चुनाव से पहले गठबंधनों की झड़ी लगी हुई है। बिहार में गठबंधन के नए साथियों की वजह से भाजपा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। जद (यू) के साथ आने के बाद अब भाजपा को न केवल चिराग पासवान और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को खुश रखने का रास्ता खोजना है, बल्कि उनके ‘बगावती’ चाचा को भी अपने साथ रखना है।
जनवरी में मुख्यमंत्री और जद (यू) अध्यक्ष नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी से पहले जमुई सांसद चिराग पासवान राज्य में बीजेपी के सबसे महत्वपूर्ण और विश्वसनीय सहयोगी थे। लेकिन जद (यू) के जुड़ने के बाद गठबंधन में चिराग पासवान का कद कम हो गया है।
इस बात को समझते हुए राजद ने कथित तौर पर तुरंत कदम बढ़ाया है और चिराग को आठ लोकसभा सीटें देने की पेशकश की है, बशर्ते कि वह महागठबंधन में शामिल हो जाएं। राजद नेता तेजस्वी यादव की पेशकश चिराग द्वारा भाजपा से की जाने वाली अधिकतम उम्मीद से कम से कम दो अधिक है।
क्या चिराग भाजपा पर दवाब बनाना चाहते हैं?
सूत्रों ने बताया कि बीजेपी इस पर विचार कर रही है कि अब क्या करना है। कुछ लोगों का मानना है कि यह चिराग की एक रणनीति है, जिसके तहत वह भाजपा से ज्यादा सीट हासिल करने के लिए दबाव बनाएंगे। भाजपा जानती है कि चिराग की पार्टी को बिहार में 6-7% वोट मिलता है, ऐसे में वह उन्हें ज्यादा सीट देने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगी।
राजद के एक नेता ने कहा, “चिराग और तेजस्वी एक दूसरे का बहुत सम्मान करते हैं। हमारे पास हमेशा उनके लिए एक स्थायी प्रस्ताव रहा है। आखिरकार, लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के बीच बहुत अच्छे राजनीतिक संबंध थे।”
चिराग के अलावा, भाजपा को उनके चाचा, केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस को भी संतुष्ट करना होगा, जो राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (एनएलजेपी) के प्रमुख हैं, और एनडीए के सहयोगी भी हैं। चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों ही पासवान की राजनीतिक विरासत के असली उत्तराधिकारी होने का दावा करते हैं।
2019 की तरह गठबंधन चाहती है भाजपा, लेकिन…
एक भाजपा नेता ने स्वीकार किया, “2019 के लोकसभा चुनावों में हमने एलजेपी और जेडी (यू) के सहयोग से बिहार में 40 में से 39 सीटें जीतीं। हम इसमें खलल डालने का जोखिम नहीं उठा सकते, लेकिन हमारी चुनौती यह है कि पारस को कैसे और कहां फिट किया जाए। एक तो, चिराग हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने पर अड़े हैं जिसका प्रतिनिधित्व पारस करते हैं।”
जब पारस ने अलग होकर अपनी पार्टी बनाई तो उन्होंने हाजीपुर पर अपना दावा खो दिया था। पारस का कहना है कि रामविलास के भाई के रूप में, वह उनकी राजनीतिक विरासत के असली दावेदार हैं, चिराग केवल बेटा होने की वजह से खुद को उत्तराधिकारी मानते हैं।
भाजपा के एक नेता ने कहा कि चिराग ने पिछले हफ्ते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी और उन्हें उम्मीद है कि विवाद जल्द ही सुलझ जाएगा। ऐसी चर्चा है कि पारस को समस्तीपुर से चुनाव लड़ने के लिए कहा जा सकता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में चिराग के चचेरे भाई प्रिंस राज कर रहे हैं।
इसका मतलब यह होगा कि भतीजे और चाचा के बीच की लड़ाई में भाजपा चिराग पर दांव लगाएगी, जो एक युवा, मुखर आवाज के रूप में तेजस्वी का मुकाबला कर सकते हैं।
भाजपा का ऑफर क्या है?
बीजेपी और एलजेपी दोनों सूत्रों का कहना है कि आखिरकार समझौता चिराग को 5 लोकसभा सीटें और एक राज्यसभा सीट देकर हो सकता है, जो 2019 की तुलना में 1 कम होगी। पिछली बार एलजेपी ने अपने हिस्से की सभी 6 सीटें जीती थीं। राम विलास पासवान राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गए थे।