खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद से कनाडा और भारत के संबंध में तल्ख़ी आयी है। सोमवार को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हत्या के पीछे भारतीय एजेंसियों के हाथ होने की आशंका जताई थी। इसके बाद देशों ने शीर्ष राजनयिकों को निष्कासित किया है। आरोप-प्रत्यारोप अब भी जारी है।

इस विवाद से खालिस्तानी मूवमेंट एक बार फिर चर्चा में है। भारत के एक हिस्से को काटकर सिखों के लिए अलग देश बनाने का मंसूबा रखने वाले बहुत पहले से विदेशी धरती का इस्तेमाल अपना प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए करते रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स से खालिस्तान की घोषणा

भारत में खालिस्तान की मांग वाला आंदोलन अपनी अंतिम सांस गिन रहा है। कभी-कभी इक्के-दुक्के संगठन सिर उठाते हैं। फिर कुछ दिन में शांत हो जाते हैं। हालांकि यह कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में सिख प्रवासी के कुछ हिस्सों में यह मांग अब भी जीवित है। दरअसल, खालिस्तान आंदोलन अपनी शुरुआत से ही एक वैश्विक आंदोलन रहा है। विदेशी धरती से एक अलग सिख राज्य की पहली मांग USA (United States of America) से उठी थी।

12 अक्टूबर, 1971 को न्यूयॉर्क टाइम्स में एक विज्ञापन देकर खालिस्तान के जन्म की घोषणा की गई थी। इसमें लिखा था, “आज हम जीत हासिल होने तक अंतिम धर्म युद्ध शुरू कर रहे हैं… हम अपने आप में एक राष्ट्र हैं।”

यह भी सही है कि पंजाब में उग्रवाद को चरम पर पहुंचाने के लिए पाकिस्तान और चीन ने अक्सर खालिस्तानी आतंकवादियों को हर तरह की सहायता प्रदान की। भारतीय सेना ने पाया कि स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकवादियों के पास चीनी निर्मित आरपीजी थे। सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में टैंकों के उपयोग का कारण इन आरपीजी के इस्तेमाल को ही बताया था।

कनाडा और खालिस्तान

कनाडा में लंबे समय से खालिस्तानी आंदोलन चल रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे लेकर कनाडा के पूर्व पीएम और जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो से शिकायत भी की थी। इसी साल जून में ऑपरेशन ब्लूस्टार की वर्षगांठ मौके पर कनाडा में एक झांकी निकाली गई थी, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दृश्य को रीक्रिएट किया गया था। झांकी में हत्या के दृश्य के साथ एक पोस्टर पर लगा था, जिस पर लिखा था- ‘दरबार साहिब पर हमले का बदला’

2002 में टोरंटो से प्रकाशित होने वाली पंजाबी भाषा के साप्ताहिक सांझ सवेरा ने इंदिरा की हत्या की सालगिरह पर उनके शव की तस्वीर छापकर लिखा था- “पापी को मारने वाले शहीदों का सम्मान करें।” पत्रिका को सरकारी विज्ञापन मिलता रहा हैं और अब यह कनाडा का एक प्रमुख दैनिक है।

हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं था। कनाडा में पहले भी इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाया जा चुका है। 2002 में तो कनाडा के टोरंटो से प्रकाशित होने वाली एक पंजाबी पत्रिका ‘सांझ सवेरा’ ने इंदिरा की पुण्यतिथि पर उनके शव की तस्वीर छाप दी थी। पत्रिका ने तस्वीर के साथ लिखा था-  “पापी को मारने वाले शहीदों का सम्मान करें।”

बता दें कि इस पत्रिका को तब भी सरकारी विज्ञापन मिलता था और अब भी मिलता है। आज की तारीख में ‘सांझ सवेरा’ कनाडा का प्रमुख दैनिक है। (कनाडा और खालिस्तान के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)

कनाडा में खालिस्तान आंदोलन क्यों जारी है?

कनाडा की कुल आबादी में सिखों की हिस्सेदारी  2.1 प्रतिशत है। 2021 की  जनगणना के अनुसार कनाडा में सिख धर्म को मानने वालों की संख्या 770,000 है। भारत के बाद सबसे ज्यादा सिख कनाडा में ही रहते हैं। सिख समुदाय कनाडा में सबसे तेजी बढ़ने वाला रिलीजियस ग्रुप है।

हालांकि इस बात को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि सभी कनाडाई सिख खालिस्तान समर्थक नहीं हैं। अधिकांश प्रवासी सिखों के लिए खालिस्तान अब कोई मुद्दा नहीं है। कनाडाई पत्रकार टेरी मिल्वस्की का मानना है कि कनाडा के नेता सिख वोट खोना नहीं चाहते हैं और उन्हें लगता है कि सभी सिख खालिस्तान समर्थक हैं। उनका यह सोचना गलत है।

प्रवासी भारतीयों में वे लोग शामिल हैं जिन्होंने 1980 के दशक के दौरान भारत छोड़ दिया, जब आंदोलन अपने चरम पर था और भारत सरकार खालिस्तानी अलगाववादियों पर बेहद सख्त थी। उस दौरान कई एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल अरेस्ट और किलिंग के आरोप भी लगे थे। उस समय की यादों ने इन लोगों के बीच आंदोलन को जीवित रखा है, भले ही आज पंजाब की जमीनी हकीकत बदल गई हो।

मिलेवस्की ने 2021 में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, “प्रवासी भारतीयों के भीतर भी पिछले कुछ वर्षों में समर्थन कम हो गया है। एक छोटा सा ग्रुप है जो अतीत से चिपका हुआ है। इस ग्रुप कनाडा में भी बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं है। लेकिन इसने राजनीति दलों में प्रभाव बनाए रखने की लगातार कोशिश की है। ये ग्रुप बड़े पैमाने पर लोगों को इकट्ठा कर सकते हैं, जिन्हें नेता वोट की तरह देखते हैं।”

जैसे-जैसे सिखों की एक नई पीढ़ी विदेशी धरती पर बड़ी हो रही है आंदोलन कमजोर होता जा रहा है। मिलेवस्की ने कहा, ” आज खालिस्तान आंदोलन को लोकप्रिय समर्थन हासिल नहीं है… लेकिन यह एक जियो पॉलिटिकल मुद्दा बन गया है। चीन और पाकिस्तान जैसे देश खालिस्तान आंदोलन को इस आधार पर सपोर्ट कर सकते हैं ताकि इससे भारत जूझता रहे।”

कौन था हरदीप सिंह निज्जर?

18 जून, 2023 को ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में गुरु नानक सिख गुरुद्वारा साहिब पार्किंग स्थल से निकलते गुरुद्वारा के प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF) का संचालक था। वह संगठन में नेटवर्किंग, ट्रेनिंग और फंडिंग का काम देखता था। भारत सरकार KTF को आतंकवादी संगठन मानती है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने निज्जर पर 10 लाख रुपये का नकद इनाम घोषित किया था। निज्जर के कई खालिस्तानी आतंकवादियों से संबंध थे।

निज्जर 1997 में भारत (पंजाब) से कनाडा गया था। पहले वह कनाडा में प्लंबर का काम करता था। बाद में वही पर शादी कर ली और बस गया। उसके दो बेटे भी हैं। निज्जर को 2020 से सरे गुरुद्वारा निकाय का अध्यक्ष बनाया गया था। बता दें कि भारत सरकार खालिस्तानी आंदोलन को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानती है।