23 जून 1980 को पिट्स एस-2ए विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से संजय गांधी की मौत हो गई थी। संजय उस विमान से दिल्ली के आसमान में तेज रफ्तार कलाबाजियां दिखा रहे थे। विमान हादसे में संजय के साथ उनके प्रशिक्षक कैप्टन सुभाष सक्सेना की भी मौत हुई थी। सक्सेना संजय के साथ विमान में जाने को तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें पता था कि संजय को इस विशेष विमान को उड़ाने का अनुभव नहीं है।
उधर संजय गांधी की पत्नी मेनका भी उस विमान को उड़ाए जाने के खिलाफ थीं। पत्रकार और लेखिका सागरिका घोष की किताब ‘इंदिरा’ से पता चलता है कि हादसे से पहले मेनका ने संजय के साथ उस विमान की सवारी की थी। दो घंटे की इस सवारी दौरान वो डर से चिखती रहीं। विमान के जमीन पर उतरते ही वो फटाफट अपनी सास इंदिरा के पास पहुंची और विशेष आग्रह के साथ कहा, मां मुझे आपसे यह अनुरोध करना है कि आप संजय को यह विमान उड़ाने से मना कर दीजिए। वह चाहे और जो भी विमान उड़ाएं मगर यह वाला मत उड़ाने दीजिए।
मेनका की बात को ध्यान से सुनने के बाद इंदिरा संजय से मुखातिब हुईं। उन्होंने कहा, मेनका ने किसी बात का कभी भी इतना अधिक आग्रह नहीं किया। यदि वो कह रही है कि न जाओ तो न जाओ तुम।
इंदिरा अभी फटकार लगा ही रही थी तभी आर.के. धवन पहुंचते हैं। वो संजय की तरफदारी करते हुए कहते हैं, अरे ये तो मर्दों का जहाज है। मेनका जी ऐसा बोल रही हैं, क्योंकि वो औरत हैं। धवन की बात पर ध्यान न देत हुए इंदिरा ने संजय से पूछा कि क्या यह विमान सुरक्षित है? जवाब में मेनका तपाक से बोल पड़ी, ‘नहीं यह सुरक्षित नहीं है। ये तो डरावना विमान है।’ तभी संजय ने कहा, ‘दो तीन दिन में ठीक हो जाएगा। इसे (मेनका को) उसकी आदत पड़ जाएगी।’ इस बात को कहने के अगली ही सुबह संजय की मौत हो गई।
जानकारी मिलते ही इंदिरा दुर्घटनास्थल पर पहुंची। वो विमान के मलबे के पास दो-दो बार गईं। वो ऐसे देख रही थी मानों कुछ ढूंढ रहीं हो। तब इंदिरा के आलोचकों का कहना था कि वो उस मलबे में लॉकर की चाभी ढूंढ रही हैं जिसमें संजय की दौलत जमा है। हालांकि इंदिरा के ज्यादातर जीवनीकार ऐसा नहीं मानते। अपने बेटे की मौत के बाद इंदिरा ने टूटती हुई आवाज में डॉ माथूर से कहा था, ‘डॉक्टर हमारा दाहिना हाथ कट गया’