पहली एशियाई टीम बनी और दो बार कोलंबो कप जीता।

1962 में भारत को फिर दिलाया गोल्ड

1951 के एशियन गेम्स के दौरान रहीम महज 42 साल के थे। आजादी के बाद यह फुटबॉल टीम की पहली सफलता थी लेकिन 1962 के एशियन गेम्स ने रहीम को असल पहचान दिलाई। इन खेलों में भारतीय टीम के सामने चुनौती केवल मैदान पर ही नहीं थी बल्कि उसके बाहर भी थी। फैंस उनका आत्मविश्वास गिराने की कोशिश कर रहे थे, मैदान में खिलाड़ी चोटिल हो रहे थे। हालांकि रहीम ने कभी टीम को टूटने नहीं दिया। भारत ने लगातार तीसरी बार फाइनल में पहुंचे साउथ कोरिया को हराकर दूसरी बार गोल्ड मेडल जीता।

रहीम ने किसी को नहीं बताया दर्द

रहीम के दिमाग में तो फुटबॉल था लेकिन उनके फेफडों में कैंसर था। रहीम को सिग्रेट पीने की आदत थी और इसी कारण उन्हें कैंसर हो गया। वह पूरी-पूरी रात खांसते थे लेकिन टूर्नामेंट के दौरान उन्होंने किसी को अपनी परेशानी नहीं बताई। भारतीय टीम के गोल्ड जीतने के के बाद भी वह कमियों में सुधार की बात कर रहे थे। भारत लौटने के बाद उनकी हालत और खराब हो गई।

रहीम को था कैंसर

मुंबई के टाटा अस्पताल में चेकअप के बाद रहीम को कैंसर के बारे में पता चला। वह अपनी जिंदगी के आखिरी महीने बिस्तर पर ही रहे। उन्होंने कभी किसी से अपना दर्द नहीं बांटा। एक दिन उन्होंने डॉक्टर से केवल यही कहा कि उन्होंने जिंदगी में कोई गलत नाम नहीं किया फिर भी उनके साथ ऐसा हुआ। 1963 में 53 साल की उम्र में रहीम दुनिया छोड़कर चले गए।