दिसंबर के आखिरी सप्ताह (25 तारीख) में सुप्रीम कोर्ट के नंबर दो जज की हैसियत से रिटायर हुए जस्टिस संजय किशन कौल ने बताया है कि धारा 370 पर दिए गए फैसले में उन्होंने कश्मीर के बारे में अपनी ओर से कुछ टिप्पणियां क्यों दर्ज कीं। उन्होंने इसके दो प्रमुख कारण बताए। एक तो यह कि उन्हें कश्मीर के इतिहास और हालात के बारे में निजी तौर पर जानकारी है (बता दें कि कौल कश्मीरी पंडित हैं और उनके पड़दादा-दादा जम्मू-कश्मीर रियासत में मंत्री रह चुके हैं)। दूसरा कारण, उन्होंने यह बताया कि कश्मीर में जो कुछ हुआ है वह कहीं न कहीं दर्ज रहे, उससे इनकार न किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने यह फैसला उनके रिटायर होने से कुछ दिन पहले ही सर्वसम्मति से सुनाया था।
जनसत्ता.कॉम के संपादक विजय कुमार झा से बातचीत में कौल ने बताया कि मुझे लगता था कि कुछ लिखना पड़ेगा, ताकि जो हुआ वह कहीं दर्ज रहे और लोग आगे बढ़ सकें। उन्होंने कहा-
केस से जुड़े कानूनी पहलुओं (धारा 370 को हटाना और हटाने का तरीका सही था या नहीं) पर पीठ में शामिल सभी जजों की एक राय थी। मेरी जजमेंट अलग इसलिए थी कि शुरू में मैंने कश्मीर के इतिहास की जो जानकारी मुझे थी, उसे जोड़ कर लिखा और अंत में भी अलग से टिप्पणी लिखी।
कौल ने अपनी ओर से यह लिखने का कारण भी बताया। उन्होंने कहा कि शुरुआती हिस्से में अपनी ओर से बातें इसलिए जोड़ीं क्योंकि कश्मीरी होने के नाते उन्हें वहां के इतिहास और स्थितियों के बारे में जानकारी है। अंत में जो टिप्पणी उन्होंने लिखी, उसकी वजह यह रही कि उन्हें लगता था कि जो हुआ है, वह कहीं न कहीं दर्ज होना चाहिए ताकि कोई जो हुआ उससे इनकार न कर सके।
इंटरव्यू का वीडियो
जस्टिस कौल ने कहा कि बंटवारे से प्रभावित लाखों परिवारों में से एक मेरा परिवार भी था। कश्मीर से साढ़े चार लाख लोग निकल गए और उनके लिए कुछ नहीं किया गया। मेरा स्पष्ट मानना है कि उनके लिए सही मायनों में कोई राहत नहीं आई। उन्होंने अलग-अलग जगह जाकर जिंदगी शुरू की। पर आदमी अपनी जड़ें बचा कर रखना चाहता है। अगर हालात ऐसे हुए कि वह वहां जा कर कुछ समय बिता सकता है तो उतना पुनर्वास का इंतजाम हो सकता है। लेकिन, हालात इतने खराब हो गए कि सेना बुलानी पड़ी। हालात ऐसे थे कि मानो युद्ध ही हो रहा है। 35 साल में एक ऐसी नस्ल खड़ी हो गई जिसने अच्छे दिन देखे ही नहीं। इसलिए अब इतिहास से आगे बढ़ने की जरूरत है। करीब सात साल तक सुप्रीम कोर्ट में जज रहने वाले संजय किशन कौल ने यह भी कहा-
मुझे लगा कि अमूमन आबादी इस बात के लिए तैयार है। पर सभी को रोजगार और जान की सुरक्षा चाहिए। पूरा राज्य पर्यटन पर निर्भर है। दो-तीन साल में अच्छा पर्यटन हो रहा है। स्थिति बेहतर हुई है। मेरा लिखने का उद्देश्य यह था कि गलती माननी चाहिए, अगर इनकार करेंगे तो यह सही नहीं है। इसलिए यह दर्ज करना जरूरी है कि गलत हुआ है (कारण जो भी हो)।

जस्टिस कौल ने फैसले में लिखा है कि सरकार को एक आयोग बनवा कर जम्मू-कश्मीर में हुए मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जांच करानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सरकार को एक सुझाव है। अगर वह ऐसा करती है तो लोग जख्मों को भुला कर आगे बढ़ सकेंगे।
जस्टिस कौल का कश्मीर कनेक्शन
संजय किशन कौल कश्मीरी पंडित खानदान से हैं। हालांकि, उनका जन्म दिल्ली में हुआ और वह ज्यादातर समय दिल्ली में ही रहे। लेकिन, कश्मीर आना-जाना लगा रहा। कश्मीर में उनकी काफी पुश्तैनी जमीनें, हवेली, कारखाने आदि थे। कारखाने काफी पहले सरकार की ओर से ले लिए गए थे। उनके दो कॉटेज आतंकवाद के दौर में जला दिए गए थे। पुश्तैनी जमीनें परिवार ने बेच ली हैं। लेकिन, करीब सौ साल पुराना एक कॉटेज और कुछ अन्य संपत्तियां आज भी हैं। उन्होंने वहां अपना पुश्तैनी कॉटेज नए सिरे से बनवाया भी है।
संजय किशन कौल के दादा के दादा राजा सूरज किशन कौल जम्मू-कश्मीर रियासत में रिजेंसी काउंसिल के राजस्व मंत्री थे। दादा के पिता दया किशन कौल कश्मीर रियासत के वित्त मंत्री थे। दादा राजा उपेंद्र किशन कौल लोक सेवक थे। पिता मनमोहन किशन कौल वकील रहे। इससे पहले उनके खानदान में कोई वकील नहीं था।

परिवार वालों का मानना था कि बेटा वकील बन जाएगा तो संपत्ति संभालने-बढ़ाने में मदद मिलेगी। पर, संजय किशन कौल वकील नहीं बनना चाहते थे। वह विदेश सेवा में जाना चाहते थे, लेकिन परिवार की इच्छा के चलते कानून के पेशे में जाना पड़ा था।