अनिश्चितता का दौर खत्म हो गया। नई टीम, नया जोश और नया माहौल। चुनौती मुश्किल है पर इरादे मजबूत। लक्ष्य है फुटबाल के स्तर को ऊपर उठाना। 85 साल के इतिहास में पहली बार अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन को चलाने की जिम्मेदारी एक खिलाड़ी को मिली है। देश के कई प्रख्यात क्लबों में गोलकीपर की भूमिका निभा चुके कल्याण चौबे इस दायित्व को निभाएंगे। एक और कुशल प्रशासक शाजी प्रभाकरन महासचिव होंगे। इसलिए इस टीम से फुटबाल केबेहतर भविष्य की अपेक्षाएं हैं।

यों तो खिलाड़ी और प्रशासन दो अलग पहलू हैं, लेकिन अगर खिलाड़ी में प्रशासनिक योग्यता हो तो यह सोने पर सुहागा का काम करेगा। अपने खेल जीवन में झेली समस्याओं से निपटने में उनका अनुभव काम आएगा। फिर पहली बार कार्यकारिणी समिति में छह फुटबालरों की मौजूदगी भी संचालन स्तर बेहतर बनाने में सहायक होगी।

इन छह खिलाड़ियों में स्टार फुटबालर बाईचुंग भूटिया भी हैं जो अध्यक्ष पद के चुनाव में हार गए थे। हार उनके लिए पीड़ादायक रही होगी क्योंकि अंतर बहुत ज्यादा था। वे मायूस जरूर होंगे, लेकिन फिर अगर देश के फुटबाल हित में पदाधिकारी उन्हें जोड़ना चाहते हैं तो पीछे नहीं हटना चाहिए। आखिर फुटबाल में ही उन्हें नाम-सम्मान मिला है।

वैसे तो फेडरेशन के महासचिव शाजी प्रभाकरन का कहना है कि भूटिया लिखित सहमति दे चुके हैं, लेकिन अटकलबाजी हो रही है और कुछ रोज बाद होने वाली कार्यकारिणी की बैठक में संदेह के बादल छटेंगे। फुटबाल का रोडमैप तैयार हो रहा है और सौ दिन में स्थिति स्पष्ट होगी। शाजी के मुताबिक खेल के हर पहलू पर ध्यान दिया जाएगा।

मामला चाहे जमीनी स्तर पर खेल की मजबूती हो या युवा पीढ़ी के प्रोत्साहन का, राज्य स्तर का हो या कोचिंग, निरीक्षण का, सब पर काम किया जाएगा। टीमों के चयन में कोई भेदभाव नहीं होगा। यह काम आसान नहीं होगा, लेकिन नई टीम सबको साथ लेकर प्रोजेक्ट तैयार कर रही है जिसका असर दिखाई देगा। प्राथमिकता यह होगी कि भारत को एशिया की टाप दस टीमों में लाया जाए। यह काम चुनौतीपूर्ण होगा। आयु वर्ग और हर स्तर पर काम कर इस लक्ष्य को पाने की कोशिश होगी।

आज भारतीय फुटबाल सिर्फ सुनील छेत्री के करिश्मे पर निर्भर हो गई। हमें अनेकों छेत्री चाहिए। यह तभी हो सकता है जब राज्य स्तर पर बेहतर खिलाड़ियों की पौध तैयार हो। राज्य फुटबाल संघों को मजबूत करने की कोशिश होगी। राज्य संघ उपेक्षित रहे, लेकिन अब उनकी समस्याओं का निदान किया जाएगा। जरूरत पड़ी तो हम पैसे से भी उनकी मदद करेंगे। वैसे राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर फुटबाल संघों को मदद करती हैं। लेकिन फिर भी कई राज्यों का खेल स्तर बढ़िया नहीं है। राज्य सरकारों, संस्थानों और क्लबों के साथ मिलकर स्तर बेहतर करने का प्रयास होगा।

फुटबाल का विकास तभी होगा अगर उसके सभी अंग अच्छी तरह से चलें। निरीक्षण भी इसका अहम हिस्सा है। फीफा पैनल में कभी अनेक भारतीय रेफरी होते थे पर अभी स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। शाजी का कहना है कि रेफरियों के लिए ट्रेनिंग अकादमी स्थापित होगी। कोशिश यही होगी कि ऐसा हर क्षेत्र में हो। इसी तरह कोचिंग पर भी खास ध्यान दिया जाएगा।

रोवर्स, डूरंड, आइएफए शील्ड, स्टैफर्ड कप, बारदोलोइ ट्राफी जैसे टूर्नामेंट अपनी चमक खो चुके हैं। हालांकि, इन्हें एआइएफएफ संचालित नहीं करता, फिर भी यह बेहतर तरीके से आयोजित हों, इसे सुनिश्चित किया जाएगा। क्लबों के बंद होने से भी फेडरेशन चिंतित नहीं है। अगर जेसीटी, महिंद्रा यूनाइटेड जैसे सफल क्लबों का अस्तित्व नहीं रहा तो कई नए क्लब सामने आए हैं।

हो सकता है कि बंद हुए क्लब भी पुन: शुरू करने के बारे में सोचें। ध्यान अब महिला फुटबाल पर भी रहेगा। अगले माह भारत अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी कर रहा है। इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट से भारतीय महिलाओं को दुनिया की टाप टीमों के साथ संघर्ष करने का अवसर मिलेगा। इससे महिला फुटबालरों के खेल में निखार आएगा और उन्हें विदेशी खिलाड़ियों से सीखने का मौका मिलेगा। महिला फुटबाल को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए जाएंगे। महिला फुटबाल लीग की भी शुरुआत हो सकती है।

अंडर-17 महिला विश्व कप के दौरान कुछ बड़ी घोषणा भी हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय फुटबाल महासंघ के अध्यक्ष इस दौरान मौजूद रहेंगे। भविष्य में कुछ ऐसी चीजें होंगी जो भारतीय फुटबाल में कभी नहीं हुर्इं। कल्याण चौबे और शाजी प्रभाकरन की फीफा अध्यक्ष से मुलाकात हो चुकी है।फेडरेशन के महासचिव शाजी प्रभाकरन का कहना है कि हमें फुटबाल की मौजूदा दशा को देखना है। पीछे क्या हुआ, इसमें पड़ने की जरूरत नहीं है। सभी को पता था कि क्या हो रहा है। नकारात्मकता छोड़कर पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ा जाएगा। सभी को साथ लेकर चलेंगे।