शतरंज की दुनिया में भारत की धाक और साख बढ़ रही है। आयु वर्ग में तो हमारे खिलाड़ी दशकों पहले से ही विश्व चैंपियन बनते रहे हैं। क्लासिकल शतरंज की बादशाहत हमारे विश्वनाथन आनंद के पास रह चुकी है। उन्होंने पांच बार विश्व खिताब अपने नाम किया। लंबे अर्से के बाद अब एक बार फिर विश्व शतरंज के सिंहासन पर विराजमान होने का मौका एक भारतीय खिलाड़ी के पास आया है। यह खिलाड़ी है तमिलनाडु का 17 वर्षीय डोमाराजू गुकेश।
विश्व चैंपियन हैं चीन के डिंग लिरेन। उनको चुनौती देने के लिए अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फीडे) ने टोरंटो (कनाडा) में कैंडिडेट्स टूर्नामेंट किया। 64 खिलाड़ियों की पहली परीक्षा से निकलकर आए आठ ग्रैंडमास्टर इस श्रेष्ठता के संघर्ष में शामिल हुए। इनके बीच प्रतिभावान गुकेश का दिमागी कौशल अपने से कहीं मंझे हुए खिलाड़ियों पर भारी पड़ा। आठों ग्रैंडमास्टर एक-दूसरे के साथ दो बार खेले। 14 राउंड के बाद नौ अंकों से शिखर पर रहकर गुकेश ने इतिहास रच दिया।
17 वर्ष, 10 महीने और 24 दिन की उम्र में कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीतने वाले वे विश्व के सबसे युवा खिलाड़ी बन गए। उन्होंने 40 साल पुराना गैरी कास्पारोव का रिकार्ड ध्वस्त किया। गैरी कास्पारोव ने 1984 में जब इस चैंलेंजर टूर्नामेंट को जीता था, तब उनकी आयु 22 साल की थी। पिछले कुछ वर्षों से लगभग हर साल भारत कोई न कोई ग्रैंडमास्टर खिलाड़ी उभार रहा है। अब यह संख्या 83 तक पहुंच चुकी है।
इनमें से 29 ग्रैंडमास्टर तमिलनाडु से हैं। वास्तव में गुकेश की यह सफलता तमिलनाडु के लिए भी गौरव का क्षण है। 26 अप्रैल को तमिलनाडु राज्य शतरंज एसोसिएशन के 77 साल पूरे हो रहे हैं। 1947 में इस एसोसिएशन का गठन हुआ था। शतरंज की इस धरती से उभरे खिलाड़ियों में महान विश्वनाथन आनंद, के शशिकिरण जैसे खिलाड़ी भी हैं। कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में इस बार चुनौती देने वाले तीन भारतीयों में आर प्रज्ञानानंद भी इसी राज्य से हैं। विदित गुजराती नासिक से हैं।
गुकेश ने इस शानदार प्रदर्शन से शतरंज विशेषज्ञों को भी सकते में ला दिया। कोई भी कल्पना नहीं कर सकता था कि अनुभवहीन भारतीय खिलाड़ी कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीत सकते हैं। दो साल पहले इस टूर्नामेंट का आयोजन हुआ था तो कोई भारतीय खिलाड़ी चुनौती में नहीं था। तीनों भारतीय खिलाड़ियों के दावे को तो पूर्व विश्व चैंपियन मैग्नस कार्लसन ने सिरे से नकार दिया था।
गुकेश की जीतने की संभावना तो उन्होंने बिल्कुल नकार दी थी। यह कहा गया कि भारतीय खिलाड़ी न तो बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगा और न बहुत खराब। कुछ बाजियां जीत सकता है पर अंक पांच से ज्यादा नहीं होंगे। दरअसल कार्लसन का अपना तर्क था। उनकी नजर में नेपोमनियाश्ची, करुआना और हिकारू नकामूरा की तिकड़ी काफी अनुभवी और सशक्त है। इनसे पार पाना भारतीय खिलाड़ियों के लिए मुश्किल होगा।
