लगभग पूरी कांग्रेस पार्टी का मानना है कि राहुल गांधी को केरल के वायनाड से दोबारा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। ऐसा करना नासमझी होगी। पिछली बार राहुल को वायनाड से 64 फीसदी वोट मिले थे।
राहुल गांधी की जीत उनके सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के समर्थन की वजह से हुई थी, क्योंकि वायनाड लोकसभा क्षेत्र में 29 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं।
वायनाड से क्यों चुनाव न लड़ें राहुल गांधी?
आशंका यह है कि केरल में राहुल गांधी को IUML का समर्थन उत्तर भारत में कांग्रेस के लिए उल्टा पड़ सकता है। यहां तक कि गांधी परिवार के करीबी विश्वासपात्र माने जाने वाले सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी ने भी राहुल को वायनाड से चुनाव न लड़ने की सलाह दी है।
केरल में कांग्रेस के प्रमुख विपक्ष एलडीएफ ने स्पष्ट कर दिया है कि वह वायनाड में कांग्रेस के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेगी, भले ही पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन की सहयोगी हो।
अपने दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित करने के लिए वाम गठबंधन ने यह कहकर कांग्रेस की घोषणा को टाल दिया कि सीपीआई महासचिव डी राजा की पत्नी एनी राजा वायनाड से चुनाव लड़ेंगी।
व्यावहारिक रूप से वायनाड का समर्थन करने वाले एकमात्र व्यक्ति केसी वेणुगोपाल हैं, क्योंकि वह इस निर्वाचन क्षेत्र को संभालते हैं। पिछले कुछ समय से वेणुगोपाल पर राहुल की अत्यधिक निर्भरता की चर्चा है।
दक्षिण एक और सीट से ऑफर
राहुल गांधी को अगर दक्षिण भारत से ही लड़ना है तो उनके पास तेलंगाना का भी विकल्प है। पहले कर्नाटक पर भी विचार हुआ था, लेकिन पार्टी के सर्वे के आधार पर सुझाव दिया गया कि कोई भी सीट 100 प्रतिशत सुरक्षित नहीं है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी चाहते हैं कि राहुल उनकी पूर्व लोकसभा सीट मल्काजगिरी से खड़े हों। लेकिन वेणुगोपाल का दबदबा ऐसा है कि राहुल को उनके पुराने निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ना होगा।
चार महीने तक राहुल से मिलने की कोशिश करते रहे थे अशोक चव्हाण, मिला तीन शब्दों का मैसेज
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी ‘राजनीतिक शैली’ के कारण पार्टी के भीतर अक्सर विवाद और तनाव का कारण रहे हैं। राज्यसभा उम्मीदवारों के चयन के बाद पार्टी की आंतरिक अशांति उजागर हुई है। राहुल गांधी की केसी वेणुगोपाल पर निर्भरता ने वरिष्ठ नेताओं में कांग्रेस के प्रति निराशा पैदा कर दी है।
अशोक चव्हाण ने राहुल गांधी से मिलने के लिए चार महीने तक प्रयास किए, लेकिन उन्हें केवल यही कहा गया कि केसी से बात कीजिए। निराश होकर, चव्हाण ने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)
