आतिशी के दिल्ली के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने की चर्चा कम है, इस बात की चर्चा ज्यादा है कि उनकी कुर्सी के बगल में एक खाली कुर्सी भी रखी गई है। इस तस्वीर को देखकर राजनीति से जुड़े तमाम लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। लेकिन आजाद भारत के इतिहास में कभी ऐसा नहीं देखा गया कि पार्टी के विधायकों द्वारा चुने गए एक मुख्यमंत्री के बगल में खाली कुर्सी रखी गई हो।

आतिशी ने मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के बाद खुद भी यह कहा कि जिस तरह भरत ने 14 साल तक श्रीराम की खड़ाऊं रख कर अयोध्या का शासन संभाला, ठीक इसी तरह आने वाले 4 महीने के लिए वह भी सरकार चलाएंगी।

आतिशी ने यह भी कहा कि उन्हें विश्वास है कि अब दिल्ली के लोग केजरीवाल को विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से विजयी बनाकर फिर से मुख्यमंत्री बनायेंगे। तब तक यह मुख्यमंत्री की कुर्सी केजरीवाल का इंतज़ार करेगी।

इस तस्वीर के सामने आने के बाद बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल पर हमला बोल दिया है और कहा है कि दिल्ली की सरकार को केजरीवाल रिमोट कंट्रोल से चलाएंगे। पार्टी ने कहा है कि यह मुख्यमंत्री पद का अपमान है।

जल्द चुनाव चाहती है पार्टी

जिस दिन से आतिशी को दिल्ली का नया मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान हुआ है, खुद आतिशी और गोपाल राय सहित पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने कहा है कि आतिशी केवल चुनाव तक ही मुख्यमंत्री रहेंगी। दिल्ली में चार से पांच महीनों के भीतर विधानसभा चुनाव होने हैं। हालांकि केजरीवाल और पूरी पार्टी चाहती है कि दिल्ली में नवंबर में ही चुनाव हो जाएं।

आतिशी चुनाव तक ही मुख्यमंत्री रहेंगी, इस तरह के बयानों और खाली कुर्सी की तस्वीर सामने आने से यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि आतिशी को मुख्यमंत्री के रूप में काम करने की कितनी आजादी होगी। क्योंकि एक तरह से आम आदमी पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि भले ही केजरीवाल कुर्सी पर नहीं हैं लेकिन दिल्ली सरकार में कोई भी काम अरविंद केजरीवाल की मर्जी के बिना नहीं होगा।

अरविंद केजरीवाल जब अन्ना आंदोलन से निकलकर आम आदमी पार्टी में आए थे तो उन्होंने पार्टी के लोकतांत्रिक होने की बात कही थी। पिछले कुछ सालों में कई बड़े नेता आम आदमी पार्टी को छोड़कर गए और तब अरविंद केजरीवाल पर यह आरोप लगा कि उनकी मर्जी के बिना पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता। अरविंद केजरीवाल पर यह भी आरोप लगता है कि पंजाब में चल रही आम आदमी पार्टी की सरकार भी उनके आदेश पर ही चल रही है।

केजरीवाल के राजनीतिक विरोधियों का आरोप है कि राज्यों में विधानसभा चुनाव कौन लड़ेगा, संगठन की कमान किसे मिलेगी, जिन राज्यों में पार्टी की सरकार है वहां मुख्यमंत्री या मंत्री कौन बनेगा, यह सब अरविंद केजरीवाल ही तय करते हैं।

आप के अंदर लोकतंत्र पर उठेगा सवाल

दिल्ली देश की राजधानी है, भारत के लगभग सभी राज्यों के लोग यहां रहते हैं इसलिए दिल्ली में होने वाली राजनीतिक या किसी और बड़ी घटना की गूंज पूरे देश में और कभी-कभी दुनिया भर में भी होती है। जब आतिशी के बगल में एक खाली कुर्सी बार-बार दिखाई देगी तो निश्चित रूप से इसे सवाल उठेगा कि क्या आम आदमी पार्टी के अंदर लोकतंत्र नहीं है?

आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार यहां की जनता ने बनाई है और जनता ने ही विधायकों को चुना है और विधायकों ने नए मुख्यमंत्री का चुनाव किया है। ऐसे में संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री बनने वाले शख्स का यह बयान कि खड़ाऊं रखकर शासन होगा, इसे लेकर भी राजनीतिक विश्लेषक हैरान हैं।

दिल्ली में कुछ ही महीनों के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं। अरविंद केजरीवाल पहली बार 2013 में 49 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने, उसके बाद वह 2015 और 2020 में भी मुख्यमंत्री बने। निश्चित रूप से केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने पिछले दो विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की। पंजाब में भी पार्टी ने सरकार बनाई और गुजरात, गोवा में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रही।

10 साल के राजनीतिक सफर में ही आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी मिला और पार्टी की इस कामयाबी का बहुत हद तक श्रेय अरविंद केजरीवाल को जाता है।

लेकिन अब जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव बेहद नजदीक हैं ऐसे में बीजेपी खाली कुर्सी को लेकर केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है और चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बना सकती है।