ब्रिटेन में बदल रहा राजनीतिक माहौल चिंतनीय है। वहां कुछ दिन पहले प्रवासी विरोधी रैली का आयोजन किया, जिसमें डेढ़ लाख के करीब लोग पहुंचे। प्रवासियों के खिलाफ इतनी बड़ी संख्या में लोगों का सड़कों पर उतर आना ब्रिटेन जैसे उदार देश में आश्चर्य की बात है।
यह यूरोप में प्रवासियों के खिलाफ फैल रहे असंतोष का संकेत भी है। रैली में प्रवासियों का विरोध करने वाले पूरे पश्चिम जगत के दक्षिणपंथी नेटवर्क का जमावड़ा दिखा। यहां तक कि जाने-माने उद्यमी एलन मस्क ने भी इसे वर्चुअल तरीके से संबोधित किया।
विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से ब्रिटेन समेत पश्चिम के धूर दक्षिणपंथी समूहों में यह भावना घर कर रही है कि प्रवासियों के कारण उनकी सांस्कृतिक अस्मिता खतरे में है और उनकी पहचान पर संकट आ गया है। उन्हें अपने लिए अवसर खत्म होने का डर भी सता रहा है।
इंग्लिश डिफेंस लीग धीरे-धीरे मुख्यधारा में आ रही
इस रैली में इन्हीं सबको उभारने की कोशिश की गई। एक तथ्य यह भी है कि अब तक हाशिए पर रही इंग्लिश डिफेंस लीग धीरे-धीरे मुख्यधारा में आ रही है। यह ब्रिटेन और दुनिया के लिए चिंता की बात होनी चाहिए।
हालांकि, यहां यह भी समझना होगा कि पूरे यूरोप की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। वहां रोजगार कम हो रहे हैं। जब ऐसी स्थिति आती है, तो जाहिर तौर पर इसका ठीकरा बाहर वालों पर फोड़ने की कोशिश होती है। बाद में, इसमें भावनात्मक बल देने के लिए संस्कृति और पहचान से जोड़ दिया जाता है। दूसरी ओर, प्रवासियों में भी कई समुदाय हैं, जो वहां के समाज से मेल-जोल नहीं बढ़ा पाते। इस कारण भी आक्रोश बढ़ने लगता है।
ब्रिटेन की राजनीति में नई ‘रिफार्म यूके पार्टी’ उभरी
ब्रिटेन में चुनावी राजनीति की बात करें, तो वहां एक नई ‘रिफार्म यूके पार्टी’ उभरी है। इसके नेता नाइजल फराज हैं, जो प्रवासी विरोधी हैं। आज ब्रिटेन में चुनाव हो जाएं, तो इसके सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आने की प्रबल संभावना है। ब्रिटेन में जो माहौल है और लोगों की भावना स्थापित दलों के खिलाफ होती जा रही है, वह एक नया पहलू है। यह एक हद तक ट्रंप के नक्शे कदम पर चलने जैसा है।
अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस तरह रिपब्लिकन पार्टी की प्रकृति को पूरी तरह बदल दिया, वही काम नाइजल फराज अलग पार्टी बनाकर कर रहे हैं। दोनों जगह तरीका एक तरह का ही है। अमेरिका के बाद ब्रिटेन में यह चलन खास है।
ब्रिटेन की स्थापित पार्टियों-लेबर और कंजरवेटिव ने इनके खिलाफ मोर्चा जरूर लिया है, लेकिन वे प्रवासियों की आमद कम नहीं कर पा रहे, और यही उनकी कमजोरी साबित हो रही है। इसी का फायदा उठाकर राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक चुनौतियों को इकट्ठा कर प्रवासी विरोधी भावना को तूल देने की कोशिश हो रही है। यह भावना अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी से लेकर मध्य यूरोप तक देखी जा सकती है।
अनिवासी भारतीयों के लिए खड़ी हो सकती है मुश्किल
मतलब साफ है कि ब्रिटेन का राजनीतिक माहौल अंदरूनी तौर पर बदलता जा रहा है। प्रवासी विरोधी रैली में बहुत सारे नारे लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री किअर स्टार्मर के खिलाफ भी लगे हैं। वहां लेबर और कंजरवेटिव पार्टी के खिलाफ लोगों में नाराजगी बढ़ने लगी है। जाहिर है, प्रवासियों के खिलाफ तेज होता यह विरोध अनिवासी भारतीयों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है, जिनकी संख्या तकरीबन 18 लाख है।
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