भारत ने अब तक दो ही बार एशियन गेम्स का आयोजन किया है। सबसे पहले 1951 में दिल्ली में इन खेलों का आयोजन हुआ। इसके 31 साल बाद 1982 में फिर भारत को इन खेलों की मेजबानी मिली। 1982 के एशियन गेम्स 1951 से काफी अलग थे। इन खेलों ने न सिर्फ देश को स्पोर्ट्स हीरो दिए बल्कि टेक्नोलोजी के लिहाज से भी यह एशियन गेम्स भारत के लिए अहम साबित हए।

1982 में एशियन गेम्स का नौवां संस्करण आयोजित हुआ था। 19 नवंबर से चार दिसंबर के दिल्ली ने एशियाई खिलाड़ियों की मेजबानी की। भारत ऐसा दूसरा देश बना था जिसने एक से ज्यादा बार एशियन गेम्स की मेजबानी की हो।

एमरजेंसी के कारण देरी से शुरू हुई तैयारी

भारत को 1976 में इन खेलों की मेजबानी दी गई थी, लेकिन देश में लगी एमजेंसी के कारण इन खेलों की तैयारी 1979 में शुरू हुई। एशियाई खेलों के लिए दिल्ली की काया बदल दी गई थी। इन खेलों के लिए खास तौर पर जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम बनाया गया था जो आज भी दिल्ली के सबसे बड़े स्टेडियम्स में शुमार है। तत्कालीन एमपी राजीव गांधी और दिल्ली एलजी (उप राज्यपाल) जगमोहन मल्होत्रा हर रोज खुद स्टेडियम का काम देखा करते थे।

बदल गई दिल्ली की काया

सिर्फ यही नहीं शहर में कई नई रोड और फ्लाइओवर्स भी बनाए गए। कृष्णा दत्ता ने अपनी किताब ‘बिजनेस और इकॉनमी’ में दावा किया है कि अगर एशियन गेम्स न होते तो दिल्ली में जेएलएन स्टेडियम, गेम्स विलेज, सिरी फोर्ट और कर्णी सिंह शूटिंग रेंज होती ही नहीं।

भारत ने किया अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन

इन खेलों में 33 देशों के 3400 एथलीट्स ने हिस्सा लिया। अपने घर पर भारतीय खिलाड़ियों ने कमाल का खेल दिखाया और अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। भारत अंकतालिका में पांचवें स्थान पर रहा। इस बार भारत की झोली में 13 गोल्ड, 19 सिल्वर और 25 कांस्य पदक आए थे। भारत के लिए सबसे प्रभावशाली परिणाम ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स में आए, जहां भारत ने चार गोल्ड समेत कुल 21 पदक अपने नाम किए।

देश को मिले नए हीरो

इन गेम्स के कारण ही भारत को अपनी उड़न परी पीटी उषा मिली थी। पीटी उषा ने पहली बार इन खेलों में हिस्सा लिया और 100 मीटर और 200 मीटर की रेस में सिल्वर मेडल जीते थे। इन गेम्स में महिला हॉकी को भी शामिल किया गया था, जिसमें भारत ने गोल्ड के साथ अपना खाता खोला था। ये साल सिर्फ खेल के लिहाज से ही नहीं, बल्कि टेक्नोलोजी के लिहाज से भी भारत के लिए बेहद अहम साबित हुआ। 1982 के एशियन गेम्स में ऐसा पहली बार हुआ जब इन खेलों का का प्रसारण ब्लैक एंड व्हाइट नहीं, बल्कि रंगीन पर्दे पर किया गया था। इसे एक टेक्नोलोजी के पथ पर बड़ा कदम माना गया था।