बीजेपी गठबंधन ने आम सहमति के जरिए सीपी राधाकृष्णन को अपना उप राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया है। इस समय राधाकृष्णन महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। राधाकृष्णन दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए कई सालों तक काम कर चुके हैं, तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका में भी रहे हैं।
तमिलनाडु चुनाव पर बीजेपी की नजर
तमिलनाडु में बीजेपी खुद को मजबूत करने का प्रयास कई सालों से कर रही है। उसका बढ़ता वोट शेयर भी इस बात की तस्दीक करता है। लेकिन बढ़ा हुआ वोट शेयर अभी भी सीटों में तब्दील नहीं हुआ है, इसी वजह से बीजेपी के लिए यहां मुश्किलें कायम है। अब बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन को आगे कर तमिलनाडु की पश्चिमी बेल्ट पर फोकस किया है। असल में कोयम्बटूर सीट से 1998 और फिर 1999 में राधाकृष्णन को जीत मिली थी। 1998 के चुनाव में तो उनका जीत का मार्जिन भी 144,676 वोट रहा था। ऐसे में उनकी लोकप्रियता को समझते हुए भी बीजेपी ने अब उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए उन्हें आगे किया है।
वैसे बीजेपी का वोट शेयर भी बताने के लिए काफी है कि पार्टी क्यों तमिलनाडु पर इतना फोकस कर रही है। 2021 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर सिर्फ 2.6% रहा, वहीं 2016 में वो आंकड़ा 2.9% था। ऐसे में पार्टी को डबल डिजिट वोट शेयर हासिल करने की दरकार है।
डीएमके को दुविधा में डालने का प्रयास
जानकार मानते हैं कि बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन को आगे कर एक मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। उनका विरोध करना किसी के लिए भी आसान नहीं रहने वाला है। यहां भी सबसे बड़ी बात यह है कि राधाकृष्णन खु तमिलनाडु से आते हैं और इस समय वहां पर डीएमके की सरकार है। ऐसे में एक दुविधा अब मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के मन में रहने वाली है- दिल्ली की राजनीति को ध्यान में रखते हुए ‘अपने’ राज्य के उम्मीदवार का विरोध किया जाए या फिर पार्टी लाइन से ऊपर उठ सियासी समीकरण साधे जाएं।
ओबीसी वोटबैंक पर बीजेपी का फोकस
बीजेपी के लिए तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति को और ज्यादा मजबूत करना कई सालों का सपना है। पार्टी ने सुधार जरूर किया है, संगठन भी खड़ा हो चुका है, लेकिन अभी भी उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं मिल रहा है। लेकिन अब पार्टी ने सीपी राधाकृष्णन को आगे कर ओबीसी कार्ड खेल दिया है। असल में राधाकृष्णन गाउंटर (कोंगु वेल्लालर) समुदाय से आते हैं, इसे तमिलनाडु की राजनीति का अहम वोटबैंक माना जाता है। राज्य की पश्चिमी बेल्ट में तो यह वोटबैंक और ज्यादा निर्णायक साबित होता है, ऐसे में बीजेपी ने एक बड़ा दांव खेल दिया है।
इंडिया गठबंधन में दरार डालने की कोशिश?
सीपी राधाकृष्णन का उप राष्ट्रपति उम्मीदवार बनना बीजेपी का एक नया एक्सपेरिमेंट भी हो सकता है। इस दांव की वजह से इंडिया गठबंधन में दरार तक पड़ सकती है। यहां भी सबसे बड़ा खतरा तो डीएमके को लेकर है जिसके कुल 32 सांसद हैं। असल में कुछ साल पहले ही एक डीएमके नेता ने राधाकृष्णन को लेकर कहा था कि वे एक अच्छे इंसान हैं, लेकिन उन्होंने पार्टी गलत चुन रखी है। कुछ दूसरे डीएमके नेताओं ने भी निजी तौर पर राधाकृष्णन को पसंद किया है। ऐसे में उनका विरोध करना डीएमके लिए भी आसान नहीं होगा। अगर ऐसा होता है तो विपक्ष में दरार पड़ सकती है।
वैसे उप राष्ट्रपति चुनाव के दौरान पार्टियों में दरार आना एक आम बात है। एक समय एनडीए का हिस्सा रहते हुए भी शिवसेना ने प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था क्योंकि वे महाराष्ट्र से आती थीं। ऐसे में उप राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी लाइन से ऊपर उठ वोटिंग करना कोई नई प्रथा नहीं है।
संघ से जुड़ाव, जमीनी नेता; बीजेपी खांचे में फिट राधाकृष्णन
राधाकृष्णन को चुनने का एक कारण उनकी सियासी पृष्ठभूमि भी है। असल में वे लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़े हुए थे। ऐसे में उनके साथ एक अनुशासन चलता है, एक विचारधारा चलती है जिसके साथ कभी समझौता नहीं होता। माना जा रहा है कि बीजेपी ने उन्हें आगे चल संघ को भी संकेत दिया है। पिछले कुछ महीनों में कई ऐसे मौके आए जब संघ और बीजेपी में दरार की खबरें आईं। लेकिन बीजेपी समझती है कि दक्षिण में विस्तार के लिए अभी भी संघ का संगठन बहुत जरूरी है, ऐसे में उन्हें भी खुश करने का काम हो रहा है।
ये भी पढ़ें- कौन हैं सीपी राधाकृष्णन