26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर भारत औपचारिक रूप से एक लोकतांत्रिक, संप्रभु और गणतांत्रिक देश बन गया था। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ तिरंगा फहराकर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया था। 

भारतीय गणराज्य जिस संविधान के अनुसार शासित होता है, उसे बनाने में दो वर्ष और 11 माह से अधिक का समय लगा था। इस दौरान संविधान सभा में गंभीर चर्चा और बहस हुई थी। संविधान सभा के सदस्यों ने 11 सत्र की बैठक के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान अंगीकृत किया था।

प्रत्येक अनुच्छेद पर गहन चर्चा के बावजूद संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण में दो बातों पर खेद व्यक्त किया था। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘भारतीय संव‍िधान अनकही कहानी’ में भी राजेंद्र प्रसाद के उस भाषण का जिक्र किया है।

मुझे भी खेद है- डॉ. राजेंद्र प्रसाद

संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में अपने समापन भाषण में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहले तो देश की परिस्थिति और इतिहास पर रोशनी डाली। इसके बाद उन्होंने संविधान की खूबियों, खामियों और संभावित चुनौतियों पर विस्तार से बात रखी। संविधान में संशोधन की सरल प्रक्रिया की तारीफ करते हुए प्रसाद ने कहा, “हमारे संविधान की एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें सरलता से संशोधन किया जा सकता है। इस संविधान के बहुत से उपबंधों का संशोधन तो साधारण अधिनियमों द्वारा संसद कर सकती है। संवैधानिक संशोधनों के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक नहीं है।”

राजेंद्र प्रसाद ने केवल दो बातों पर खेद व्यक्त की थी। पहला खेद था- विधायक या सांसद चुने जाने की प्रक्रिया को लेकर। राजेंद्र प्रसाद चाहते थे कि केवल चुनाव जीतने भर से कोई व्यक्ति सांसद या विधायक न बने। जनता का प्रतिनिधित्व करने वालों में कुछ और भी योग्यता हो। उनका तर्क था कि अगर हम कानून लागू करवाने वाले लोग (प्रशासक) हाई क्वालिफिकेशन से लैस चाहते हैं, तो कानून बनाने वालों से क्वालिफिकेशन की उम्मीद क्यों न रखी जाए।

अपने भाषण में प्रसाद कहते हैं, “ऐसी केवल दो खेद की बातें हैं, जिनमें मुझे माननीय सदस्यों का साथ देना चाहिए। विधानमंडल के सदस्यों के लिए कुछ अर्हताएं निर्धारित करना मैं पसंद करता। यह बात असंगत है कि उन लोगों के लिए हम उच्च अर्हताओं का आग्रह करें, जो प्रशासन करते हैं या विधि के प्रशासन में सहायता देते हैं और उनके लिए हम कोई अर्हता न रखें, जो विधि का निर्माण करते हैं, सिवाय इसके कि उनका निर्वाचन हो। एक विधि बनानेवाले के लिए बौद्धिक उपकरण अपेक्षित हैं।”

वह आगे कहते हैं, “इससे भी अधिक वस्तुस्थिति पर संतुलित विचार करने की स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करने की सामर्थ्य की आवश्यकता है। सबसे पहले अधिक आवश्यकता इस बात की है कि जीवन के उन आधारभूत तत्वों के प्रति सच्चाई हो। एक शब्द में यह कहना चाहिए कि चरित्रबल हो। यह संभव नहीं है कि व्यक्ति के नैतिक गुणों को मापने के लिए कोई मापदंड तैयार किया जा सके और जब तक यह संभव नहीं होगा, तब तक हमारा संविधान दोषपूर्ण रहेगा”

उनका दूसरा खेद भाषा को लेकर था। उन्हें इस बात का दुख था कि भारत अपना संविधान भारतीय भाषा में नहीं बना सका। वह कहते हैं, “दूसरा खेद इस बात पर है कि हम किसी भारतीय भाषा में स्वतंत्र भारत का अपना प्रथम संविधान नहीं बना सके। दोनों मामलों में कठिनाइयाँ व्यावहारिक थीं और अविजेय सिद्ध हुईं, पर इस विचार से खेद में कोई कमी नहीं हो जाती है।”

संव‍िधान सभा की पहली बैठक के दिन रूठ कर दिल्ली से दूर चले गए थे वायसरॉय

संव‍िधान सभा की पहली बैठक नौ दिसंबर, 1946 को हुई थी। संव‍िधान सभा की पहली बैठक औपचार‍िक रूप से वायसराय वेवल ने बुलाई थी। उनकी इच्छा थी क‍ि वही संविधान सभा का उद्घाटन करें। लेक‍िन कांग्रेस नेतृत्‍व इसके लिए तैयार नहीं था। कांग्रेस ने जब मना किया तो वायसराय नाराज हो गए और एक दिन के ल‍िए द‍िल्‍ली से दूर चले गए। (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)

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संविधान दिवस 2023: बाएं से- भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और आखिरी वायसराय माउंटबेटन (Express archive photo)

भारतीय संविधान का अनोखापन

भारतीय संविधान का मुख्य रचनाकार डॉ. भीम राव अम्बेडकर को माना जाता है। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति थे। भारत सरकार की वेबसाइट डिजिटल संसद के मुताबिक, “भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। भारत का संविधान न तो मुद्रित है और न ही टंकित है। यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हस्तलिखित और सुलेखित है। इसे प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा द्वारा अपनी हाथों से लिखा गया था। संविधान के प्रत्येक पृष्ठ को शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया था, जिनमें बेहर राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस शामिल थे।”