लेकिन उनके इस संदेह को भारतीय खिलाड़ियों ने दूर कर दिया। चुनौती भले ही व्यक्तिगत थी पर प्रज्ञनानंद और गुजराती ने भी जुझारू प्रदर्शन कर अंक झटके और गुकेश की राह आसान बनाई। गुजराती ने नकामूरा को दो बार शिकस्त दी। प्रज्ञानानंग ने नेपोमनियाश्ची को महत्त्वपूर्ण मुकाबले में ड्रा पर रोक दिया। टूर्नामेंट में ज्यादातर समय अंक तालिका में शीर्ष पर नहीं रहे गुकेश अंत में आगे निकले और 14वें राउंड में नकामूरा से बाजी ड्रा खेलकर करिश्मा कर दिया। नौ अंकों के साथ वे नंबर वन रहे। उन्हें एकमात्र हार फ्रांस के नंबर वन खिलाड़ी फिरोजा से मिली। पर यह हार उनके लिए प्रेरणा बन गई।
प्रतिद्बंद्बी मजबूत हों तो खिलाड़ी पर अत्यधिक दबाव रहता है। वह भी तब जब खिलाड़ी पहली बार बड़े मंच पर चुनौती दे रहा हो। इतना कम उम्र में जिस तरह टूर्नामेंट के दबाव को गुकेश ने झेला, वह काबिले तारीफ रहा। उससे हर कोई उसका कायल हो गया। कार्लसन को भी अपना राय बदलनी पड़ी। सातवें दौर में फ्रांसीसी ग्रैंडमास्टर से मिली हार ने गुकेश को मजबूत बनाया। अगले दिन विश्राम होने से उन्हें अपनी रणनीति बनाने में मदद मिली। इसके बाद उन्होंने अपनी किलेबंदी मजबूत की और 64 खानों की अपनी बादशाहत को साबित किया।
प्रशंसनीय बात यह है कि गुकेश का शतरंज सफर काफी प्रभावशाली रहा। हर कदम के साथ वे रिकार्ड से जुड़ते जा रहे हैं। अगस्त 2013 में सिर्फ सात साल की उम्र में वह रेटिड खिलाड़ी बन गए। 2015 में कैंडिडेट्स मास्टर और मार्च 2018 में इंटरनेशनल मास्टर बन गए। जनवरी 2019 में 12 साल, सात महीने और 17 दिन की उम्र में वह विश्व के दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बन गए। मात्र 17 दिन से वे विश्व रिकार्ड में चूके। यह रिकार्ड सर्जेइ कर्जाकिन के नाम था। 2022 में शतरंज ओलंपियाड में उन्होंने व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता। जुलाई 2023 में 2750 की ईएलओ रेटिंग पाने वाले वे सबसे युवा खिलाड़ी बने और फिर सितंबर में नंबर वन भारतीय खिलाड़ी बन गए। दिसंबर 2023 में उन्होंने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई किया।
गुकेश दूसरे भारतीय हैं जो कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीतकर विश्व खिताब के लिए चुनौती देंगे। उनसे पहले विश्वनाथन आनंद यह कमाल कर चुके हैं। अब चीन की दीवार को गिराना उनके लिए पहला लक्ष्य है। फाइनल मुकाबल इसी साल होना है। भारतीय शतरंज महासंघ इस कोशिश में जुटा है कि फाइनल मुकाबला भारत में हो। गुकेश को साथी खिलाड़ी प्रज्ञानानंद से भी प्रेरणा मिलेगी। इस साल के शुरू से टाटा स्टील शतरंज में प्रज्ञानानंग ने विश्व चैंपियन डिंग लिरेन को मात दी थी।
भारतीय खिलाड़ियों की प्रतिभा और उनके चौंकाने वाले प्रदर्शन से चीनी खिलाड़ी भी वाकिफ हैं। अपनी उम्र से ज्यादा परिपक्व बताकर लिरेन ने गुकेश की तारीफ भी की है। अपने को लाभ की स्थिति में रखकर उन्होंने गुकेश को मुश्किल प्रतिद्बंद्बी कहा है। अब सभी की निगाहें इस मुकाबले पर टिकेंगी। पर जिस खिलाड़ी का छोटी उम्र से यह सपना रहा है कि विश्व चैंपियन बनूंगा, उसके लिए यह शानदार अवसर है। पैसा और सम्मान तो शुरू हो गया है। महिला कैंडिडेट्स भी साथ हुआ और भारत की कोनेरू हंपी टाई-ब्रेक के बाद दूसरे स्थान पर रहीं। आर वैशाली ने लगातार पांच बाजियां जीतीं और चौथे स्थान पर रहीं।