भारत और पाकिस्तान की टीमें किसी भी खेल के मैदान पर आमने-सामने होती हैं तो खिलाड़ियों के साथ-साथ फैंस की धड़कनें भी तेज हो जाती हैं। मैच चाहे फुटबॉल का हो, हॉकी का या फिर क्रिकेट का, मैच का रोमांच एक जैसा ही होता है। आज के जमाने में तो स्टेडियम ही नहीं सोशल मीडिया पर भी फैंस के बीच जंग शुरू हो जाती है। ऐसे में अगर कोई यह कहे कि भारतीय टीम को खिताबी मुकाबले में पाकिस्तानी टीम चीयर करने पहुंची तो शायद यह आपको यह अजीब लगे लेकिन 1962 के एशियन में ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिला।

कई देशों ने नाम ले लिया था वापस

1950 से 1960 का दशक भारतीय फुटबॉल का गोल्डन एरा माना जाता है। 1962 के एशियन गेम्स इंडोनेशिया की राजधानी जर्काता में हुए थे। भारतीय टीम जब वहां पहुंची तो उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। दरसल बरमा ने इस टूर्नामेंट से नाम वापस ले लिया था। इजराइल और ताइवान की टीमों के अधिकारियों को वीजा नहीं दिया गया था जिसके बाद उन्होंने भी टूर्नामेंट से हटने का फैसला किया।

भारत और साउथ कोरिया के बीच खेला गया था फाइनल

भारतीय टीम को पहले मैच में साउथ कोरिया के खिलाफ 0-2 से हार मिली थी। इसके बाद भारत ने थाईलैंड को 4-1 से और जापान को 2-0 से मात दी। सेमीफाइनल में भारत ने साउथ वियतनाम को 2-0 से हराकर खिताबी मुकाबले में जगह पक्की की। भारतीय फुटबॉल टीम का फाइनल मुकाबला खेलों के आखिरी दिन था। चार सितंबर को खेला गया मुकाबला भारतीय टीम के साथ-साथ देश भर के फैंस के लिए भी यादगार साबित हुए।

पाकिस्तानी हॉकी टीम ने किया भारत को चीयर

फाइनल मुकाबले में भारत का सामना साउथ कोरिया से था। यह मैच सेनायान मेन स्टेडियम में खेला गया था। इंडोनेशिया के दर्शक कोरिया को चीयर कर रहे थे। स्टेडियम में लगभग एक लाख लोग भारत के खिलाफ थे। दूसरे खेलों के भारतीय खिलाड़ी भी उस समय तक देश लौट चुके थे। भारतीय टीम अकेले पड़ती दिख रही थी। परायों की भीड़ में भारतीय टीम को पाकिस्तान की हॉकी टीम का साथ मिला। पाकिस्तान के हॉकी खिलाड़ियों ने भारतीय फुटबॉल टीम को अकेले पड़ता देख उन्हें चीयर करना शुरू किया। मैदान पर मौजूद खिलाड़ियों को भी इसकी उम्मीद नहीं थी और वह हैरान रह गए थे। भारत ने फाइनल मुकाबले में 2-1 से जीत हासिल की।

भारत और पाकिस्तान की दोस्ती बनी मिसाल

पाकिस्तानी टीम के इस कदम ने भारतीय फुटबॉल टीम के साथ-साथ फैंस का भी दिल जीत लिया। हैरानी की बात यह थी कि यह वही पाकिस्तानी टीम थी जिसने एक दिन पहले ही भारतीय हॉकी टीम को 2-0 से हराकर गोल्ड मेडल जीता था। इस हार से कई भारतीय फैंस के दिल टूटे लेकिन फिर अगले ही दिन फुटबॉल स्टेडियम में जो दोस्ताना दिखाई दिया उसने साबित कर दिया कि टीमों के बीच प्रतियोगिता केवल मैदान पर ही होती है उसके बाहर हर कोई एक-दूसरे का सम्मान करता है।